भूगोल

अवधारणा और विश्वास आरोपित किए जाते हैं, संविधान, संसद और लोकतंत्र के बारे में भी। फिर उन्हीं आरोपित आस्थाओं की चादर के नीचे आमजन को हाशिये पर धकेलने का काम भी सहूलियत के साथ चल पाता है, बिना किसी कोलाहल और कुलबुलाहट के।