इस वीडियो को देखें (English में मूल):
Why India’s Democracy Doesn’t Make Sense to Western Experts | Salvatore Babones
जब हम लोकतंत्र की बात करते हैं, तो अक्सर पश्चिमी लोकतांत्रिक ढाँचे—जैसे अमेरिका या यूरोपीय देशों—का मॉडल ही हम सामने रखते हैं। लेकिन प्रोफेसर Salvatore Babones बताते हैं कि भारतीय लोकतंत्र की मजबूती इस पश्चिमी ढाँचे से अलग है, इसलिए पश्चिमी विचारकों को यह समझने में कठिनाई होती है कि भारत का लोकतंत्र क्या है और कैसे काम करता है। इनका यह दृष्टिकोण वीडियो में विस्तार से प्रस्तुत किया गया है।
सबसे पहले, Babones जोर देते हैं कि भारत के लोकतंत्र की उत्पत्ति पश्चिम से नहीं, बल्कि हिंदू धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलनों से हुई है—जिनसे एक संलग्न और गतिशील नागरिक समाज की बुनावट हुई, जिसकी पहचान पश्चिमी राजनीतिक सिद्धांतों में आमतौर पर नहीं होती है।
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इसके अलावा, वे बताते हैं कि पश्चिमी लोकतंत्रों और विशेषज्ञों के लोकतंत्र मॉनिटरिंग इंडेक्स जैसे V‑Dem Institute और Freedoms House द्वारा भारत को अक्सर ‘विफल’ या ‘अर्ध‑स्वायत्त’ (electoral autocracy) लोकतंत्र के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। लेकिन Babones का तर्क है कि ये रैंकिंग्स सांस्कृतिक पूर्वाग्रह और विशेषज्ञों की धारणा पर आधारित होने के कारण भारत की वास्तविक लोकतांत्रिक प्रगति को सही तरह से नहीं माप पातीं।
वास्तव में, Babones का कहना है कि “India maintains the world’s largest democracy with 75 years of continuous constitutional rule,” और उसके लोकतंत्र की निरंतरता और अस्तित्व पर पश्चिमी संस्कृतियों की तुलना में कहीं अधिक भरोसा किया जा सकता है।
उनकी पुस्तक “Dharma Democracy: How India Built the Third World’s First Democracy” इसी विषय का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है—कैसे भारत में लोकतंत्र का निर्माण धर्म, संस्कृति और सामाजिक एकीकरण की परंपराओं से हुआ, जो पश्चिमी विश्लेषणात्मक फ्रेमवर्क से अलग थे।
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वीडियो में Babones यह भी इंगित करते हैं कि पश्चिमी विश्लेषक अक्सर भारत को अपने राजनीतिक ध्रुवीकरण (लिबरल बनाम कन्ज़र्वेटिव) के संदर्भ में देखते हैं, जबकि भारत की वास्तविक राजनीति धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान से गहराई से जुड़ी हुई है—जैसे कि उन्हें मॉडल “Englishstan” (औपनिवेशिक, रूढ़िवादी, अंग्रेज़ी‑माध्यम) और “Hindustan” (लोक‑आस्थात्मक, हिंदी‑भाषी, पौराणिक) शहरी विरासत से अलग एक जीवंत जगत के रूप में देखना चाहिए।
निष्कर्ष
भारतीय लोकतंत्र की विशिष्टता को समझने के लिए हमें उसे केवल institution-based या पश्चिमी लोकतांत्रिक सिद्धांतों की कसौटी पर नहीं आंकना चाहिए। Babones का तर्क यह है कि भारत का लोकतंत्र उसकी समाज-संस्कृति, नागरिक भागीदारी, विविध धार्मिक और भाषायी पहचान, और इतिहास में गहरे जुड़े आंदोलन की देन है—जिसे पश्चिमी विशेषज्ञ अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं।
इस दृष्टिकोण से, यह स्पष्ट है कि भारत की लोकतांत्रिक ताकत को समझने में पश्चिमी मूल्यांकन टूल्स की सीमाएं हैं, और हमें अधिक समग्र और सांस्कृतिक-संदर्भ-संचालित समझ अपनानी चाहिए।

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