आजकल अख़बारों और ख़बरों में आपने “3 nm चिप” का नाम ज़रूर सुना होगा। यह सुनने में बहुत तकनीकी लगता है, लेकिन असल में इसका मतलब बहुत सरल है: यह हमारे मोबाइल फोन, कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक मशीनों को तेज़ और ऊर्जा-बचत वाला बनाने वाली तकनीक है।
भारत में हाल ही में यह घोषणा हुई कि यहाँ 3 nm चिप डिज़ाइन करने की दिशा में काम शुरू हुआ है। यह कदम अपने आप में बड़ा है, क्योंकि अब तक ज़्यादातर ऐसी उन्नत चिपें विदेशों में ही डिज़ाइन और बनाई जाती रही हैं।
3 nm चिप क्या होती है?
किसी भी चिप के अंदर लाखों-करोड़ों छोटे-छोटे स्विच (ट्रांजिस्टर) होते हैं। जितने छोटे ये स्विच होंगे, उतनी ज़्यादा संख्या में इन्हें एक ही जगह पर रखा जा सकता है। 3 nm का मतलब है कि ये ट्रांजिस्टर बेहद छोटे स्तर पर बनाए जा रहे हैं। इससे चिप छोटी जगह में ज़्यादा काम कर सकती है, बिजली कम खर्च करती है और तेज़ भी चलती है।
भारत के लिए यह क्यों अहम है?
भारत के लिए अपनी चिप डिज़ाइन करना कई मायनों में अहम है। सबसे बड़ी बात यह है कि इससे हमें तकनीकी आत्मनिर्भरता मिलेगी और हर बार विदेशों पर निर्भर रहने की ज़रूरत नहीं होगी। जब देश में ही डिज़ाइन और उत्पादन होगा तो लाखों इंजीनियरों और छात्रों को सीखने और काम करने के नए मौके मिलेंगे, जिससे रोज़गार भी बढ़ेगा। इसके अलावा, जिन क्षेत्रों में भरोसेमंद तकनीक की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है—जैसे रक्षा, संचार और बैंकिंग—वहाँ अगर देश की बनी चिप्स इस्तेमाल होंगी तो सुरक्षा भी और मज़बूत होगी। साथ ही, आज दुनिया में चिप्स की बहुत बड़ी मांग है। अगर भारत इस दिशा में आगे बढ़ेगा तो हमारी अर्थव्यवस्था को भी लम्बे समय तक लाभ मिलेगा।
सरकार और उद्योग की पहल
भारत सरकार ने सेमीकंडक्टर मिशन, SMART Labs और कई नए कार्यक्रम शुरू किए हैं। इनसे छात्रों को पढ़ाई के दौरान ही चिप डिज़ाइन सीखने का मौका मिलेगा। बड़ी कंपनियाँ जैसे Renesas और IBM भी भारत में अपने रिसर्च सेंटर खोल रही हैं। लक्ष्य है कि अगले कुछ सालों में लाखों लोग चिप डिज़ाइन में प्रशिक्षित हों।
क्यों ज़रूरी है अपनी डिज़ाइन फर्म?
किसी भी देश के लिए अपनी चिप डिज़ाइन फर्म होना बहुत ज़रूरी है। मान लीजिए आपके पास मोबाइल फोन है, लेकिन उसका पूरा सॉफ़्टवेयर और अपडेट किसी दूसरे देश पर निर्भर है। अगर अचानक वह देश देना बंद कर दे, तो आपका फोन बेकार हो जाएगा। यही स्थिति चिप्स की भी है। आज लगभग हर मशीन—फोन, कंप्यूटर, गाड़ी, टीवी, यहाँ तक कि बैंक और रक्षा उपकरण—चिप पर ही चलते हैं। अगर चिप डिज़ाइन और तकनीक पूरी तरह से विदेशों पर निर्भर रहेगी, तो देश किसी भी समय दबाव में आ सकता है। अपनी डिज़ाइन फर्म होने का मतलब है कि हम अपनी ज़रूरत और परिस्थितियों के हिसाब से चिप बना सकते हैं। इससे छात्रों और युवा इंजीनियरों को देश में ही अच्छे अवसर मिलेंगे और उन्हें बाहर जाने की मजबूरी कम होगी। साथ ही, जो चिप्स रक्षा, संचार और वित्तीय क्षेत्र जैसी संवेदनशील जगहों पर लगाई जाती हैं, अगर वे देश में ही डिज़ाइन हों तो उन पर भरोसा और ज़्यादा होगा। लंबे समय में इससे न केवल सुरक्षा मज़बूत होगी बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी देश को फायदा होगा, क्योंकि दुनिया में चिप्स की बहुत बड़ी मांग है और भारत इस क्षेत्र में अपने बलबूते योगदान दे सकता है।
भारत का रास्ता
भारत ने अभी शुरुआत की है। 3 nm जैसी आधुनिक चिप का डिज़ाइन होना इस बात का संकेत है कि हम सही दिशा में चल रहे हैं। यह रास्ता आसान नहीं है। इसमें समय, पैसा और धैर्य लगेगा। लेकिन धीरे-धीरे, छोटे-छोटे कदम उठाकर ही हम आत्मनिर्भर बनेंगे।
निष्कर्ष
भारत का यह प्रयास बहुत बड़े दावों वाला नहीं है, बल्कि एक सधी हुई शुरुआत है। दुनिया चिप्स के बिना नहीं चल सकती और आने वाले समय में इनकी ज़रूरत और भी बढ़ेगी। ऐसे में अगर हमारे पास अपनी डिज़ाइन करने की क्षमता होगी, तो यह हमारे बच्चों और देश दोनों के भविष्य के लिए अच्छा होगा।
यह सिर्फ तकनीकी बात नहीं है, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़ी हुई चीज़ है। जिस तरह मोबाइल, इंटरनेट और डिजिटल पेमेंट हमारे जीवन का हिस्सा बन गए हैं, उसी तरह आने वाले वर्षों में “भारत में बनी चिप” भी गर्व का विषय बनेगी।