(नोट : परिचय के बीच-बीच में इटालिक अक्षरों में समीक्षा दी गई है।)
इतिहास :
इसके पूर्व की राष्ट्रीय शिक्षा नीतियाँ : 1986 में, जिसे 1992 में संशोधित किया गया।
वर्तमान शिक्षा नीति की कवायद : 2015 में सरकार बनने के बाद सर्वप्रथम भूमि अधिग्रहण बिल और फिर उसके बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विमर्श पत्र। 2,50,000 ग्राम पंचायतों, 6, 600 ब्लॉक, 600 जिलों और 36 राज्यों में इस पर विमर्श का दावा। सर्वप्रथम मंत्रालय के द्वारा विमर्श पत्र, उसके बाद सुब्रह्मण्यम समिति, फिर कस्तूरीरंगन समिति और फिर अनेक कवायदों के बाद अंततोगत्वा पास।
शिक्षा नीति का परिचय :
– 29 जुलाई, 2020 को कैबिनेट के द्वारा पास।
– अंग्रेजी में 66 और हिन्दी में 108 पेज।
– चार भाग – (i) स्कूल शिक्षा, (ii) उच्चतर शिक्षा, (iii) अन्य केंद्रीय विचारणीय मुद्दे और (iv) क्रियान्वयन की रणनीति।
– इन चार भागों में 27 अनुच्छेद।
– भाग 1 में स्कूल शिक्षा के 8 अनुच्छेद – i) बाल्यावस्था शिक्षा, ii) बुनियादी ज्ञान, iii) ड्रॉप आउट, iv) पाठ्यक्रम, v) शिक्षक, vi) समावेशन, vii) स्कूल कम्पलेक्स और viii) मानक निर्धारण हैं।
पिछली नीतियों के बारे में :
कहा गया है कि इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में एनईपी 1986/92 “के अधूरे काम को इस नीति के द्वारा पूरा करने का प्रयास किया गया है।” (लेकिन वह अधूरा काम क्या है, इस बात का उल्लेख नहीं है। यह मानते हुए कि “पिछली नीतियों का ज़ोर मुख्य रूप से शिक्षा तक पहुँच के मुद्दों पर था।“, केवल अंत में अनुच्छेद 23.7 में इंटरनेट के प्रभाव-आकलन की अक्षमता के रूप में एनईपी 1986/92 की चर्चा की गई है। तो क्या इस शिक्षा नीति में शिक्षा तक पहुँच का मुद्दा अब अर्थहीन है? क्या इंटरनेट तक पहुँच मात्र के लिए एक पूरी शिक्षा नीति लाये जाने की जरूरत है?)
मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 को एक बड़ा कदम माना गया है और बाद के अनुच्छेद में 3 से 18 वर्ष तक के लिए इसका दायरा बढ़ाने की चर्चा की गई है। (शिक्षा अधिकार के दायरे के विस्तार की माँग बहुत पुरानी है। इस शिक्षा नीति में इसकी चर्चा तो की गई है, परंतु इसके सशक्तिकरण और विस्तार के लिए न तो कोई अनुशंसा नहीं दिखाई पड़ती है और न ही अभी तक कोई पहल की गई है)
इस नीति के कथित आधार सिद्धान्त :
इस शिक्षा नीति के निर्माण के लिए कुछ आधार सिद्धांतों की चर्चा की गई है। वे आधार सिद्धांत हैं –
– बच्चे की क्षमता की स्वीकृति, पहचान और विकास का प्रयास।
– बुनियादी साक्षरता और संख्याज्ञान।
– विभिन्न विषयों, पाठ्यक्रमों, पाठ्येतर विषयों के बीच अंतर नहीं। बहुविषयक समग्र ज्ञान।
– अवधारणात्मक समझ और तार्किक सोच।
– नैतिकता, मानवीयता और संवैधानिक मूल्य।
– बहु-भाषिकता।
– सतत मूल्यांकन।
– जीवन कौशल।
– तकनीक का उपयोग।
– सीखने की प्रक्रिया के केंद्र में शिक्षक।
– स्वायत्तता, सुशासन और सशक्तिकरण।
– उत्कृष्ट शोध।
– भारतीय जड़ों और भारतीयता का गौरव बोध।
– निजी और सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहन।
भाग – 1 स्कूल शिक्षा
– स्कूल शिक्षा के संरचनात्मक ढाँचे में 5+3+3+4 (अर्थात् 5 = पूर्व प्राथमिक से कक्षा 2 तक, 3 = कक्षा 3 से 5 तक, 3 = कक्षा 6 से 8 तक और 4 = कक्षा 9 से 12 तक।) के रूप में बदलाव किया जाएगा। (लेकिन इस बदलाव के शिक्षाशास्त्रीय आधार की चर्चा नहीं की गई है।)
