शिक्षा में अभिरुचि रखने वाले हर शख्स के लिए यह जानना दिलचस्प होगा कि लोकसभा के अतारांकित प्रश्न संख्या 1094 के उत्तर में दिनांक 17 दिसंबर, 2018 को शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह ने क्या जवाब दिया।
आर टी ई फोरम के हवाले से देवजी एम पाटिल, सुनील कुमार सिंह और ए टी नाना पाटिल ने लोकसभा में प्रश्न किया था कि 1. क्या शिक्षा का अधिकार कानून पूर्णतया केवल 9.08% विद्यालयों में ही लागू किया जा सका है?, 2. क्या 10% विद्यालय केवल एक शिक्षक के भरोसे चलते है?, 3. क्या आधे से अधिक विद्यालयों में सुरक्षित पेयजल और बालिका टॉयलेट का अभाव है?, 4. क्या विगत कुछ वर्षों में लगभग दो लाख से अधिक विद्यालयों को बंद किया जा चुका है?, 5. क्या सरकार निजी विद्यालयों के माध्यम से शिक्षा का रास्ता तलाश रही है? कुछ और भी प्रश्न थे।
इन प्रश्नों के जवाब में शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह ने बताया कि प्राथमिक विद्यालय 10.48 लाख से बढ़कर 10.73 लाख हो गए हैं। 98.67% विद्यालयों में पेयजल की सुविधा उपलब्ध है। स्वच्छ विद्यालय पहल के तहत 4,17,796 विद्यालयों में पृथक्कृत शौचालयों का निर्माण हुआ है। और, आर टी ई के मानक की तुलना में प्राथमिक विद्यालयों में 22:1 और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 18:1 का छात्र – शिक्षक अनुपात है। यह भारत सरकार के राज्य शिक्षा मंत्री का लोकसभा में दिया गया जवाब है।
अब शिक्षा से सरोकार रखने वाला कोई भी व्यक्ति इन उत्तरों से कैसे संतुष्ट हो जा सकता है? बिहार में ही 1773 विद्यालय बंद कर दिए गए और फिर 1300 विद्यालयों को बंद किए जाने की प्रक्रिया चल रही है। बगल के झारखंड में अधिसूचना जारी कर दी गई है कि एक पंचायत में एक से अधिक उच्च प्राथमिक विद्यालय नहीं हो सकते हैं। इसी तरह पूरे देश में दो लाख से अधिक विद्यालय बंद किए जा चुके हैं, यह बिना बताए भी सारे लोग जानते हैं। लेकिन शिक्षामंत्री को विद्यालयों की बढ़ती हुई संख्या का पता है। शिक्षा मंत्री को तो यह भी पता है कि विद्यालयों में आर टी ई के द्वारा तय किए गए मानक से अधिक शिक्षक कार्यरत हैं।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में आया था। सदन को संतुष्ट करते हुए शिक्षा मंत्री ने 2009 की तुलना में 2017 के विद्यालयों की संख्या बताई है। जिस समय के आंकड़े से यह तुलना की गई है, उस समय तो जमीन खरीद कर भी विद्यालय खोलने की बात की ही जाती थी। विद्यालय तो बड़ी संख्या में बंद होने शुरू हुए हैं इधर ढाई – तीन वर्षों में। इधर हाल के वर्षों में बंद हुए विद्यालयों के बारे में न बताकर 2018 की स्थिति बताने के लिए 2009 से तुलना की गई है।
जब लोकसभा में ही इस तरह के फरेबी आंकड़े पेश किए जाते हैं तो फिर किस पर भरोसा किया जा सकता है? क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सारी शीर्षस्थ संस्थाएं अप्रामाणिक और अविश्वसनीय हो गई है?