विपक्ष के नेता ने जब ब्राजील की मॉडल लेरिसा नेरी की तस्वीर हरियाणा मतदाता सूची में दिखाई और कहा कि इसके नाम पर बाइस वोट है, तब चुनाव आयोग को जांच कर बताना चाहिए था कि यह अनैतिक काम कैसे हो रहा है? अगर राहुल गांधी ग़लत कह रहे हैं तो उन्हें जेल में डालो या चुनाव आयोग, कम-से-कम गलती स्वीकार करे और देश से माफी मांगे। मगर चुनाव आयोग चुप है और बीजेपी के मंत्री किरण रिजिजू सक्रिय। वे टेलीविजन के पर्दे पर आकर राहुल गांधी को ही उपदेश देने लगे।
उपदेश देने का काम तो साधुओं का था, मगर वे या तो जेलों की हवा खा रहे हैं या अपने आश्रम में मौज मस्ती कर रहे हैं। रामभद्राचार्य तो संविधान के खिलाफ बोलने से भी परहेज नहीं करते। उन्हें उत्तर प्रदेश कभी मिनी पाकिस्तान लगता है तो कभी हिन्दू राष्ट्र के लिए कलेजा उछलता है तो कभी ब्राह्मणों में भी उत्तम ब्राह्मण की तलाश करता है। पता नहीं, उन्हें कैसे ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया? ज्ञानपीठ में भी क्या अंधे – बहरे लोग ही बैठे हैं? जब से उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला, मेरा तो इस पुरस्कार से विश्वास ही उठ गया। वैसे जो रवैया सरकार का है, उसका तार रामभद्राचार्य के बयान से जुड़ता है। रामभद्राचार्य को भी यह संविधान नहीं चाहिए, सरकारी पार्टी के कई लोग भारतीय संविधान को खारिज कर चुके हैं। सरकार भी इस शुभ कार्य में तन, मन और धन से लगी है। सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं को बर्बाद करने में उसने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। उसने लोकतंत्र की बुनियाद पर ही आक्रमण कर दिया है। मतदाता सूची को ही वह संदिग्ध बनाती जा रही है।
चुनाव आयोग स्वादहीन और गंधहीन होता जा रहा है। चुनाव आयोग के अध्यक्ष ज्ञानेश कुमार जब कहते हैं कि बहू-बेटियों की सीसीटीवी कैमरे में कैद तस्वीरें कैसे दे दें, तो पहली बात यह लगती है कि ऐसा आदमी भी आई ए एस अफसर बन रहा है और दूसरी बात लगती है कि जब आदमी षड्यंत्र में शामिल हो जाता है तो कितना बेवकूफ हो जाता है! उसे यह पता ही नहीं चलता कि वह क्या बोल रहा है और इसके नतीजे क्या होंगे?
ब्राजील की मॉडल लेरिसा नेरी अलग से परेशान है। वह कह रही है कि वह कभी भारत नहीं गई। उसे पत्रकार के लगातार फोन आ रहे हैं और इंस्टाग्राम पर अचानक उनके चाहने वालों की भीड़ उमड़ आयी है। माडल लेरिसा नेरी को मालूम ही नहीं है कि चुनाव आयोग उससे कितना प्यार करता है। वह केवल भारत के नागरिकों को ही वोटर नहीं बनाता, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लोगों को भी शामिल करता है। वह इतना मदमस्त है कि वह किसी को मतदाता सूची से हटा सकता है और किसी को जोड़ सकता है।
बिहार के पहले फेज में बहुत से लोग बूथ पर से लौट आये, क्योंकि उनका नाम मतदाता सूची में नहीं है। चैनलों पर भी ऐसे लोगों के साक्षात्कार दिखाए जा रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में मैं और मेरी पत्नी वोट देने बूथ पर गये। मेरा नाम था, पत्नी का डिलीट कर दिया गया था। यह तो तय लगता है कि मनमाने ढंग से मतदाता सूची में नाम जोड़े और घटाए जाते हैं।
लोग युवाओं को आह्वान कर रहे हैं कि देखो, तुम्हारे देश में यह सब हो रहा है। जो युवा नहीं हैं, वे क्या देश के नागरिक नहीं हैं? और फिर श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में युवाओं ने जो विद्रोह किया, उससे व्यवस्था बदल गई? मुझे लगता है कि व्यवस्था बदलने के बहुत धैर्य, वैचारिकी और संघर्ष की आवश्यकता है, इसे हल्के फुल्के में नहीं लेना चाहिए, वरना हश्र उपरोक्त आंदोलनों की तरह होगा।

प्रोफेसर, पूर्व विभागाध्यक्ष, विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग
पूर्व डीएसडब्ल्यू,ति मां भागलपुर विश्वविद्यालय,भागलपुर