– प्रारंभिक गुणवत्तापूर्ण सार्वभौम शिक्षा जल्द-से-जल्द 2030 तक (1.1) (पहले कहा गया कि पिछली नीतियाँ पहुँच के मुद्दे पर केंद्रित थी। इसका अर्थ है कि विद्यालय तक बच्चों की पहुँच का मुद्दा हल हो गया है और यह नीति उस पुराने मुद्दे से हटकर सोचती है। लेकिन यहाँ पिछले कथन से विरोधाभास दिखता है। अर्थात अगले 10 साल तक और शिक्षा की सार्वभौम पहुँच का मुद्दा चलता रहेगा।)
प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (अनुच्छेद 1) :
इस खंड में बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) को 2030 तक गुणवत्तापूर्ण और सार्वभौम बनाने के लिए शैक्षिक प्रक्रियायों (1.2), ECCE की पहुँच बढ़ाने (1.4), नाम बदलकर बाल वाटिका करने (1.6), आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आश्रमशालाओं में संचालित करने (1.8), आंगनबाड़ी केंद्रों को स्कूल से एकीकृत करने (1.5), आंगनबाड़ी सेविकाओं का 6 महीना या 1 साल का ऑनलाइन प्रशिक्षण प्रदान करने आदि अनुशंसाएँ की गई हैं।(लेकिन इस खंड में बच्चों के आउटकम की बात नहीं कही गई है। दूसरे वर्कर का जिक्र किसी भी रूप में नहीं है। ऐसा लगता है कि आंगनबाड़ी और बालवाटिका की गुणवत्ता में अंतर होगा। एक ओर पहुँच बढ़ाने की बात कही गई है, वहीं दूसरी ओर स्कूल के साथ एकीकृत करने की अनुशंसा भी की गई है। इन दोनों अनुशंसाओं में विरोधाभास है।)
- बुनियादी साक्षरता और संख्याज्ञान : इस खंड में मुख्य रूप से निम्नलिखित चिंताएँ और अनुशंसाएँ हैं –
- विद्यालयों में सीखने की गंभीर समस्या (2.1)
- 2025 तक सार्वभौम साक्षरता का लक्ष्य (2.2)
- शिक्षक-छात्र अनुपात 30:1 (पिछड़े समूहों में 25:1)
- पियर ट्यूटरिंग, स्थानीय और गैर स्थानीय प्रशिक्षित वोलेंटियर्स। इनको बढ़ावा देने के लिए नवीन मॉडल स्थापित करने पर विचार (2.7) (अर्थात शिक्षक कम होंगे और इन वॉलेंटियर्स के बल पर ही शिक्षा का काम होगा। यहीं पर चिंता व्यक्त की जाती है कि इस नवीन मॉडल में वॉलेंटियर्स के माध्यम से शिक्षा की औपचारिक व्यवस्था में धार्मिक और राजनीतिक कर्मियों के प्रवेश का रास्ता खोला गया है।)
- नाश्ता के साथ भोजन भी। लेकिन पका भोजन की व्यवस्था नहीं होने पर गुड, चना आदि का विकल्प (2.7)। (अर्थात मध्याह्न भोजन का अनौपचारिकरण कर दिया जाएगा। यह एक विचित्र विरोधाभास है कि एक और बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन और नाश्ता की अनुशंसा करके चना-गुड़ के अनौपचारिक विकल्प के लिए भी रास्ता बनाया गया है।)
- ड्रॉपआउट : विद्यालयों में छीजन रोकने के लिए निम्नलिखित प्रमुख अनुशंसाएँ की गई हैं –
- ड्रॉपआउट रोकने के लिए दो उपाय – स्कूल का आकर्षण बढ़ाना (3.2) और निगरानी (3.3)
- “स्कूली शिक्षा के दायरे को व्यापक बनाना होगा ताकि औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा के अंदर सीखने के विभिन्न रास्ते उपलब्ध हो सकें।“ (3.5)। (अर्थात शिक्षा के अनौपचारिक रास्ते भी खोले जाएँगे। यहाँ दूरस्थ और ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था की ओर इशारा है। यहाँ शिक्षा के अनौपचारीकरण की राह बनायी गई है।)
- कक्षा 3, 5 और 8 के लिए भी ओपेन स्कूल होगा (3.5)। (इन शुरुआती कक्षाओं में बच्चे ओपन स्कूल के माध्यम से कैसे सीखेंगे, यह चिंता व्यक्त नहीं की गई है। परिणाम होगा कि इससे वंचितों, गरीबों के बच्चों के लिए पढ़ाने का नहीं, बल्कि सर्टिफिकेट बाँटने का कोर्स चलाया जाएगा।)
- सरकारी और निजी विद्यालयों के नियमों को हल्का किया जाएगा और उनसे फिलाइन्थ्रोपिक साझेदारी होगी (3.6)। (अर्थात निजी विद्यालयों की स्थापना और संचालन में छूट होगी और साझेदारी में पढ़ाई। इससे सरकारी विद्यालयों के महत्व को कम करने और निजी विद्यालयों को प्रोत्साहित करने की मंशा ज़ाहिर होती है।)
- अधिगम में सुधार के लिए स्वयंसेवकों, कर्मचारियों और शिक्षाविदों से सहयोग लिया जाना (3.7)। (अर्थात शैक्षिक कार्यों में दूसरे अशिक्षक तत्वों के प्रवेश की अनुमति)
- पाठ्यक्रम और शिक्षणशास्त्र : इस खंड में निम्नलिखित प्रमुख अनुशंसाएँ हैं –
- 5+3+3+4 का नया डिजाइन (4.1)। यह डिजाइन ‘बच्चों के संज्ञानात्मक विकास के अनुरूप’ होगा (4.3)। (कैसे? इसपर चर्चा नहीं है।)
- शिक्षा का उद्देश्य केवल संज्ञानात्मक समझ न होकर चरित्र-निर्माण और कौशल से सुसज्जित करना है (4.4)। (अर्थात समझ का हिस्सा एक तिहाई है।)
- पाठ्यक्रम और विषयवस्तु को कम करना (4.5), कहानी, खेल आदि आधारित अधिगम को बढ़ावा (4.6) और भारतीय कला और संस्कृति का शिक्षण में समावेश (4.6)। (शैक्षिक प्रक्रिया के अनौपचारिकरण के साथ ही सांप्रदायीकरण की संभावना। हिन्दू धर्म के किस्से और धार्मिक पुरुषों के कृत्य पढ़ाये जाने से हिन्दू धार्मिक राष्ट्र की अवधारणा को बल मिलेगा तथा अन्य प्रयासों और कृत्यों को, जैसे कि मुगल काल, ब्रिटिश काल और राष्ट्रीय आंदोलन का काल, भुला दिया जाएगा।)
- कला, मानवकी, विज्ञान, अतिरिक्त या सह पाठ्यक्रमों में कोई विभेद नहीं (4.9)। (यह कैसे व्यावहारिक होगा?)
- सेमेस्टर प्रणाली।
- भाषा (4.11 से 4.22 तक) : इस खंड में भाषा-संबंधी निम्नलिखित अनुशंसाएँ हैं –
- निजी और सार्वजनिक स्कूल में कक्षा 5 तक अनिवार्यत: मातृभाषा में शिक्षा, लेकिन द्विभाषी एप्रोच को प्रोत्साहित किया जाएगा (4.11)। (‘द्विभाषी एप्रोच’ का स्पेस बनाकर अंग्रेज़ी को माध्यम के रूप में बनाये रखा गया है। यही ‘द्विभाषी’ एप्रोच निजी विद्यालयों में अंग्रेजी चलने देगा।)
- त्रिभाषा फॉर्मूला, लेकिन लचीलापन। कम-से-कम दो भारतीय भाषाएँ (4.13)। द्विभाषी (मातृभाषा और अंग्रेजी में) पाठ्यपुस्तक (4.14)। संस्कृत एक विकल्प भाषा। (तो क्या फर्क हुआ? संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी पहले भी थी।)
- साइन भाषा में पाठ्यसामग्री।
- कौशल शिक्षा का शिक्षाक्रमीय एकीकरण : कौशल शिक्षा के संबंध में अनुशंसा है कि
- कक्षा 6 से कौशल विकास के रूप में बढ़ईगीरी, बिजली, बर्तन-निर्माण आदि की शिक्षा (4.26) प्रदान की जायेगी। (इसका अर्थ हुआ कि शुरुआती कक्षाओं से ही छात्र कम पारिश्रमिक वाले घरेलू काम-धंधों में ढकेले जाएँगे। सारे शिक्षाशास्त्री इस कक्षा से कौशल शिक्षा प्रदान करने का विरोध करते हैं।)
- प्राचीन भारत का ज्ञान :
- प्राचीन भारत का ज्ञान, प्राचीन और आधुनिक भारत के प्रेरणादायक व्यक्तित्वों पर वीडियो (4.26)। (पौराणिक कथा-श्रुतियों को वास्तविक इतिहास के रूप में पेश करने से धार्मिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय जड़ता बढ़ेगी और यह वैश्विक ज्ञान की स्वीकृति में बाधक होगा। प्रेरणादायी व्यक्तित्व कौन होंगे? उनके चयन का आधार संदेहास्पद है?)
