नारद-गूगल संवाद (पीएम केयर्स फंड)

गूगल नारद के देशप्रेम से परिचित था। इसलिए उसे पक्का विश्वास था कि जवाब जानके नारद का माथा घूम जाएगा। इसलिए विनयपूर्वक उसने जवाब दिया — महाराज, इस पीएम केयर्स के अध्यक्ष राष्ट्रनायक स्वयं हैं। अन्य ट्रस्टी हैं श्री अमित शाह, श्री राजनाथ सिंह और श्रीमती निर्मला सीतारमैया। ये चारों व्यक्ति एक ही सत्ताधारी राजनीतिक दल के हैं और अभी आर्यावर्त की सरकार के विभिन्न विभागों के मंत्रीपद पर विराजमान हैं। इस तरह इस ट्रस्ट में एक ही राजनीतिक दल के व्यक्ति सदस्य हैं। किसी अन्य दल या सामाजिक संगठन को इसमें शामिल नहीं किया गया है। इस पारदर्शिता के अभाव में बुद्धिजीवी, जो अब विलुप्तप्राय प्रजाति की श्रेणी में हैं, यह अनुमान लगाते हैं कि यह सत्ताधारी दल के निजी फ़ंड की तरह इस्तेमाल किया जाएगा।

सुबह से ही नारद मुनि को ढेर सारे फ़ोन आ चुके थे।उनके कार्यालय में कोई नोटिफ़िकेशन नहीं आया था, लेकिन पता नहीं लोगों को किस स्रोत से पता हो गया था कि पीएम केयर्स फ़ंड में, कोरोना वायरस से उत्पन्न आपात स्थिति से उबरने के लिए, प्रधानमंत्री के द्वारा उदारतापूर्वक दान देने की अपील की गयी है और रसूखदार लोग उसमें वर्षा की गिरती हुई बूँदों की तरह टपाटप पैसा डालते जा रहे हैं। इस पवित्र आर्यावर्त के उर्वर-बुद्धि आर्यजन अपनी बौद्धिक उर्वरता का उपयोग करते हुए अनेक अफ़वाहों का आदान-प्रदान कर बुद्धि की उपयोगिता का सुख प्राप्त करते रहते हैं। यही इस भूमि की पारंपरिक विशेषता रही है। इसलिए नारद मुनि को पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ कि उनके संज्ञान में आए बिना इतनी बड़ी और इस तरह की बात कैसे हो सकती है।विश्वास इसलिए नहीं हुआ क्योंकि गंभीर रोगियों एवं आपदा से निबटने के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष की व्यवस्था पहले से ही है, जिसकी देखभाल के लिए सचिव स्तरीय अधिकारी रहता है, हर साल उसका ऑडिट होता है और उसे प्रकाशित किया जाता है।फिर उसी काम के लिए यह नई दानपेटी निर्मित करने की क्या ज़रूरत आ पड़ी?

लेकिन तभी नारद को ध्यान आया कि आर्यावर्त के नए राष्ट्र नायक को इतिहास-परिवर्तन में विशेष आह्लाद आता है। नारद तो अनादिकाल से सृष्टि को देखते आ रहे हैं। इसलिए उन्हें २२१ ई. पू. के चीनी सम्राट किन शी हुआंग की याद हो आई। किन शी हुआंग को यह श्रेय तो जाता है कि उसने बिखरे हुए राज्यों को समेटकर पहली बार विशाल चीनी साम्राज्य की संरचना तो खड़ी की थी, मगर उसने अपने पहले की दर्शन और इतिहास की सारी पुस्तकों को जलवा दिया था और ४६० विद्वानों को इसलिए ज़िंदा दफ़न करवा दिया ताकि इतिहास उसके साथ ही शुरू हो और अतीत के साथ उसके शासनकाल की तुलना न की जा सके। फिर उसने ख़ुद और दूसरे से इतिहास और दर्शन की पुस्तकें लिखवाईं। आर्यावर्त का राष्ट्र्नायक भी स्थानों, संस्थाओं और कार्यक्रमों के नामों में ही परिवर्तन नहीं, बल्कि इतिहास-बोध और ऐतिहासिक तथ्यों में भी परिवर्तन करवाकर इतिहास-रचना का श्रेय अपने नाम करना चाहता है।….. नारद को लगा, कहीं यह पीएम केयर्स भी इसी परिवर्तक-बुद्धि का नतीजा तो नहीं है। नारद चकरा रहे थे कि प्रधानमंत्री राहत कोष के रहते, बिना किसी विज्ञप्ति के, इस पीएम केयर्स का राज क्या है?

