Tag हिन्दी साहित्य

हिन्दी साहित्य में विद्यापति का स्थान

यह आलेख हिन्दी साहित्य में विद्यापति के महत्व पर प्रकाश डालता है। वे एक ओर ‘वीरगाथकाल’ के सर्वाधिक प्रामाणिक कवि हैं, वहीं दूसरी ओर भक्तिकाल और शृंगारकाल के भी उपजीव्य हैं। हिन्दी-साहित्य में गीत की परंपरा के स्रोत-पुरुष भी विद्यापति ही ठहरते हैं। इस तरह हिन्दी साहित्य में जितना दीर्घगामी प्रभाव विद्यापति का है, उतना किसी दूसरे कवि का नहीं है। ………. यह आलेख पहली बार मुजफ्फरपुर से प्रकाशित होने वाली आनंद मंदाकिनी के जनवरी-मार्च, 1990 अंक में प्रकाशित हुआ था और पुनः इसका मैथिली अनुवाद 2005 में चेतना समिति, पटना की स्मारिका में प्रकाशित हुआ।