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भारत में बढती असमानता पर ऑक्सफेम की रिपोर्ट

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जब जोंक पूँजीपति खून चूसने में मशगूल होते हैं, राजसत्ता उन रक्त्जीवियों की हिफाजत में सन्नद्ध होती है और बुद्धिजीवी भी सत्ता के दरबार में सारंगी बजाकर चारण-गान करने में विभोर होते हैं तो घने अंधेरों में घिरे भूखे और अधनंगे लोग, रोशनी की तलाश में, सड़कों पर उतर आते हैं. दुनिया में अब तक जितनी भी क्रांतियाँ हुई हैं, वहाँ भी इसी तरह का फर्क रहा है. एक तरफ बेतहाशा अमीर रहे हैं और दूसरी तरफ अन्न और वस्त्र के लिए बिलबिलाते लोगों का हुजूम रहा है. और, इन दोनों के बीच खड़ी सत्ता अमीरों की तरफदारी में बिलबिलाते लोगों को क़ानून का पाठ पढ़ा-पढ़ाकर डंडे बरसाती रही है.