
परिवार, शिक्षा प्रणाली, राज्य-कानून, धर्म, कलाएँ, मिडिया आदि ये सारी सामाजिक संस्थाएँ हमारे समाज में औरत बनाने का काम करती हैं- मादा को स्त्री बनाती हैं। सर्वजनीन है कि स्त्री पैदा नहीं होती, बनायी जाती है, मार-मार के बनाया जाता है उसको स्त्री। यही स्त्री की स्थिति तय करती है और नारी विमर्श में इसे अनदेखा कर दिया जाता है।

पराजय और अकेलेपन के बोध में पिता-पुत्री के बीच बेहद जीवनमय संबंध अपने लालित्य और तरुणाई के नैसर्गिक संगीत से भरा है। सरोज स्मृति कविता करुणा, व्यंग्य तथा दिव्य सौंदर्य का एक गीत है, जिसके शब्दों में निराला का महान व्यक्तित्व प्रकट हुआ है। पिता-पुत्री के प्रेमपथ का यह पाथेय मातृत्व और पितृत्व के एकाकार की उष्मामयी स्नेह-छाया साहित्य रचना के माध्यम से विश्व के लिए बेहद अर्थवान और प्रेरक है।