भागलपुर में कुप्पा घाट है, गंगा किनारे बसा हुआ। कुप्पा नाम यहां पर स्थित एक कूप पर रखा गया है। कूप में जल नहीं है। कहा जाता है कि मीरकासिम ने मुंगेर से लेकर भागलपुर तक गंगा के किनारे-किनारे सुरंग बनवाई थी। मुंगेर में आज भी मीरकासिम का किला है। अंग्रेजों से परेशान होकर वह अपनी राजधानी कलकत्ते से मुंगेर ले आया था। सुरंग की सच्चाई इतिहास में दफ्न है, लेकिन बीसवीं सदी में यहां दूसरी कहानी शुरू होती है। यहां महर्षि मेंहीं भटकते हुए आये। उस वक्त यह इलाका पेड़, पौधों और जंगली झाड़ियों से घिरा था। रात में चोर चोरी कर यहां आते और आपस में बंटवारा करते। जब गायें मर जातीं तो गायों के चमड़े भी यहां निकाले जाते। महर्षि मेंहीं यहां जम गये। उन्होंने लंबे समय तक साधना की। उनका मत संत मत है। वे जीवनपर्यंत मांस, मदिरा और नशे के खिलाफ प्रचार करते रहे। बाद में दीन-दुखियों की भीड़ यहां जमा होने लगी और वे अपने मत के प्रचार के लिए दूर-दराज के गांवों में जाने लगे। सौ वर्ष से ज्यादा वे जीवित रहे और उनका देहांत 1986 में हुआ। अब यह कुप्पा घाट एक भव्य धार्मिक स्थल है। आज भी हजारों लोग वहां पहुंचते हैं। यहां कोई मंदिर नहीं है। सिर्फ महर्षि मेंहीं और उनके शिष्य संतसेवी को जहां जलाया गया था, वहां उनका स्मृति भवन है। उनकी दीवारों पर विभिन्न संतों की वाणियां हैं।
आज कार्तिक पूर्णिमा है। सुबह सुबह अलका ने कहा कि कुप्पा घाट चलना चाहिए। उनका पूरा परिवार महर्षि मेंहीं से गहरे रूप में जुड़ा रहा है। बीच-बीच में मैं कुप्पा घाट जाता रहा हूं। वहां के फूल, पेड़, पक्षी आदि लुभाते रहे हैं। कोलाहल भी न के बराबर है। हम लोग कुप्पा घाट के लिए आटो से चले तो आगे चल कर भागलपुर हवाई अड्डे की दीवारें आने लगीं। मैंने देखा कि जगह-जगह दीवारें तोड़ दी गई हैं और प्रशासन दुरूस्त कर दिया गया है। यह मजमा देख कर याद आया कि कल छह नवंबर है और छह नवंबर को अडानी-अंबानी के देवता आने वाले हैं। पिछली बार भी आये थे तो हवाई अड्डे की दीवारें तोड़ी गई थीं। फिर उसे बना दी गई थीं। दीवारों पर स्मार्ट योजना के तहत चित्रकारी करवाई गई है। मन में बात आई कि अगर राजनैतिक सभाओं के लिए दीवार तोड़नी जरूरी ही है तो बेहतर हो कि लोहे का गेट ही लगा दें। बार बार दीवार तोड़ने और फिर बनाने में राजस्व मुफ्त में खर्च होता है। जिस मुल्क में 80 प्रतिशत आम जनता पांच किलो राशन पर पल रही हो, वहां ऐसी फिजूलखर्ची अपराध से कम नहीं है। जनता के कवि अदम गोंडवी ने गलत नहीं लिखा है –
काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी है तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के लिवास में
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बादल गई है यहाँ की नख़ास में
जनता के पास एक ही चारा है बग़ावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में
कवि तो होशोहवास में कह गये, मगर यहां तो बेहोशी फैलती जा रही है। पिछली बार जब अडानी – अंबानी के ये देवता आये थे तो प्रशासन ने काली चीज पर रोक लगा दी थी। आप काले झंडे, काली कमीज, काला थैला आदि नहीं ले जा सकते थे। जबकि काला रंग रंगों का राजा है। लेकिन चलिए, अभी तो काले रंग को कोई बर्दाश्त नहीं कर पा रहा। यह अलग बात है कि देश में काला व्यापार चरम पर है।

प्रोफेसर, पूर्व विभागाध्यक्ष, विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग
पूर्व डीएसडब्ल्यू,ति मां भागलपुर विश्वविद्यालय,भागलपुर








अनपढ़ जनता और धूर्त बेबस्था में और क्या उम्मीद रखते हैं 5किलो अनाज