कोई भी राष्ट्र तब तक स्थायी एवं समावेशी विकास नहीं प्राप्त कर सकता, जब तक वह अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) को अपनी नीतियों के केंद्र में स्थान नहीं देता। ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति, अमेरिका का 20वीं सदी में तकनीकी महाशक्ति के रूप में उदय, और चीन का हालिया प्रौद्योगिकी प्रभुत्व — ये सभी इस तथ्य के प्रमाण हैं कि जिन देशों ने विज्ञान एवं नवाचार को सर्वोच्च प्राथमिकता दी, उन्होंने वैश्विक पटल पर अपनी अलग पहचान बनाई।
भारत ने हाल के वर्षों में राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान (एनआरएफ), सेमीकंडक्टर मिशन, क्वांटम प्रौद्योगिकी मिशन तथा उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) जैसी योजनाओं के माध्यम से विज्ञान-आधारित विकास की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की है। किंतु सरकारी आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत का आरएंडडी व्यय 2023 में 2.12 लाख करोड़ रुपये था, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का केवल 0.64% है। इसके विपरीत, चीन का आरएंडडी व्यय 24 लाख करोड़ रुपये (जीडीपी का 2.4%), दक्षिण कोरिया का 4.81%, अमेरिका का 3.45%, तथा इज़राइल का 5.44% तक पहुँच चुका है। यही कारण है कि वैश्विक नवाचार सूचकांक (2024) में भारत का स्थान 40वाँ, जबकि चीन का 12वाँ, अमेरिका का 3रा, और दक्षिण कोरिया का 5वाँ है।
विश्वविद्यालयों में शोध की वास्तविक स्थिति
भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 15 लाख इंजीनियरिंग स्नातक तैयार होते हैं, परंतु उनमें से आधे से अधिक को अनुसंधान या नवाचार आधारित रोजगार के अवसर नहीं मिल पाते। यूजीसी और शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट (2024) के अनुसार, देश में पीएचडी या एमफिल करने वाले विद्यार्थियों का अनुपात मात्र 15% है, जबकि अमेरिका, जर्मनी और दक्षिण कोरिया में यह आंकड़ा 30% से अधिक होता है।
भारतीय विश्वविद्यालयों में प्रति अध्यापक औसत अनुसंधान अनुदान 30 लाख रुपये से कम है, जबकि अमेरिका में प्रति प्रोफेसर यह राशि 2 करोड़ रुपये और चीन में 1 करोड़ रुपये से अधिक पहुँचती है। इसके अलावा, भारत में पेटेंट आवेदन दर प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 12-15 पेटेंट है, जबकि चीन में यह 250, अमेरिका में 140 और जापान में 160 से भी अधिक है।
शोधकर्ताओं के सामने प्रमुख चुनौतियाँ
विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच सहयोग की कमी, जिससे शोधार्थियों के प्रायोगिक कार्य का औद्योगिक अनुप्रयोग सीमित रह जाता है। पेटेंट, बौद्धिक संपदा अधिकार और शोध फंडिंग की प्रक्रिया में पारदर्शिता और समयबद्धता का अभाव। शोध परियोजनाओं के लिए स्थायी वित्तीय सहायता एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी, जिससे कई प्रतिभाशाली शोधार्थी विदेश पलायन कर जाते हैं। शोध परिणामों के व्यावसायीकरण के लिए स्टार्टअप्स और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने वाली नीति की अपर्याप्तता भी इस चुनौती को मजबूत बनाती है।
आरडीआई योजना: संभावनाएँ और महत्व
