Category मार्क्सवादी दर्शन

भूत या चेतना की प्राथमिकता का सवाल

भौतिक या भौतिक उत्पादन संबंधों में परिवर्तन जितना प्रत्यक्ष और द्रुत होता है, वहीं वैचारिक परिवर्तन अलक्ष्य और मंद होता है और उसे परिवर्तित होने में, कभी-कभी, सदियाँ लग जाती हैं। जैसे, भारत में जाति-विभाजन सामंती काल की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता था, लेकिन औद्योगिक और व्यावसायिक आर्थिक संबंधों के पूंजीवादी काल में आज भी वह जीवित ही है।

द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद क्या है?

मार्क्सवाद की पूरी इमारत ‘द्वंद्वात्मक भौतिकवाद’ की नींव पर खड़ी है। इसलिए मार्क्सवाद को समझने के लिए ‘द्वंद्वात्मक भौतिकवाद’ को समझ लेना आवश्यक है, अन्यथा मार्क्सवाद की व्याख्याएँ अबूझ रह जायेंगी। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरल तरीके से इस गूढ़ दर्शन को बताने की कोशिश की गई है।

मार्क्सवादी इतिहास दृष्टि क्या है?

मार्क्सवादी इतिहास-दृष्टि ने इतिहास-चिंतन को एक नया और पूर्व की दृष्टि से सर्वथा भिन्न आयाम प्रदान किया। द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त के आधार पर विकसित इस इतिहास-दृष्टि ने पहले-पहल वैश्विक इतिहास की गति की वैज्ञानिक समझ प्रदान की। ऐतिहासिक भौतिकवाद के नाम से अभिहित इस सिद्धान्त को जाने बिना इतिहास के पदानुक्रमों को नहीं समझा जा सकता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस जटिल दर्शन को सरल भाषा में प्रस्तुत करने की कोशिश की जा रही है।