- पाठ्यचर्या और पाठ्यपुस्तकें :
- राष्ट्रीय पाठ्यचर्या का नया रूप राज्य एवं अन्य हितधारक से परामर्श करके तैयार किया जाएगा (4.30)। “राज्य अपने स्वयं के पाठ्यक्रम (जो जहाँ तक संभव हो, एनसीईआरटी द्वारा तैयार एनसीएफ़एसई पर आधारित हो सकते हैं) तैयार करेंगे और पाठ्यपुस्तकों (जो जहाँ तक संभव हो, एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों की सामग्री पर आधारित हो सकते हैं) को तैयार करेंगे।“ (4.32)। (ये हितधारक कौन हैं? राज्य से परामर्श करके तैयार लागू करने और राज्य द्वारा केंद्रीय पाठ्यक्रम का अनुसरण करने का अर्थ है कि वही पाठ्यक्रम राज्यों में भी लागू होगा। इस तरह संघीय अधिकारों और समवर्ती सूची का सीधा उल्लंघन है।)
- पाठ्यपुस्तकों में पाठ्यवस्तु कम होगी (4.33)।
- परीक्षा :
- परीक्षा में बदलाव – नियमित रचनात्मक आकलन (4.34), प्रगति कार्ड बहुआयामी 360 डिग्री का (4.35), परीक्षा के वर्तमान तरीके से बहुत नुकसान और कोचिंग को बढ़ावा मिला (4.36), 10 और 12 के लिए बोर्ड परीक्षा जारी रहेगी (4.37), सेमेस्टर, मोडुलर बोर्ड परीक्षा (4.38), बहुविकल्पी के साथ वर्णनात्मक प्रश्न (4.38), 22-23 के सत्र से लागू (4.39) (प्रतियोगिता परीक्षाओं में बदलाव की बात नहीं है, जबकि सर्वाधिक लूट वहीं है।)
- कक्षा 10 और 12 के अतिरिक्त कक्षा 3, 5 और 8 में भी उपयुक्त प्राधिकरण के द्वारा परीक्षा (4.40)। (इन परीक्षाओं में फेल करना है या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है। लेकिन 4.37 में कहा गया है कि एक स्कूली वर्ष में दो बार परीक्षा होगी, एक मुख्य, दूसरा सुधार के लिए। इससे ज्ञात होता है कि इन परीक्षाओं में फेल करने का भी प्रावधान होगा। इसका यह भी अर्थ है कि बच्चे फेल करके व्यावसायिक शिक्षा की ओर धकेले जाएँगे।)
- राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र ‘परख’ होगा, जो परीक्षाओं के लिए मानक और दिशानिर्देश जारी करेगा (4.41)। (अर्थात परीक्षा की दृष्टि से भी केन्द्रीकरण)
- राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (NTA) होगी, जिसके माध्यम से महाविद्यालयों-विश्वविद्यालयों में नामांकन होगा (4.42)। (अर्थात नामांकन में भी केन्द्रीकरण)
- डिजिटल शिक्षणशास्त्र : सभी घरों/स्कूलों में स्मार्ट फोन, टैबलेट और डिजिटल शिक्षणशास्त्र होगा (4.46)। (अर्थात फोन, टैब आदि बाँटे जाएँगे।)
- शिक्षक : सम्मान को पुनर्जीवित किया जाएगा (5.1), आवास प्रदान किया जाएगा (5.2), अत्यधिक स्थानांतरण पर रोक होगी (5.3), B.Ed, TET आदि के बाद साक्षात्कार के आधार पर नियुक्ति होगी (5.4), पर्याप्त संख्या होगी (5.5), विषयवार नियुक्ति (5.7), दूसरे काम नहीं करेंगे (5.12), वर्ष में 50 घंटों के सीपीडी कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे (5.15), उत्कृष्टता के आधार पर पदोन्नति (5.17) (जब विद्यालय ही कम हो जाएँगे (7.4) और पढ़ाने के नाम पर पीयर ट्यूटरिंग तथा वोलंटियर टीचिंग (2.7) को बढ़ावा दिया जाएगा तो शिक्षको के सम्मान आदि की बातें बेमानी हो जाती हैं।)
- बी॰ एड॰ : 4 वर्षीय एकीकृत, पहले से स्नातक के लिए 2 वर्ष और बहुविषयक स्नातक या स्नातकोत्तर के लिए 1 वर्ष का। दूरस्थ माध्यम से भी (5.23)।
