Tag असमानता

बुझता हुआ चिराग़ है संविधान की प्रस्तावना

जिस उदात्त सोच के साथ इस देश की संवैधानिक बुनियाद रखी गई थी, समय बीतने के साथ ही लगातार वह जर्जर होती गई। और, अब तो यकीन करना भी मुश्किल है कि यह वही देश है, स्वतन्त्रता के संघर्ष से निकले हुए तप:पूतों ने जिसका प्रस्ताव पास किया था।

शिक्षा नीति 2020 में शिक्षकों के हितों की पड़ताल

students, school, teacher
यह शिक्षा नीति शिक्षकों के ‘प्राचीन सम्मान’ को लौटाने का वाचिक आश्वासन भले ही देती हो, शिक्षकों से एक स्पंदनशील शैक्षिक वातावरण के निर्माण की अपेक्षा भले ही करती हो, परंतु उनके वेतनमान पर चुप्पी साध लेती है, सेवाशर्तों को कमजोर बनाने की अनुशंसा करती है, उनके व्यक्तित्व के दब्बू होने का इंतजाम करती है और विद्यालीय परिवेश में उनके महत्व का अवमूल्यन करती है।

भारत में बढती असमानता पर ऑक्सफेम की रिपोर्ट

grayscale photo of people holding banner
जब जोंक पूँजीपति खून चूसने में मशगूल होते हैं, राजसत्ता उन रक्त्जीवियों की हिफाजत में सन्नद्ध होती है और बुद्धिजीवी भी सत्ता के दरबार में सारंगी बजाकर चारण-गान करने में विभोर होते हैं तो घने अंधेरों में घिरे भूखे और अधनंगे लोग, रोशनी की तलाश में, सड़कों पर उतर आते हैं. दुनिया में अब तक जितनी भी क्रांतियाँ हुई हैं, वहाँ भी इसी तरह का फर्क रहा है. एक तरफ बेतहाशा अमीर रहे हैं और दूसरी तरफ अन्न और वस्त्र के लिए बिलबिलाते लोगों का हुजूम रहा है. और, इन दोनों के बीच खड़ी सत्ता अमीरों की तरफदारी में बिलबिलाते लोगों को क़ानून का पाठ पढ़ा-पढ़ाकर डंडे बरसाती रही है.