भारत सरकार द्वारा 1 जुलाई 2025 को स्वीकृत अनुसंधान, विकास एवं नवाचार (RDI) योजना, 1 लाख करोड़ रुपये के विशेष कोष के माध्यम से उभरते और सामरिक क्षेत्रों में निजी निवेश को प्रोत्साहित करेगी। योजना के तहत क्वांटम प्रौद्योगिकी, स्वच्छ ऊर्जा, एयरोस्पेस, सेमीकंडक्टर इत्यादि में शोध करने के लिए निजी कंपनियों को शून्य या अत्यल्प ब्याज दर पर दीर्घकालिक ऋण अथवा इक्विटी निवेश की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
यह योजना न केवल वित्तीय सहायता प्रदान करेगी, बल्कि सरकार स्वयं एंकर निवेशक के रूप में कार्य करेगी, जिससे विश्वविद्यालयों और निजी उद्योगों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहन मिलेगा। इस योजना में पारदर्शी और प्रतिस्पर्धात्मक प्रक्रिया से फंड आवंटन की व्यवस्था की गई है, ताकि वास्तविक शोध परियोजनाओं को ही समर्थन मिल सके।
अंतरराष्ट्रीय अनुभव से सीख
अमेरिका की डीएआरपीए (DARPA) ने विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों और निजी कंपनियों के सहयोग से इंटरनेट, सौर ऊर्जा, जैव चिकित्सा अनुसंधान आदि क्षेत्रों में क्रांति की। जापान के पूर्व एमआईटीआई ने शोध एवं उद्योग के बीच पुल बनाकर देश को 20वीं सदी में तकनीकी महाशक्ति बनने में सहायता की। चीन में अलीबाबा, हुआवेई जैसी कंपनियों ने पिछले दशक में आरएंडडी निवेश में तेजी से बढ़ोतरी की, और 2022 में चीन के निजी क्षेत्र का योगदान 70% से अधिक तक पहुँच गया। इस तरह के अंतरराष्ट्रीय अनुभवों से भारत भी सीख ले सकता है।
शोधकर्ताओं के दृष्टिकोण से सुझाव
विश्वविद्यालयों में पेटेंट सहायता केंद्र सक्रिय किए जाएँ, ताकि शोधार्थी अपने आविष्कारों का पेटेंट करा सकें। शोध अनुदान की प्रक्रिया को डिजिटल, पारदर्शी और समयबद्ध बनाया जाए। विश्वविद्यालयों में इंडस्ट्री-एकेडेमिया पार्टनरशिप को प्रोत्साहन दिया जाए, ताकि छात्र उद्योग के साथ शोध कर सकें। शोध फेलोशिप और छात्रवृत्ति योजनाओं में प्रतिस्पर्धात्मकता लाई जाए, जिससे प्रतिभाशाली विद्यार्थी प्रेरित हों। विश्वविद्यालय स्तर पर नवाचार आधारित स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिए इनक्यूबेशन केंद्र स्थापित किए जाएँ।
निष्कर्षत: यदि आरडीआई योजना को पूरी निष्ठा, पारदर्शिता और शोध-उन्मुख दृष्टिकोण से लागू किया गया और विश्वविद्यालयों में मौलिक शोध को सशक्त बनाने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया गया, तो भारत 2047 तक आत्मनिर्भर और तकनीकी नवाचार का वैश्विक नेता बन सकता है। इसके लिए नीति-निर्माताओं, विश्वविद्यालयों, उद्योग और शोधकर्ताओं के बीच सहयोग को प्राथमिकता देना अत्यंत आवश्यक होगा, ताकि भारत की युवा शक्ति अपने ही देश में रहकर नवाचार करे और राष्ट्र को वैश्विक नेतृत्व प्रदान करे।

हमलोग बिना वित्त केवल पित्त के दम पर चाय की चौपाटियों के फेरे लगाते, जेनरल बोगी में धक्के खाते, रैलियों जुलूसों में डुबकी लगाते, अपने मुट्ठी भर कद्रदानों के साथ सफरनबीस होकर अपने जीवन अनुभव का तप्त शोधपत्र तो लिखते ही हैं.. सरकारों में बैठे लोग इतने अहमक कैसे हो जाएंगे कि ऐसे सस्ते ज्ञान के स्रोत पर करोड़ों फूंक डालें ।