बरगद कभी नहीं मरता

पुराने लोग कहते हैं कि उन्होंने पुरखों से सुना है कि पहले भी बरगद एक बार इसी तरह झुक गया था, मानो कमर टूट गयी हो। उस समय भी इसी तरह बाढ़ और तूफ़ान ने एक ही साथ क़हर मचाया था। गाँव के लोग बरगद के झुक जाने से उदास हो गये थे और उन्हें लगा था कि बरगद अब कभी नहीं उठेगा। लेकिन लोगों की उदासी को प्रसन्नता में बदलते हुए यह फिर से खड़ा हो गया था। यह बरगद है। कभी मर नहीं सकता। सदा झुका हुआ भी नहीं रह सकता। इसीलिए इसकी अमर जिजीविषा इसे फिर से खड़ा कर देगी।
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Dr. Anil Kumar Roy
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कार्यकर्ता और लेखक
डॉ. अनिल कुमार रॉय सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए अथक संघर्षरत हैं। उनके लेखन में हाशिए पर पड़े लोगों के संघर्ष और एक न्यायसंगत समाज की आकांक्षा की गहरी प्रतिबद्धता परिलक्षित होती है।

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