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धर्म का वैचारीकरण एवं हिन्दुत्व का उभार

नवउदारवादी युग में हिन्दू धर्म विचारधारा के स्तर पर दो रूपों में दिखाई पड़ने लगा। एक सामाजिक न्याय के नाम पर हिन्दू धर्म पर लगातार आक्रमण करनेवाली शक्तियां थी। तो दूसरी ओर धर्म को केंद्र में लेकर राजनीति करने वाली शक्तियां थीं। इन दोनों शक्तियों की टकराहट का एक ही उद्देश्य था - धर्म का जितना हो सके, उसे राजनीतिक विचारधारा के रूप में सत्ता हासिल करने के लिए उपयोग में लाया जा सके।