अपने ज्ञान के अद्यतनीकरण के लिए नारद ने सूचना-संग्राहक गूगल को तलब किया। सारी पोथी-बही के साथ उपस्थित होकर गूगल ने साष्टांग दण्डवत करके पुष्टि की — हाँ महर्षि, आर्यावर्त के राष्ट्रनायक ने प्रधानमंत्री राहत कोष से अलग पीएम केयर्स नाम से नए फ़ंड की स्थापना की है।

नारद का माथा ठनका कि अभी तक वे केवल पुराने फ़ंड के नाम-परिवर्तन की आशंका कर रहे थे। लेकिन यह तो उससे बड़ी और बिल्कुल भिन्न बात है।उनकी जिज्ञासा बढ़ी। पूछा — अच्छा गूगल, इस पीएम केयर्स का लीगल स्टेटस क्या है?

नारद इस फ़ंड के क़ानूनी पक्ष के बारे में जानना चाहते थे।

गूगल ने बताया — महाराज, कहा जाता है कि यह ट्रस्ट है। लेकिन इसके निबंधन की जानकारी आर्यावर्त की सरकार की वेबभूमि पर प्रदर्शित नहीं किया गया है और न ही इसका संविधान कहीं प्रकाशित किया गया है। इसलिए इसके बारे में ठीक-ठीक बता पाना कठिन है। इसकी पहली बैठक कब, कहाँ और किन लोगों के साथ हुई, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं उपलब्ध है। इसके बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी गई है कि आपदाओं का सामना करने के लिए पूर्व से ही विद्यमान प्रधानमंत्री राहत कोष के होते हुए केवल एक रोग का सामना करने के लिए पीएम केयर्स के नाम से एक नए कोष के गठन की क्या आवश्यकता हो गई? आर्यावर्त के समाचार पत्रों से प्राप्त सूचनाओं के अनुसार हे मुनिवर, यह नव गठित फ़ंड नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की अधिकार-परिधि से बाहर होगा और ट्रस्ट होने के नाते सूचना का अधिकार इस फ़ंड तक अपनी पहुँच नहीं बना पाएगा। आर्यावर्त की वेबभूमि पर प्रदर्शित जानकारी के मुताबिक़ कोविद १९ बीमारी में लोगों की सहायता पहुँचाने के लिए Prime Ministrer’s Assistance and Relief in Emergency Situations Fund (PM CARES) की स्थापना की गई है। ज्ञात सूचनाओं के अनुसार इस फ़ंड के खाते कई बैंकों में खोले गए हैं और विदेशी दानकर्ताओं के लिए अलग खाता है।

‘ट्रस्ट’ सुनकर नारद के कान खड़े हो गए। फिर भी वे गूगल के मुँह से ट्रस्टी की भूमिका के बारे में जानकर आश्वस्त हो लेना चाहते थे। पूछा — ट्रस्टी का क्या अधिकार होता है ट्रस्ट में?

गूगल ने जानकारी दी — हे मुनि, ट्रस्ट में प्रधान ट्रस्टी, अन्य ट्रस्टियों की सहमति से, सर्वाधिकार संपन्न होता है।

अब नारद की जिज्ञासा और बढ़ी — अच्छा गूगल, यह तो बताओ कि इस पीएम केयर्स में ट्रस्टी कौन-कौन हैं?

