रुपेश रॉय

रुपेश रॉय

शोधार्थी, राजनीति विज्ञान विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा रुपेश रॉय एक समर्पित शोधार्थी हैं जिनका राजनीतिक विज्ञान में किया गया कार्य शासन, नीति और सामाजिक न्याय के बीच के अन्तर्संबंधों का अन्वेषण करता है। उनका शोध समकालीन समाज के सामने आने वाली चुनौतियों को समझने और संबोधित करने की प्रतिबद्धता से निर्देशित है।

उच्च शिक्षा में महिलाओं का योगदान: एक समग्र विश्लेषण

जहाँ राष्ट्रीय एवं प्रांतीय स्तरों पर नीतियों में सुधार हो रहे हैं, वहीं व्यक्तिगत स्तर पर महिलाओं को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। भारतीय समाज में पारंपरिक मान्यताएँ अभी भी महिलाओं के कैरियर और विकास में एक बड़ी बाधा के रूप में मौजूद हैं।

फिर नक्सली हमला : शहादत के बीच संवाद की ज़रूरत

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छत्तीसगढ़ की धरती एक बार फिर नक्सली हिंसा से लहूलुहान हो गई है। बीजापुर जिले में नक्सलियों ने सोमवार को एक बार फिर कायरतापूर्ण हरकत करते हुए जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) के वाहन को आईईडी विस्फोट से उड़ा दिया। इस…

संविधान पर चर्चा या कांग्रेस पर वार?

लोकसभा के शीतकालीन सत्र में संविधान के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में संविधान पर विशेष चर्चा आयोजित की गई थी। सत्तारूढ़ दल और उसके मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सारी ऊर्जा, लोकतंत्र के सशक्तिकरण और संवैधानिक मूल्यों को व्यावहारिक जीवन में उतारने के दृष्टिकोण की प्रस्तुति की अपेक्षा कांग्रेस की निंदा करते हुए खर्च हो गई।

लोकतंत्र और अभिव्यक्ति का अधिकार : प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक 2024 का संदर्भ

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प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक 2024 के द्वारा अभिव्यक्ति के अधिकार पर शिकंजा

संसद भवन में टपकता पानी: एक गंभीर समस्या

भारत का नया संसद भवन नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के सर्वाधिक प्रचारित ही नहीं, बल्कि सर्वाधिक महत्वाकांक्षी निर्माण के रूप में प्रस्तुत किया गया। इसके निर्माण के प्रारंभिक काल से ही इसकी आवश्यकता, वास्तु, व्यय, सेंगोल की स्थापना, भवन के शीर्ष पर आक्रामक व्याघ्र की स्थापना आदि पर अनेक प्रश्न खड़े होते रहे हैं। लगातार प्रश्नों की जद में खड़े इस भवन के बनकर खड़े हुए एक साल बीतते-बीतते इसकी छत ही चूने लगी। देश के सर्वाधिक महत्वाकांक्षी और महत्वपूर्ण भवन का यह परिणाम अनेक प्रश्न खड़े करता है। लेखक ने इस आलेख में इन कई सारे प्रश्नों को छूने की कोशिश की है।