इतिहास क्या है? इसको परिभाषित करते हुए जो सबसे सामान्य बात कही जाती है, वह है कि इतिहास बीती हुई कहानियाँ है। प्राय: इसी अवचेतन अवधारणा पर इतिहासकार व्यतीत समय की अंधी घाटियों से कुछ अनुकूल तथ्यों, घटनाओं और तिथियों का संकलन करके मनोगत इमारतें खड़ी करते रहे हैं। परंपरागत इतिहास-लेखन की शैली व्यतीत की वादियों से कुछ चिह्न संकलित करके उन्हें शृंखलाबद्ध करने की रही है।
इतिहास-लेखन की इस पारंपरिक शैली में इतिहासकार घटनाओं का अपने मन पर पड़ने वाले प्रभाव के रूप में लेखन करता है, जिसमें सम्राटों और साम्राज्यों के उत्थान-पतन का वर्णन होता है। इसके लिए वह स्थान, घटनाओं और तिथियों का एक क्रम प्रस्तुत करता है और इतिहास-निर्माण के नायक के रूप में किसी व्यक्ति के महत्व का प्रतिपादन करता है। चूँकि ऐतिहासिक तथ्यों और घटनाओं का मन पर पड़ने वाले प्रतिक्रियात्मक प्रभाव के रूप में यह इतिहास-लेखन होता है, इसलिए इतिहासकार के अंतर से उसके निष्कर्ष में भी अंतर आ जाता है। जैसे, मुगलकाल के इतिहास लेखन में अलग-अलग इतिहासकार, अपने मनोनुकूल अलग-अलग तरह के तथ्यों के संकलन करके अलग-अलग निष्कर्षों पर पहुँच सकते हैं। इस तरह इतिहास-लेखन की यह पद्धति पाँच सूत्रों पर टिकी हुई है – तथ्य, घटनाएँ, तिथियाँ, कोई सम्राट या साम्राज्य और मनोगत प्रभाव। चूँकि इस पद्धति में ऐतिहासिक विकास के नियम या वैज्ञानिकता का अनुपालन नहीं किया जाता है, इसलिए इतिहास-लेखन की यह पद्धति भाववादी कहलाती है।
लेकिन इतिहास-लेखन क्या सच्ची घटनाओं और तिथियों से पूर्ण काव्यात्मक उद्गार-मात्र है? लाखों वर्षों में मानव-विकास ने जो मंज़िलें तय की हैं, क्या वे असंगत, नियमविहीन और तर्कसंगत अंतर्संबंधों के बिना ही तय हुई हैं? क्या हमारी सभ्यता और सभ्यता के पूर्व का मानव-जीवन केवल तिथियों और घटनाओं का संकलन-मात्र है? क्या उनमें कारण-कार्य संबंध का कोई नियम नहीं है? क्या दुनिया के ऐतिहासिक विकास में कोई एक सर्वव्यापी नियम भी है? क्या सतत विकास की उस धारा को पहचाना और तर्कसंगत विश्लेषित किया जा सकता है? सदियों तक इतिहास-प्रबुद्ध लोगों को यह प्रश्न आंदोलित करता रहा। परंतु कोई सूत्र, कोई रास्ता नहीं मिल रहा था।
सेब को गिरते हुए तो सबने देखा था। परंतु वह ऊपर न जाकर नीचे ही क्यों गिरता है, उसका कारण न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के नियम की खोज करके बताया। ठीक उसी प्रकार इतिहास का विकास इसी प्रकार क्यों हुआ और पूरी दुनिया का इतिहास कुछ निश्चित चरणों से गुजरते हुए ही विकसित क्यों हुआ, इसका पता सबसे पहले मार्क्स-एगेल्स लगाया। इस तरह पहले के लिखित समस्त इतिहास-पद्धति से भिन्न उन्होंने भौतिकवादी इतिहास-दृष्टि स्थापित की। मार्क्स-एंगेल्स के इस भौतिकवादी इतिहास-दृष्टि को ऐतिहासिक भौतिकवाद कहा जाता है। इस ऐतिहासिक भौतिकवाद में कार्य-कारण संबंध की व्याख्या है। इसलिए इसके वैज्ञानिक नियम हैं। ये नियम हैं – भौतिक परिस्थितियाँ, भौतिक द्वंद्ववाद, श्रम की भूमिका और सार्वदेशिकता।
मार्क्स-एंगेल्स ने इतिहास की काइयों को कुरेदते हुए पाया कि इतिहास का विकास न तो सम्राटों के शौर्य से हुआ है और न ही महापुरुषों की महत्ता से। ये तो बस इतिहास के कालचक्र के संचालक भर थे। वास्तविक तो वे वस्तुगत परिस्थितियाँ थीं, जिसके अंतर्द्वद्व ने इतिहास के चक्के का घूमना अनिवार्य कर दिया था। जैसे फ्रांस की प्रसिद्ध क्रान्ति में वालटेयर, मोंटेस्क्यू, रूसो आदि का योगदान महत्वपूर्ण है। परंतु क्रान्ति इनके या इनके जैसे लोगों के कारण नहीं हुई। बल्कि क्रान्ति होने के पीछे सामंती संबंधों की वे खस्ताहाल वस्तुगत या भौतिक परिस्थितियाँ काम कर रही थीं, जिसे ध्वस्त होकर पूँजीवाद और लोकतन्त्र का उदय होना ही था। नायकों की भूमिका उसे गति और दिशा देने भर की है, न कि उत्पन्न करने की। भौगोलिक परिस्थितियाँ और जातीय विशेषताएँ भी इस अवश्यंभावी वस्तुगत परिणाम को नियंत्रित नहीं करतीं, उसकी गति को घटा-बढ़ा सकते हैं, बस! इस तरह ऐतिहासिक भौतिकवाद इतिहास के नियमों की भौतिकवादी व्याख्या करता है। एंगेल्स के शब्दों में – “पिछले सारे इतिहास को भोले क्रांतिकारी ढंग से सीधे रूप में रद्दी की टोकरी में फेंक देने के विपरीत आधुनिक भौतिकवाद पिछले इतिहास में मानव-जाति के विकास की प्रक्रिया को देखता है और उसकी गति के नियमों का पता लगा पाना कर्तव्य समझता है।