गूगल नारद के देशप्रेम से परिचित था। इसलिए उसे पक्का विश्वास था कि जवाब जानके नारद का माथा घूम जाएगा। इसलिए विनयपूर्वक उसने जवाब दिया — महाराज, इस पीएम केयर्स के अध्यक्ष राष्ट्रनायक स्वयं हैं। अन्य ट्रस्टी हैं श्री अमित शाह, श्री राजनाथ सिंह और श्रीमती निर्मला सीतारमैया। ये चारों व्यक्ति एक ही सत्ताधारी राजनीतिक दल के हैं और अभी आर्यावर्त की सरकार के विभिन्न विभागों के मंत्रीपद पर विराजमान हैं। इस तरह इस ट्रस्ट में एक ही राजनीतिक दल के व्यक्ति सदस्य हैं। किसी अन्य दल या सामाजिक संगठन को इसमें शामिल नहीं किया गया है। इस पारदर्शिता के अभाव में बुद्धिजीवी, जो अब विलुप्तप्राय प्रजाति की श्रेणी में हैं, यह अनुमान लगाते हैं कि यह सत्ताधारी दल के निजी फ़ंड की तरह इस्तेमाल किया जाएगा।

नारद मुनि अवाक् रह गए। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि जो लोकतांत्रिक सरकार लोकहित के लिए होती है, वह, सत्ता की शक्तियों का उपयोग कर, इतना बड़ा दलीय व्यवहार कैसे कर सकती है? चूँकि यह सत्ताधारी दल के द्वारा किया जा रहा है, इसलिए यह आभास होता रहेगा कि सरकार के द्वारा किया जा रहा है। न, ऐसा नहीं होगा। सत्ता-प्राप्त कोई भी राजनीतिक दल इतनी घोर प्रवंचना कैसे रच सकती है? गूगल अवश्य ही भ्रम का शिकार है।

उन्होंने कुछ नाराज़ होकर पूछा — ठीक से पता करके बताओ की क्या विपक्ष के किसी व्यक्ति, ब्यूरोक्रेट और सामाजिक कार्यकर्ता को इसमें शामिल नहीं किया गया है? घुटनों तक झुककर अत्यंत विनम्रतापूर्वक गूगल ने बताया — नहीं महाराज, यह सच है कि अन्य किसी को इसमें शामिल नहीं किया गया है।

दुनिया की सारी करतूतों से भिज्ञ मुनि के माथे पर चिंता की लकीरें पड़ गईं। थोड़ी देर चुप रहकर वे विचार करते रहे। माथे की लकीरें ज़्यादा गहरी होती चली गईं। कुछ सोचकर उन्होंने पूछा — क्या तुम्हें पता है कि इस नवनिर्मित फ़ंड में किसी ने दान भी किया है?

गूगल ने जानकारी दी — हाँ मुनिवर! इस नवनिर्मित फ़ंड को आर्यावर्त की वित्तमंत्री ने आयकर नियम में संशोधन करके कोरपोरेट्स के सामाजिक दायित्व के रूप में लाभांश का २ प्रतिशत अंशदान पाने के योग्य बना दिया है। इसलिए इस फ़ंड में कोरपोरेट व्यवसायीजन मुक्त हस्त दान कर सकते हैं। आंगल वर्ष २०२० के मार्च मास के २८वें दिन राष्ट्र नायक के द्वारा फ़ंड में दान करने की अपील होने में देर थी कि इस फ़ंड में उसी तरह दान की बाढ़ आ गई, जैसे वर्षाकाल में उफनती हुई नदी का बाँध टूट जाए। एक से बढ़कर एक दानकर्ता आगे आने लगे और उनमें होड़ लग गई।