- शिक्षा में समावेशन :
- अनुसूचित जाति, जनजाति, दिव्याङ्ग एवं बच्चियों की शिक्षा पर चिंता व्यक्त करते हुए नकद, साइकल, छात्रावास आदि की व्यवस्था के साथ ही मुक्त विद्यालयी शिक्षा, सहपाठी शिक्षण, तकनीक आधारित शिक्षण की व्यवस्था (6.5)। (अर्थात उन्हें शिक्षा की मुख्यधारा में शामिल करने की चिंता नहीं होगी।)
- 3 वर्ष की आयु से ग्रेड 12 तक नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा (8.8)। (शिक्षा अधिकार के दायरे को बढ़ाने की चर्चा। लेकिन इसके लिए किसी रोडमैप का उल्लेख नहीं।)
- स्कूल कम्पलेक्स (अनुच्छेद 7) :
- 28% प्राथमिक स्कूल और 14.8% उच्चतर प्राथमिक स्कूल में 30 से कम छात्र। 2016-17 में 1,08,017 एकल स्कूल थे (7.1)। इनमें संसाधन उपलब्ध कराना ‘व्यावहारिक नहीं (7.2)। इससे शिक्षण-प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव (7.3)। इसलिए विद्यालयों का समेकन ही उपयुक्त उपाय (7.4)। 2025 तक स्कूलों का समूह बनाया जाएगा (7.5), जहाँ सारी सुविधा होगी। इस परिसर में 5 से 10 किलोमीटर के आंगनबाड़ी एवं अन्य छोटे स्कूल समाहित होंगे (7.6)। यह 12वीं तक होगा और अर्ध स्वायत्त इकाई होगा (7.8)। (विद्यालय बंद करने की नीति। अब पंचायत स्तर पर नहीं, ब्लॉक स्तर पर हाई स्कूल होंगे।)
- निजी और सरकारी विद्यालयों को संबद्ध किया जाएगा (7.10)। (यह किस तरह होगा, यह स्पष्ट नहीं है। अर्थव्यवस्था के इस सामान्य सिद्धांत का ध्यान नहीं रखा गया है कि निजी व्यवस्था सार्वजनिक व्यवस्था कमर तोड़कर विकसित होती है। इस अनुशंसा के अनुपालन से सरकारी विद्यालय ढह जाएँगे।)
- 2025 तक विद्यालयों की संख्या को समुचित रूप दिया जाएगा (7.5)। (यह सरकारी विद्यालयों की बंदी की नीति है।)
- क्लस्टर में सामाजिक कार्यकर्ता, सलाहकार की सलाह ली जाएगी (7.7) (यह शिक्षा में गैर सरकारी लोगों के प्रवेश की नीतिगत स्वीकृति।)
- क्लस्टर अर्ध स्वायत्त होंगे (7.8)।
- राज्य/जिले में बालभवन (7.11)।
- स्कूल सामाजिक चेतना का केंद्र (7.12)। (अर्थात स्कूल में अब नाटक, अष्टयाम, यज्ञ आदि भी आयोजित हो सकेंगे।)
- स्कूली शिक्षा के लिए मानक निर्धारण और प्रमाणन (अनुच्छेद 8) : इस अनुच्छेद में निजी और सार्वजनिक विद्यालयों के बारे में निम्नलिखित दृष्टि और अनुशंसाएँ हैं – निजी और सार्वजनिक विद्यालयों के नियामक दृष्टिकोण में विषमता है (8.3)। निजी परोपकारी स्कूलों को भी महत्वपूर्ण और फायदेमंद भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए (8.4)। शिक्षा विभाग निगरानी और नीति-निर्धारण करेगा, विनियमन में शामिल नहीं होगा। छात्रों द्वारा फीडबैक लिया जाएगा (8.5)। केंद्र द्वारा वित्त पोषित, नियंत्रित और निजी विद्यालयों को छोड़कर निजी और सार्वजनिक विद्यालय अपनी सूचना पारदर्शी रूप से उपलब्ध कराएंगे, “ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सार्वजनिक हित वाले निजी स्कूलों को प्रोत्साहित किया जाय और किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न न हो। