धार्मिक दंतकथाओं की कुहेलिका में खोती जाती वैज्ञानिक बहस

हम "मेरा भारत महान" का नारा लगाते हुए आदिम युग में प्रवेश कर रहे हैं।सा किया जा सकता है? क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सारी शीर्षस्थ संस्थाएं अप्रामाणिक और अविश्वसनीय हो गई है?

पहले तो राजनेता ही कबीलाई दंत कथाओं को वैज्ञानिक विकास बताकर ऐसी बात बोलते थे कि प्राचीन भारत में सर्जरी इतनी उन्नत थी कि आदमी के सिर पर हाथी का सिर लगा दिया जाता था। वहाँ तक उनकी बातों को हँसी-मजाक बनाकर उड़ा दिया जाता था कि इन अनपढ़ राजनीतिज्ञों का रोजगार ही ऐसी मूढ़तापूर्ण बातों से चलता है। लेकिन इसी तरह की जाहिल बातें जब वैज्ञानिक भी बताने लगें तो उसे क्या कहियेगा? —– आंध्रा यूनिवर्सिटी के कुलपति जी नागेश्वर राव ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस में कहा है कि प्राचीन भारत में स्टेम सेल और टेस्ट ट्यूब बेबी की तकनीक ज्ञात थी। कुलपति ने अपनी बात के समर्थन में महाभारत की कथाओं में वर्णित गांधारी के सौ पुत्र होने का हवाला दिया है। उस जाहिल कुलपति के शब्द गौर करने लायक हैं – “महाभारत में बताया गया है कि 100 अंडे 100 घड़े में फर्टीलाइज किये गए। क्या वे टेस्ट ट्यूब बेबी नहीं थे?” —– इस अनपढ़ को इतना भी होश नहीं है कि मनुष्य अंडज प्राणी नहीं है।

यह बात न तो किसी धर्मगुरु के द्वारा कही गई है और न ही किसी अनपढ़ के द्वारा। बल्कि उस भारतीय विज्ञान कांग्रेस में कही गई है, जहाँ देश भर के वैज्ञानिक जुटकर वैज्ञानिक विमर्श करते हैं। किसी के द्वारा ऐसी बातों को बोले जाने से भी ज्यादा हैरत की बात है कि देश भर के वैज्ञानिकों के सम्मुख ऐसी बात कही गई और जूते-चप्पल नहीं फेंके गए। हमारे बौद्धिक प्रतिरोध की क्षमता का यह हश्र हो गया है!

इस तरह की बात लगातार परोसी जा रही है – शीर्षस्थ नेताओं के द्वारा भी और प्रबुद्ध वैज्ञानिकों के द्वारा भी। यह अंध चेतना की अनायास अभिव्यक्ति मात्र नहीं है। मैं इसे कबीलाई युग की मानसिकता और चेतना की वापसी की साजिश की सायास चेष्टा के रूप में देखता हूँ। इस साजिश में नेता तो हैं ही, पद-लोलुप बुद्धिजीवी भी शामिल हैं।

हम “मेरा भारत महान” का नारा लगाते हुए आदिम युग में प्रवेश कर रहे हैं।सा किया जा सकता है? क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सारी शीर्षस्थ संस्थाएं अप्रामाणिक और अविश्वसनीय हो गई है?

Dr. Anil Kumar Roy
Dr. Anil Kumar Roy

कार्यकर्ता और लेखक
डॉ. अनिल कुमार रॉय सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए अथक संघर्षरत हैं। उनके लेखन में हाशिए पर पड़े लोगों के संघर्ष और एक न्यायसंगत समाज की आकांक्षा की गहरी प्रतिबद्धता परिलक्षित होती है।

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