मुफ़्तख़ोरी बनाम इंफ्रास्ट्रक्चर: भारत किस रास्ते पर जाएगा?

भारत आज विकास की राह में एक चौराहे पर खड़ा है। लोकतंत्र की ताक़त और आर्थिक आज़ादी को मिलाकर हम नई ऊँचाइयों तक पहुँच सकते हैं।

क्या आपको कभी लगा है कि हम भारतीय राजनीति पर जितना समय खर्च करते हैं, उतना अर्थव्यवस्था पर नहीं? चुनाव आते ही चर्चा होती है — “कौन जीतेगा, कौन हारेगा, किसको कितनी सीटें मिलेंगी।” लेकिन शायद ही कभी हम गहराई से पूछते हैं कि हमारी जेब और हमारे बच्चों के भविष्य का रास्ता कौन तय कर रहा है।

इसी सवाल को छूते हुए रुचिर शर्मा ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में दिलचस्प बातें कीं (India vs China vs US: WTF is Finance Podcast)। कभी उन्होंने सिंगापुर की गलियों से उदाहरण दिए, कभी चीन के कारखानों से और कभी भारत की अपनी पुरानी “लाइसेंस-परमिट-इंस्पेक्टर राज” वाली अर्थव्यवस्था की ओर इशारा किया। तुलना साफ़ थी—भारत बनाम चीन बनाम अमेरिका।

यह भी देखें –

पूंजीवाद को लेकर हमारे दिमाग में अक्सर वॉल स्ट्रीट, अंबानी-अडानी के टॉवर और चमचमाती गाड़ियाँ घूम जाती हैं। लेकिन असल में इसका मतलब कहीं ज़्यादा साधारण है: आर्थिक आज़ादी। अगर आपके पास कोई आइडिया है, चाहे वह चाय का नया फ्लेवर हो या कोई ऐप, तो आपको उसे हकीकत बनाने के लिए सौ सरकारी दफ़्तरों के चक्कर न काटने पड़ें। पूंजीवाद का सीधा सा आशय यही है कि आइडिया से बिज़नेस तक का सफ़र आसान हो।

दुनिया में इसके अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं। सिंगापुर, जो 1960 के दशक में एक साधारण सा द्वीप था, ने फैसला किया कि लोगों को आर्थिक आज़ादी दो और विदेशी कंपनियों को खुलकर काम करने दो। देखते ही देखते वह एशियाई टाइगर बन गया। चीन ने भी 1990 के दशक में बेरहम-सा लेकिन निर्णायक कदम उठाया—लाखों लोगों को सरकारी नौकरियों से निकालकर कहा, “जाओ, अपने पैरों पर खड़े हो।” यह कठोर था, लेकिन इसी धक्के ने उसे दुनिया की फैक्ट्री बना दिया। भारत ने लोकतंत्र और राजनीतिक आज़ादी तो दी, लेकिन कारोबारी आज़ादी की राह हमेशा अटकनों से भरी रही।

यह भी देखें –

यह फर्क सब्सिडी और इंफ्रास्ट्रक्चर की बहस में भी साफ़ दिखता है। लैटिन अमेरिका ने जनता को खुश रखने के लिए मुफ्त योजनाएँ और सब्सिडी बाँटीं, नतीजा यह हुआ कि अर्थव्यवस्था लंबे समय तक ठहरी रही। इसके उलट, पूर्वी एशिया ने सड़कें, पुल, फैक्ट्रियाँ और स्कूल बनाए। वेलफेयर को मुख्य नहीं, बल्कि सहायक साधन माना। यही कारण है कि सिंगापुर, ताइवान और दक्षिण कोरिया ने गरीबी से समृद्धि तक का सफ़र तय किया। भारत में आज भी यह बहस जारी है कि क्या हमें मुफ्त बिजली-पानी और राशन पर भरोसा करना चाहिए या नई सड़कें, मेट्रो और इंडस्ट्रियल कॉरिडोर पर। रुचिर शर्मा मानते हैं कि जब तक भारत सब्सिडी की जगह उत्पादक निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान नहीं देगा, तब तक हमारी ग्रोथ औसतन छह प्रतिशत से ऊपर टिक नहीं पाएगी।

इससे जुड़ी एक और अहम चर्चा सामाजिक गतिशीलता की है—यानी क्या नई पीढ़ी अपने माता-पिता से बेहतर जीवन पा सकती है। अमेरिका में कभी यह सपना चमकता था। पचास और साठ के दशक में लगभग अस्सी प्रतिशत अमेरिकी मानते थे कि उनकी ज़िंदगी उनके माता-पिता से बेहतर होगी। आज मुश्किल से एक-तिहाई लोग ही ऐसा सोचते हैं। वजह साफ़ है: शिक्षा इतनी महँगी हो गई कि मध्यमवर्गीय परिवारों को भी कर्ज़ के बोझ तले दबना पड़ता है। घर ख़रीदना लगभग नामुमकिन है, क्योंकि नए निर्माण पर नियम-क़ानून इतने कड़े हो गए हैं कि आपूर्ति रुक गई है। और सबसे बड़ी बात, सरकार बार-बार संकट में बड़ी कंपनियों को बचाती रही है, जिससे छोटे उद्यमियों का रास्ता बंद हो गया।

यह भी देखें –

भारत की तस्वीर अभी अलग है। गाँव से शहर आने वाला लड़का अब भी उम्मीद करता है कि वह अपने माता-पिता से बेहतर कर सकता है। शिक्षा और तकनीक धीरे-धीरे सस्ती और सुलभ हो रही है, ऑनलाइन कोर्स और किताबें आम हो रही हैं, और छोटे कस्बों के लोग बड़े सपने देख रहे हैं। घर महँगे ज़रूर हैं, लेकिन पश्चिम की तुलना में अभी भी आय के अनुपात में उतने असंभव नहीं। यही भारत का फायदा है, लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। अगर हम सचमुच सामाजिक गतिशीलता को बनाए रखना चाहते हैं तो हमें शिक्षा को और लोकतांत्रिक बनाना होगा, नियम-क़ानून कम करने होंगे ताकि नए बिज़नेस पनप सकें और सरकार को पक्षपात और बेलआउट से बचना होगा।

भारत आज एक मोड़ पर खड़ा है। हमारे पास लोकतंत्र की ताक़त है, और अगर हम इसे आर्थिक आज़ादी और रचनात्मकता से जोड़ें तो हमें कोई रोक नहीं सकता। जुगाड़, मेहनत और थोड़ी समझदारी—यही भारत का असली “डेवलपमेंट मॉडल” बन सकता है।

जन पत्रकारिता को समर्थन देने के लिए उपर्युक्त QR Code को स्कैन करके 20, 50 या 100 रुपये की सहायता राशि प्रदान कर सकते हैं।
जन पत्रकारिता को समर्थन देने के लिए उपर्युक्त QR Code को स्कैन करके 20, 50 या 100 रुपये की सहायता राशि प्रदान कर सकते हैं।
Website |  + posts
lokjivan
lokjivan
Articles: 4

2 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *