
'संविधान बचाओ' और 'संविधान हटाओ' की दृष्टि से लोकसभा चुनाव 2024 की समीक्षा

लोकसभा चुनाव में अपने बूते 240 सीट प्राप्त कर भाजपा अल्पमत में है। अब उसे सरकार बनाने के लिए जदयू और टीडीपी के समर्थन की अत्यधिक जरूरत है। उक्त दोनों दलों ने समर्थन देकर सरकार बनाने का रास्ता साफ कर दिया है। शुरुआत में एनडीए गठबंधन की सरकार की बात करने वाले नरेन्द्र मोदी ने पुनः अपने पुराने स्वेच्छाचारी रवैए का परिचय देना शुरू कर दिया है। इस बात की पुष्टि मंत्रीमंडल के गठन से स्पष्ट हो जाती है। लगभग सभी महत्वपूर्ण विभाग भाजपा के नेताओं को सुपुर्द कर दिया गया है और एनडीए के घटक दलों खासकर जदयू एवं टीडीपी को झुनझुना थमा दिया गया है।

लोकसभा चुनाव, 2024 के अधिकांश चुनावी विश्लेषण विषयनिष्ठ हो रहे हैं। इन विश्लेषणों में विश्लेषक एक कहानी गढ़कर निष्कर्ष तक पहुँचने की कोशिश कर रहा है। प्रस्तुत आलेख में लेखक ने चार वेरिएबल को आधार बनाते हुए चुनाव के छह चरणों का वस्तुनिष्ठ विश्लेषण किया है। यह विश्लेषण न केवल इस चुनाव को समझने में मदद करता है, बल्कि राजनीति और सामाजिक मनोविज्ञान को समझने में भी मददगार साबित होता है।

मानव-सभ्यता का यह स्वभाव रहा है कि वह आगे की ओर गति करती रही है। लाखों वर्षों के जद्दोजहद के बाद लगभग 500 साल पहले मानव-जाति जब वैज्ञानिक क्रांति के नए युग में प्रविष्ट हुई तो चेतना के स्तर पर उसके अंधविश्वास, जड़ मान्यताएँ और बद्ध धारणाएँ धीरे-धीरे तिरोहित होती गईं। ऐसा लगने लगा कि मानव-चेतना की बंद पलकें धीरे-धीरे खुल रही हैं और दैवी, रहस्यमयी और अबूझ परतें उघररही हैं।अब देहात के मिडिल स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा भी, खेतों में काम करने वाला अनपढ़ किसान भी जान गया कि वर्षा इंद्र की कृपा से नहीं, बल्कि वाष्पीकरण और वायु-दबाव की प्राकृतिक प्रक्रियाओं से होती है; वह जान गया कि चंद्रमा कोई देवता नहीं है, बल्कि सौरमंडल का एक उपग्रह है। वह यह भी जान गया कि चेचक शीतला देवी के प्रकोप का परिणाम नहीं है, बल्कि एक वायरल इंफ़ेक्शन है। अब वह प्राकृतिक क्रियाओं और वस्तुओं को अंधविश्वास और आस्था की दृष्टि से नहीं, बल्कि वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टि से देखने लगा।

अभी हाल ही में 14 फरवरी, 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में CRPF के जवानों पर विस्फोटक हमले में 40 से अधिक जवानों के मारे जाने के बाद एक बार फिर आतंकवाद के विरुद्ध हमारी जंग सवालों के घेरे में आ गई है. यह सवाल इसलिए भी ज्यादा गहरा हो गया है, क्योंकि वर्तमान सरकार पिछली सरकार की क्षमता पर प्रश्नचिह्न लगाकर लोगों का यह विशवास जीतने में सफल हुई थी कि आतंकवाद के खिलाफ और देश की सुरक्षा के लिए वह चाक-चौबंद व्यवस्था करेगी.