नारद को आर्यावर्त के दानवीरों की तत्पर्ता पर घोर आश्चर्य हुआ। हज़ारों वर्षों से वे इस भूमि के वासियों की वाचिक उदारता और व्यावहारिक संकीर्णता से बख़ूबी परिचित थे। जिस भूमि के वासी भगवान को अर्पित प्रसाद भी उठाकर अपने घर ले जाते हैं, वहाँ के वासियों की ऐसी अप्रत्याशित उदारता के अभिप्राय को मुनिवर समझ नहीं सके।

कुछ स्पष्ट होने के उद्देश्य से उन्होंने पूछा — गूगल, क्या तुम्हारे पास सूचना है कि किन लोगों ने अपनी दानवीरता का प्रदर्शन किया है? हो सके तो उनका परिचय भी बताना। गूगल ने अपनी बही खोलकर बताना शुरू किया — मुनिराज, एक अक्षय कुमार हैं। हिंदी चित्रपट के अभिनेता हैं। पिछले निर्वाचन के काल में इन्होंने ही पत्रकारिता का अभिनय करते हुए राष्ट्रनायक का साक्षात्कार लेकर राष्ट्रनायक के आम खाने, हिंदी बोलने, कविता लिखने आदि के गूढ़ रहस्यों का उद्घाटन किया था। इस अभिनेता ने फ़ंड की घोषणा होने के तपाक बाद २५ करोड़ रुपए दान करने की घोषणा की। महाराज, इसी अक्षय कुमार ने ‘भारत के वीर’ नाम से एक ट्रस्ट का निर्माण करके उसमें १२५ करोड़ रुपए दान दिए। बाद में आर्यावर्त के वित्त मंत्रालय ने उसका अधिग्रहण कर लिया। उसमें जमा पैसे को किस तरह ख़र्च किया गया, इसकी कोई जानकारी अब उपलब्ध नहीं हो पा रही है।

नारद की आँखें संकुचित हो रही थीं। उनकी भवें सिकुड़ती जा रही थीं और लकीरें गहरी हो रही थीं। उनकी दिव्यदृष्टि इस नायक और राष्ट्रनायक की मिलीभगत के कुछ अस्पष्ट संकेत पढ़ पा रही थी।

नारद — और?

गूगल — महाराज, अदानी ग्रूप के अध्यक्ष गौतम अदानी ने १०० करोड़ दान करने की घोषणा की है। अहमदाबाद नगर के व्यापारी गौतम अदानी को राष्ट्रनायक का अत्यंत आत्मीय माना जाता है। इस आत्मीयता के कारण ही Special Economic Zone से जुड़े नियमों में परिवर्तन करके अदानी समूह को लाभ पहुँचाया गया था। इसी अदानी समूह के द्वारा बांग्लादेश को बिजली सप्लाई करने के लिए झारखंड प्रांत के गोड्डा में १६०० मेगावाट का बिजली संयंत्र लगाने के लिए ऊर्जानीति में बदलाव करके एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया था। चीनी कंपनियों के साथ हुए २६ समझौतों में सर्वाधिक समझौते अदानी समूह के साथ ही हुए।

गूगल ने कहना जारी रखा — माहाराज, चंदा देने वाले तो लाखों लोग हैं। राष्ट्रनायक की अपील के अड़तालीस घंटे के भीतर ही साढ़े तीन लाख लोगों ने पीएम केयर्स में चंदा दिया था और वह सिलसिला अभी भी जारी है। मुकेश अंबानी ने ५०० करोड़, जिंदल समूह के सज्जन जिंदल ने १०० करोड़, वेदांत ने १०० करोड़ दिया है। लेकिन इन दानवीरों में टाटा समूह की विशेष चर्चा है। उसने १५०० करोड़ देकर सबको भौंचक कर दिया है।

गूगल को यक़ीन था कि इस विस्मयकारी दान पर नारद अवश्य जिज्ञासा व्यक्त करेंगे। इसलिए वह स्वयं ही कहे जा रहा था — महाराज, वैसे तो टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा ने कुछ विशेष कंपनियों की तरफ़दारी के लिए वर्तमान सरकार की आलोचना भी की है। परंतु सत्ताधारी दल को दान करने में उन्होंने सदैव उदारता प्रदर्शित की है। २०१९ के चुनाव में भी उसने क़रीब ६०० करोड़ राजनीतिक दलों को दान किया था। (वायर, ३० अप्रील, २०१९) इस बार भी उसने १५०० करोड़ दिया है।

तो इसका तात्पर्य यह है कि मुख्य रूप से चित्रपट और उद्योग जगत की हस्तियों ने इस फ़ंड में दान करने में उत्साह का प्रदर्शन किया है। — गूगल के द्वारा प्रस्तुत की गई सूची को देखकर नारद ने निष्कर्ष निकाला।

हाँ महाराज, इन्हीं दो क्षेत्रों के दानवीर विशेष चर्चित हुए हैं, गूगल ने सहमति दी।

गूगल, ज़रा यह समझाने की कोशिश करो तो कि जो व्यावसायी वर्ग एक-एक पाई के मुनाफ़े के लिए किसी भी हद तक चला जाता है, वह अपने लाभ की गुंजाईश देखे बिना इतनी बड़ी-बड़ी रक़म कैसे न्योछावर कर सकता है? — नारद ने गूगल से पूछा।

गूगल ने बड़ी विनम्रतापूर्वक जवाब दिया — महाराज, मैं सूचना संग्राहक हूँ। सूचनाएँ दे सकता हूँ, सूचनाओं के मर्म को नहीं समझा सकता।

नारद समझ रहे थे कि गूगल केवल सूचना संग्राहक है, समझना-समझाना उसका काम नहीं है। लेकिन नारद तो समझ सकते थे। और, जैसे-जैसे वे समझ रहे थे, वैसे-वैसे उनका उनका मस्तिष्क अस्वाभाविकता से चकराता जा रहा था।

नारद माथा पकड़े थोड़ी देर तक बैठे रहे। फिर पूछा — और भी किसी अन्य स्रोत से इस फ़ंड में धन-संग्रह किया जा रहा है?

गूगल ने बताया — महाराज, इस पीएम केयर्स में सार्वजनिक उपक्रम के संस्थान भी आगे बढ़-बढ़कर दान कर रहे हैं। रेलवे की तो बात छोड़िए महाराज। वह तो व्यावसायिक उपक्रम है, सीबीएसई जैसे विशुद्ध शैक्षिक संस्थानों ने भी इस फ़ंड में दान करने में अभिरुचि दिखाई है। इसके अतिरिक्त कई विधायकों, सांसदों, मंत्रियों आदि ने भी इस फ़ंड को समृद्ध करने में अभिरुचि दिखाई है। विभिन्न विभागों के कर्मचारियों से भी उनके वेतन का अंशदान संग्रह किया जा रहा है। महाराज, आर्यावर्त के राष्ट्रनायक ने अपने दल के सभी कार्यकर्ताओं से अपील की है कि प्रत्येक कार्यकर्ता ४०-४० लोगों को इस फ़ंड में दान के लिए प्रेरित करें। इस तरह सरकार के द्वारा अगणनीय लोगों के द्वारा दान की मुहिम चलायी गई है।

अब ये बताओ गूगल कि इस फ़ंड से व्यय कहाँ किया जा रहा है?

सिर झुकाकर गूगल ने जवाब दिया — महाराज, क्षमा करें! इस बारे में मुझे अभी तक कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई है।

नारद का सिर भारी होता जा रहा था। वे माथा पकड़कर बैठ गए।

Dr. Anil Kumar Roy
Dr. Anil Kumar Roy

कार्यकर्ता और लेखक
डॉ. अनिल कुमार रॉय सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए अथक संघर्षरत हैं। उनके लेखन में हाशिए पर पड़े लोगों के संघर्ष और एक न्यायसंगत समाज की आकांक्षा की गहरी प्रतिबद्धता परिलक्षित होती है।

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