“ (ड्यूहरिंग मत-खंडन, पृष्ठ 45) वस्तुगत परिस्थितियाँ मानव-चेतना से स्वतंत्र होती हैं, जिस तरह प्रकृति के नियम। परंतु यह वस्तुगतता प्रकृति की वस्तुगतता से भिन्न है। प्रकृति जहाँ स्वत:स्फूर्त शक्तियों से संचालित है, वहीं मानवीय क्रियाशीलता के पार्श्व में बुद्धि की सचेतनता होती है और होता है एक निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास।
वस्तुत: द्वाब्द्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धान्त ही पूरे मार्क्सवादी चिंतन का आधार बिन्दु है। ऐतिहासिक भौतिकवाद का भी। अर्थात ऐतिहासिक भौतिकवाद का सिद्धान्त भौतिक द्वंद्ववाद के नियमों के अनुसार निर्धारित होता है। प्रत्येक वर्गाधारित समाज में एक सामाजिक द्वंद्व अहर्निश चलता रहता है। कालांतर में यही द्वंद्व लगातार सघन होते-होते ऐतिहासिक विकास का कारण बनाता है। इसीलिए V. G. Afanasyew ने में कहा कि ऐतिहासिक भौतिकवाद द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की ही समाजशास्त्रीय समझ है – “Marx and Engels revealed the dialectical materialism, character of development not only by nature but also of society, creating thereby the only scientific theory of social development, historical materialism.” (Marxist Philosophy, पृष्ठ 102)
इस ऐतिहासिक भौतिकवाद में श्रमिक वर्ग की परिवर्तनकारी महत्ता स्थापित होती है। श्रमिक वर्ग की महत्ता का कारण श्रम का महत्वपूर्ण होना है। श्रम के महत्वपूर्ण होने के कारण ही श्रम करने वाला श्रमिक वर्ग महत्वपूर्ण हो जाता है। एंगेल्स ने श्रम को मानव-अस्तित्व की प्रथम मौलिक शर्त बताते हुए कहा है – “वह समूचे मानव-अस्तित्व की प्रथम मौलिक शर्त है, और इस हद तक प्रथम मौलिक शर्त है कि एक अर्थ में यह कहना होगा कि स्वयं मानव का सृजन भी श्रम ने किया।“ श्रम के द्वारा ही उत्पादन के औज़ार बने, जिससे मनुष्य ने प्रकृति की निश्चेष्टता में दखल देकर अपनी भौतिक स्थिति में परिवर्तन किया। इस तरह आज मानव की जो स्थिति है, वह श्रम के कारण ही है। वर्गों से युक्त समस्त सभ्य समाजों में यह काम मेहनतकश वर्ग करता है और इतिहास की गति को प्रभावित करता है। इस तरह इतिहास-निर्माण में श्रमिक वर्ग की भूमिका निर्णायक होती है।
ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिद्धांतों की व्याप्ति सार्वदेशिक है। यह स्थानीय घटनाओं और लड़ाइयों के बदले इतिहास के उन सूत्रों की व्याख्या करता है, जिससे, थोड़ा आगे-पीछे सही, संसार के सारे देशों में एक ही तरह का व्यवहार दिखाता है। अर्थात ऐतिहासिक भौतिकवाद में अब तक के ज्ञात इतिहास के जो पायदान बताए हैं, वे सारे देशों में एक समान ही हैं। वे पायदान हैं – आदिम साम्यवाद, दासप्रथा, सामंतवाद और पूँजीवाद। यह संभव है कि इंग्लैंड में पूँजीवाद पहले आया हो, लेकिन देर-सवेर उसे नेपाल में भी आना ही था। कहने का यह मतलब कि इतिहास-विकास की प्रक्रियाओं में सार्वदेशिक समानता की व्याप्ति होती है।
यह ऐतिहासिक भौतिकवाद किसी युग-विशेष में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक प्रक्रियाओं और नेतृत्वकारी चिंतन की धारा को समझने की दृष्टि देता है। इस दृष्टि से हम देख सकते हैं कि इस प्रकार के सामाजिक संबंध क्यों हैं या इसी प्रकार की राजनीतिक सत्ता क्यों है या इसी प्रकार के आर्थिक संबंध क्यों हैं।
इस प्रकार मार्क्स-एंगेल्स ने इतिहास को निर्धारित करने वाले उस मूल तत्व को खोज निकाला, जिसे ऐतिहासिक भौतिकवाद कहते हैं। इस खोज ने इतिहास को देखने की दृष्टि को भाववादी से भौतिकवादी बनाकर क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया।