साथियो,
हममें से कोई असहमत नहीं होगा कि शिक्षा उन्नत जीवन और प्रगतिशल समाज के लिए प्राथमिक आवश्यकता है। समुचित शिक्षा प्राप्त व्यक्ति ही खुद बेहतर जीवन जीने के साथ अपने परिवार, समाज, राष्ट्र और अंततोगत्वा मानवता को अधिक उत्पादक, प्रगतिशील और विकासोन्मुख बना सकता है।
इसीलिए देश के प्रत्येक नागरिक को समान रूप से शिक्षा प्रदान करना अपना कर्तव्य समझते हुए सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 पारित किया। इस अधिनियम के मुताबिक मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करना 6 से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे का संवैधानिक अधिकार है। यदि इस अधिकार की प्राप्ति में कोई बाधा पहुँचती है तो इसके लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जा सकता है।
लेकिन बाजारोन्मुख पूँजीवाद ने शिक्षा की सरकारी व्यवस्था को धीरे-धीरे ध्वस्त करके समानांतर एवं अधिक मजबूत निजी शिक्षा-व्यवस्था खड़ी कर दी। और, आज शिक्षा की पूरी व्यवस्था इस मुकाम पर पहुँच गई है कि सरकारी विद्यालय मुफ्त भोजन, वस्त्र साइकिल आदि के वितरण-केन्द्र बनकर रह गए हैं और अपने बच्चे को थोड़ी भी अच्छी शिक्षा दिलवाने के इच्छुक अभिभावकों के पास निजी विद्यालयों में अपने बच्चों को भेजने के सिवा और कोई विकल्प नहीं बचा है।
ये निजी विद्यालय शिक्षा-प्राप्ति की जनाकांक्षा का दोहन करते हुए लूट-खसोट और अंतहीन मुनाफा कमाने की नीति पर चल रहे हैं। कमर तोड़ देने वाले मासिक शिक्षण-शुल्क के साथ ही भारी नामांकन शुल्क, वार्षिक शुल्क, परीक्षा शुल्क, विकास शुल्क, वाहन शुल्क तथा समय-समय पर अनेक प्रकार के शुल्क वसूल-वसूल कर लोगों को तंग और तबाह करके खुद शान-ओ-शौकत की जिंदगी बसर करना इन विद्यालयों के मालिकों का इकलौता उद्देश्य होकर रह गया है।
इतना ही नहीं। ये विद्यालय शिक्षा-बिक्री केन्द्र के साथ ही वस्तु-विक्रय के रूप में भी धंधा करते हैं। इन विद्यालयों ने पोशाक, टाई, बेल्ट, डायरी, कॉपी, कलम के साथ ही निजी प्रकाशकों की हर साल बदली जाने वाली किताबों को अपने यहाँ से या निर्दिष्ट दूकान से ही खरीदने के लिए विवश करके शिक्षा के मंदिर को परचून की दूकान से भी बदतर बना दिया है।
इन विद्यालयों को मान्यता देने वाली संस्था CBSE का स्पष्ट निर्देश है कि नामांकन में कोई कैपिटेशन फीस या डोनेशन नहीं लिया जाएगा और अन्य शुल्क भी सरकार के द्वारा निर्धारित शीर्षकों के अंतर्गत लिए जाएँगे।(CBSE Affiliation Byelaws, 11.1.1, page 17) CBSE का यह भी स्पष्ट निर्देश है कि विद्यालय NCERT/CBSE की पुस्तकों को छोड़कर अन्य प्रकाशकों की पुस्तकें खरीदने के लिए छात्रों पर जोर नहीं दे सकते हैं और न ही छात्रों को विद्यालय से या चिह्नित दूकानों से पुस्तकें या अन्य सामान खरीदने के लिए विवश कर सकते हैं।(CBSE Curriculum 16a/2017/1335026, dated 18/12/17)
ये निजी विद्यालय संवैधानिक अधिकारों की भी खुलेआम उपेक्षा करते हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 निजी विद्यालयों में 25 प्रतिशत पड़ोस के छात्रों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था देता है। परन्तु ये विद्यालय संवैधानिक अधिकारों की भी धज्जियाँ उड़ाते हुए या तो पड़ोस के 25 प्रतिशत छात्रों का नामांकन लेते ही नहीं हैं या यदि नामांकन लेते हैं तो उनके साथ भेदभाव का रवैया अपनाते हैं।
इस तरह ये निजी विद्यालय संवैघानिक व्यवस्था और प्रशासनिक निर्देशों की धज्जियाँ उड़ाते हुए मेहनतकश अवाम को लूटने में निर्विघ्न रूप से निमग्न हैं।
ऐसी स्थिति में हम सरकार, प्रशासन और निजी विद्यालयों से यह माँग करते हैं कि –
1. प्रत्येक निजी विद्यालय में पड़ोस के 25 प्रतिशत बच्चों की मुफ्त शिक्षा सुनिश्चित की जाए।
2. नामांकन शुल्क, वार्षिक शुल्क एवं अन्य शुल्कों के नाम पर खुली लूट बंद करके सरकार द्वारा निर्धारित शीर्षकों के अंतर्गत उचित शुल्क लिया जाए।
3. सारी कक्षाओं में NCERT की पाठ्यपुस्तकों से पढ़ाई को सुनिश्चित किया जाए। निजी प्रकाशकों की पुस्तकों से पढ़ाई पर पूर्णतया रोक लगाई जाए।
4. विद्यालय के द्वारा अपने ही परिसर में दूकान चलाने या निर्धारित दूकान से पुस्तकादि खरीदने का निर्देश देना अपराध माना जाए।
इस माँग को मजबूत करने में हमें आपकी जरूरत है। आइए, इस माँग में शामिल होकर शोषणमुक्त शिक्षित समाज की रचना में सहयोग कीजिए।
कार्यकर्ता और लेखक
डॉ. अनिल कुमार रॉय सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए अथक संघर्षरत हैं। उनके लेखन में हाशिए पर पड़े लोगों के संघर्ष और एक न्यायसंगत समाज की आकांक्षा की गहरी प्रतिबद्धता परिलक्षित होती है।







