एक बाबा चले थे हिन्दू राष्ट्र बनाने। तीन दिनों में ही भदभदा कर गिर गये। पांव में छाले, देह में बुखार और दिमाग बेहोश। उनकी हनुमान जी से फ़ोन पर बात होती थी। बेहोश जब होने लगे तो उन्होंने हनुमान जी को फोन लगाया। हनुमान जी ने उनका फोन रिसीव नहीं किया। वे बड़े गुस्से में थे। लेकिन जब बाबा को उन्होंने भूलुंठित देखा तो दया आ गई। वे बाबा के दिमाग में घुस गये और कहा- ‘बच्चा, तुम्हारे लिए स्वर्ग से स्पेशल गोबर और मूत्र लाये हैं। एलोपैथिक चिकित्सा मत करवाना। धड़ाधड़ मूत्र पीना और स्वर्ग का सुगंधित गोबर देह में लपेसना। यह पावन चिकित्सा करते रहे तो जल्द ही मेरी तरह स्वर्गवासी हो जाओगे। और फिर अभी के समय में तुम्हारे लिए मृत्यु का उत्तम योग है। अगर मृत्यु को प्राप्त हो गये तो तुम्हारी शोक सभा में नानबायोलॉजिकल लोग आयेंगे और तुम्हारी प्रतिमा स्थापित कर देंगे। संभव हुआ तो अगला कुंभ तुम्हारे नाम कर देंगे। तुम अमरता को प्राप्त कर लोगे।‘ इतना सुनना था कि बाबा हड़बड़ा कर उठे और हनुमान जी से विनय करने लगे – ’हनुमान जी, भूल-चूक माफ कर दो। अभी मेरी उम्र ही क्या हुई है जो स्वर्गीय होने के लिए कहते हो। अभी तो ऐश मौज भी नहीं किया। साध्वियां लाइन में सेवा के लिए तत्पर हैं और भीरू जनता धन वर्षा कर रही है। अभी स्वर्ग मत ले जाओ।’
हनुमान जी तब भी नहीं पिघले। बोले – ‘तुम जितने दिन धरती पर रहोगे, अकरखन ही करोगे। धर्म को लेकर वैसे भी धरती पर बहुत पाखंड फैला है। तुम तो पाखंडियों के भी सरताज हो। धर्म उजाड़ कर ही तुम दम लोगे या भारत की आत्मा की हत्या कर ही ठहरोगे, इसलिए बेहतर है कि तुम कुछ दिनों तक गोबर और मूत्र का अहर्निश इस्तेमाल करो और मेरे पास आओ।’ हनुमान जी की बात सुनकर बाबा कातर हो गये। गोरी गोरी देह कंपायमान हो उठी। आंखों से अश्रु जल प्रवाहित होने लगे। बाबा हनुमान जी के कदमों में लटक गये। हनुमान जी प्रस्थान करने की मुद्रा में थे। बाबा के लटकने से हनुमान जी के पांव भारी हो गये। वे लाख पांव झटकते, बाबा टस से मस न हो। हनुमान जी परेशान हो गए। सोचने लगे कि यह बाबा तो जब्बड़ बाबा है। अगर यह स्वर्ग गया तो पता नहीं, क्या क्या प्रपंच रचे और स्वर्ग के एटमॉस्फियर को भी नष्ट कर दो। धरती पर तो मानव रहते हैं, उसे छल-छद्म जीना आता है। स्वर्ग के देवता तो अपने अपने संगिनियों के साथ मस्त रहते हैं। वहां तो यह बाबा कुहराम मचा देगा, इसलिए बेहतर है कि यह बाबा धरती पर ही दिन बिताए।
हनुमान जी तंग होकर पूछा – ‘आखिर तुम चाहते क्या हो?‘ अचेत बाबा सचेत हुए। हनुमान जी से अनुग्रह करने लगे – ‘फिलहाल मुझे धरती का ऐश्वर्य भोगने दीजिए। जब तक धर्मभीरु जनता मेहरबान है। उसकी खोपड़ी खाली है और वह अचेतावस्था में है, तब तक यही सुखभोग करने दीजिए।’ हनुमान जी को तो बाबा से जान छुड़ानी थी। बोले – ‘ठीक है, लेकिन तुम्हें मुझे हाई पावर का एप्पल की मोबाइल गिफ्ट करनी होगी और पैदल वाला ड्रामा छोड़ना पड़ेगा। अच्छी भली तो तुम्हारी दूकान चल रही थी, फिर तुम इस कुरास्ते पर क्यों चल पड़े? अगर आगे चले तो तुम्हारा राम नाम सत्य है। जिंदगी जान रहेगी, तभी तो राजपाट भोगोगे। अबे मूर्ख, कोई भी राजपाट हो, तुम्हें कभी तकलीफ़ हुई है? मुफ्त में जान मत गंवाओ।‘
इतना कह हनुमान जी अंतर्धान हो गए। बाबा उनके जाने के बाद प्रमुदित हो कीर्तन कर जनता जनार्दन को ठगने का उपक्रम करने लगे।

प्रोफेसर, पूर्व विभागाध्यक्ष, विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग
पूर्व डीएसडब्ल्यू,ति मां भागलपुर विश्वविद्यालय,भागलपुर






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