पंकज सुबीर का एक उपन्यास है – ’अकाल में उत्सव’। यह उपन्यास 2016 में पहली बार छपा। उसका नायक रामप्रसाद नामक किसान है। वह ‘सूखा पानी’ नामक गांव में रहता है। रामप्रसाद दुःख तकलीफ़ जब तक झेल सकता है, झेलता है और अंततः आत्महत्या कर लेता है। उधर जिलाधिकारी सहित तथाकथित बड़े-बड़े लोग उत्सव मना रहे हैं। यह उपन्यास बहुत मार्मिक है और अपने समय की दास्तान कहता है। प्रशासन और प्रशासन से लाभान्वित लोग आज भी यह उत्सव कर रहे हैं, बल्कि ज्यादा भयानक ढंग से। यह अकाल में उत्सव नहीं, बल्कि मृत्योत्सव है।
कल दिल्ली के लाल किले के पास विस्फोट हुआ। खबर है कि नौ लोग मारे गए और अनेक घायल हैं। विस्फोट करने वाले में कोई पकड़ा नहीं गया। वह गाड़ी पकड़ी गई, जिसके माध्यम से विस्फोट हुआ। पता चला कि यह गाड़ी किसी मुसलमान के नाम पर है। मीडिया, चाटुकार और नेतागण मृत्यु का उत्सव मनाने लगे। बिहार में आज मतदान है। गाड़ी से मुस्लिम का नाम जुड़ गया, इसे खूब उछालो जिससे हिन्दू मतदाता को लगे कि अगर बीजेपी को वोट नहीं दिया तो मुस्लिम राज आ जायेगा। इस घटना की जिम्मेदारी केंद्र सरकार नहीं लेगी। गृहमंत्री अमित शाह हैं। वे सरदार पटेल बनना चाहते हैं, वे भी जिम्मेदारी नहीं लेंगे। अपनी असफलता को कैसे जीत में बदली जाती है, इसकी तकनीक उन्हें मालूम है।
आतंकवादी घटनाओं को कैसे बाजार में भंजाया जाता है, इसमें उन्हें महारत हासिल है। पुलवामा में हमारे नौनिहालों के चिथड़े उड़ गए, लेकिन न जांच हुई, न कोई नतीजा निकला। एक सामान्य से प्रश्न का जवाब वे नहीं दे पाये कि आरडीएक्स का जखीरा वहां कैसे आया? बीजेपी सरकार की डूबती नैया को पुलवामा की आतंकवादी घटना ने उबार लिया।
ग्यारह वर्ष पूर्व जो भी आतंकवादी घटनाएं होती थीं, उसके लिए कांग्रेस सरकार दोषी होती थी। ग्यारह वर्ष बाद भी तमाम घटनाओं के लिए कांग्रेस ही दोषी है। केंद्र में बैठी सरकार तो निर्दोष है। उसकी जरा भी जिम्मेदारी नहीं। कोई मरे, कोई जिये, इसमें भला केंद्र सरकार क्या करेगी? वह तो मंदिर बना कर उत्सव में लीन है। पचास वर्षों तक राज करने आयी है। बीच में वह कैसे इस्तीफा दे दे? ईश्वर का निर्देश है कि कुछ भी हो जाए, कुर्सी से हिलना नहीं है।
जब राजनीति में लोक-लज्जा खत्म हो जाय तो वह बेरहम हो जाती है। ऐसे ही वक्त में शहीदों की जरूरत पड़ती है। सिर पर कफ़न बांध कर गांव और गलियों में आवाज लगाने वाले लोगों की आवश्यकता होती है। यह भयावह वक्त है, जब मृत्यु से भी मुनाफा कमाया जा रहा है और मजा यह है कि देश में ऐसे लोग भी मौजूद हैं जो इस मृत्योत्सव का समर्थन भी करते हैं और जयकारे भी लगाते हैं। देश की ज्ञान-परंपरा क्या इतनी भोथरी और कुंद पड़ गई है कि वह देश की परिस्थितियों को समझ नहीं पा रही? राम की शक्तिपूजा में राम कहते हैं – ‘अन्याय जिधर है उधर शक्ति’। निराला की कही हुई बात आज सत्य प्रतीत होती है। वर्तमान का विकराल होता असत्य सत्य को लील रहा है।
लेकिन यह भी सच है कि देश पर जब गंभीर संकट आया है तो लोग एकजुट हुए हैं और लोग उठ खड़े हुए हैं। झंझावात में भी लोगों ने जान पर खेलकर आवाज लगाई है। हरिवंशराय बच्चन ने लिखा है –
“क्या हवाएँ थीं कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना
कुछ न आया काम तेरा शोर करना, गुल मचाना
नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका
किंतु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है।“

प्रोफेसर, पूर्व विभागाध्यक्ष, विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग
पूर्व डीएसडब्ल्यू,ति मां भागलपुर विश्वविद्यालय,भागलपुर






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