सर्वप्रथम समाजवादी सच्चिदानंद सिन्हा को श्रद्धांजलि! मैंने उन्हें एक बार पटना पुस्तक मेले में देखा। हल्की-फुल्की बातचीत की। जब राजकिशोर जी के संपादन में कलकत्ते से ‘परिवर्तन’ नामक पत्रिका निकली, तब उनके लेख मेरे पास आते थे। वे चिंतक तो थे ही, साथ ही उन्होंने अपने चिंतन के आधार पर जीवन भी जीया। जो मानते थे, वही जीवन में करते थे। आज चिंतकों की हालत अलग है। चिंतन कहीं है और जीवन कहीं। सच्चिदानन्द सिन्हा ने हिन्दी और अंग्रेजी में दर्जनों महत्वपूर्ण किताबें लिखीं । वे खुद को लेखक मानते थे, साहित्यकार नहीं। बिहार सरकार ने फादर कामिल बुल्के के नाम से दिया जाने वाला पुरस्कार उन्हें दिया तो उन्होंने इसे यह कहते हुए अस्वीकार किया कि वे साहित्यकार नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि लेखकों की मदद के लिए सरकार को कोष बनाना चाहिए। 97 वें वर्ष के सच्चिदानन्द सिन्हा जी मुजफ्फरपुर के अपने गांव मनिका में रहते थे। छोटा सा उनका घर, एक चापाकल। बिजली उन्होंने ली, लेकिन बिजली की दर बढ़ी तो कई वर्ष पहले बिजली कटवा दी। सौर ऊर्जा से चार्ज होने वाला एक लैम्प रहता था। बहुत आग्रह पर करने पर मोबाइल रखी, जिसे पडोस में रहने वाले साथी के घर में चार्ज किया जाता था। यह अच्छा हुआ कि अरविंद मोहन जी ने उनकी लिखी पुस्तकों और लेखों का संग्रह कर रचनावली का आकार दे दिया। उन्हें पुनः श्रद्धांजलि। वे वैचारिक प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।
एक मित्र ने लिखा है कि बिहार में महिलाओं का नया उत्थान हुआ है। यह उत्थान पहले नहीं था। बिहार में महिलाओं ने इस उत्थान के लिए नीतीश कुमार को वोट दिया है। मैं जानना चाहता हूं कि अगर चुनाव के समय और चुनाव के दौरान करोड़ों करोड़ महिलाओं को दस हजारी गिफ्ट नहीं दिया जाता तो क्या ये महिलाएं ऐसे ही वोट करतीं, जैसा उन्होंने किया है? स्कूलों में बच्चियों को साइकिल योजना, पंचायत स्तर पर उनकी आधी भागीदारी, उज्ज्वला – नल – जल, शराबबंदी आदि योजनाओं से महिलाएं अन्य प्रदेशों की तुलना में ज्यादा सशक्त हुईं, तो फिर मुख्यमंत्री को चुनाव के समय दस हजारी नोट क्यों बांटने पड़े?
ये नोट महिलाओं को मजबूत करेंगे या भ्रष्ट करेंगे? महिलाओं के उत्थान के लिए अच्छी शिक्षा और सुविधाएं चाहिए। रोजगार के अवसर चाहिए। क्या शिक्षा का यह तंत्र महिलाओं को सशक्त बना रहा है? आप महिलाओं को साइकिल दीजिए, फ्री शिक्षा भी दीजिए और छात्रवृत्तियां भी, लेकिन शिक्षा के तंत्र को नष्ट कर दीजिए। खेती-बाड़ी को भी मारिए और नये उद्योग भी मत लगाइए। यहां तक कि जो उद्योग लगे हुए थे, उन्हें भी नष्ट कर दीजिए। ऐसे मित्र को यह भी जानना चाहिए कि बिहार पर 3.02 लाख करोड़ का कर्ज है और यह कर्ज दस-दस हजार रुपए बांटने के पू्र्व का है। बिहार में वोट देकर हजारों लोग दूसरे राज्यों में काम करने के लिए ट्रेनों में पशुओं की तरह जाने को विवश हैं। बीस वर्षों से राजपाट है। तब यह हालत नहीं बदली। हम सब देखते हैं कि पंचायत के प्रतिनिधियों द्वारा बिहार विधान परिषद के लिए जो सदस्य चुने जाते हैं, वे हर पंचायत प्रतिनिधि का रेट फिक्स कर देता है। वह वोट खरीदता है। यह सब नुके-छिपे होता है। इस बार तो सरकार ने चुनाव आयोग से मिलीभगत कर सरकारी खजाने से महिलाओं को दस-दस हजार बांट दिया। यह कुकर्म है और राजनीति को जहन्नुम में ले जाने वाला। ऐसे कुकृत्य से क्या महिलाएं सशक्त हो रही हैं या भ्रष्ट हो रही हैं? महिलाओं के उत्थान के लिए योजनाएं बनाइए, उसे लागू भी कीजिए, लेकिन महिलाओं के आचरण को भ्रष्टाचार के कीचड़ में मत डुबाइए।
सीधा-सीधा दस हजारी योजना वोट खरीद योजना है। लोकतंत्र का आधार चुनाव है और चुनाव को धीरे-धीरे रसातल में लेकर जा रहे हैं।

प्रोफेसर, पूर्व विभागाध्यक्ष, विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग
पूर्व डीएसडब्ल्यू,ति मां भागलपुर विश्वविद्यालय,भागलपुर






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