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए निजी परोपकारी प्रयासों को प्रोत्साहित किया जाएगा।“ (8.7) (अर्थात अब नीति के तहत निजी विद्यालयों को प्रोत्साहित किया जाएगा और उन पर लगाए गए प्रतिबंधों में ढील दी जाएगी। सूचनाओं की पारदर्शिता से केंद्र द्वारा संचालित-नियंत्रित और निजी विद्यालयों को मुक्त रखा गया है। इस तरह केंद्र के द्वारा संचालित और निजी विद्यालयों तथा राज्य सरकारों के द्वारा संचालित विद्यालयों के बीच विभेदक विभाजन स्थापित किया गया है।)
निहितार्थों पर समीक्षात्मक दृष्टिपात :
इस शिक्षा नीति को देखने का हमारा पोजीशन क्या है? हम कहाँ पर और किस पक्ष में खड़े हैं, इससे नजरिया बदल जाता है। हम सत्ता के भागीदार हैं या कोई कॉर्पोरेट या कंपनी हैं या आमजन के लाभ-हानि की दृष्टि से देखते है? यही तय करेगा कि हम इस नीति में क्या पाते हैं। ……. यह समीक्षा जनता और संवैधानिक प्रावधानों के पाले में खड़े होकर की जा रही है।
- यह कैबिनेट द्वारा स्वीकृत है, संसद द्वारा नहीं। अर्थात एक पार्टी की शिक्षा नीति है।
- सुंदर शब्दों – पूर्ण मानव क्षमता प्राप्त करना, न्यायपूर्ण समाज, राष्ट्रीय विकास, वैज्ञानिक उन्नति, राष्ट्रीय एकीकरण, भारत की महान संस्कृति, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आदि सुंदर और मोहक शब्दों की भरमार है।
- ऑनलाइन, डिजिटलाइजेशन और दूरस्थ शिक्षा, वह भी कक्षा 3 से ही, पूरी शिक्षा-व्यवस्था को अनौपचारिक बनाकर रख देगा।
- विषयों का घालमेल, कि नीचे की कक्षाओं में फुटबाल खेलना सीखने वाला छात्र स्नातक में भौतिकी ले सकता है, शैक्षिक अराजकता उत्पन्न कर देगा।
- स्कूल कम्पलेक्स के नाम पर विदयालयों को बंद करने की नीतिगत स्वीकृति दी गई है।
- भारतीय संस्कृति, पौराणिक कथाएँ, संस्कृत, प्राचीन महानता आदि के बारंबार गुणगान से शिक्षा के संप्रदायीकरण की दुर्गंध आती है। मध्यकालीन भारत, ब्रिटिश भारत और स्वतन्त्रता के संघर्ष का उल्लेख नहीं है। इससे खंडित इतिहास की प्रस्तुति होगी। भाषा की दृष्टि से संस्कृत साहित्य के अतिरिक्त उर्दू, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, तमिल, कन्नड आदि भाषाओं के विपुल और महान साहित्य के गौरव का उल्लेख नहीं है। आरएसएस की संस्था भारतीय शिक्षा मण्डल के केजी सुरेश और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के महासचिव ने भी स्वीकार किया है कि इसमें 60-70% बातें उनकी सिफ़ारिशों के मुताबिक हैं, यहाँ तक कि विभाग का नाम शिक्षा विभाग करने में भी उनकी सिफ़ारिश थी। इन संगठनों के साथ जावडेकर की अनेक गुप्त बैठकों के साथ प्रधानमंत्री और निशंक की बैठकों के भी प्रमाण हैं।
- कौशल शिक्षा के नाम पर कक्षा 6 से ही घरेलू काम-धंधों के सस्ते पारिश्रमिक वाले प्रशिक्षण गरीब बच्चों को दिये जाएँगे।
- कक्षा 3, 5, 8, 10 और 12 में परीक्षा के अनेक अवरोध बनाने से बच्चों का निष्कासन बढ़ेगा। यह शिक्षा अधिकार का उल्लंघन होगा।
- स्कूल से लेकर कॉलेज तक राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र, राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी, इंडियन एडुकेशन सर्विस, राष्ट्रीय शोध प्रतिष्ठान, नेशनल हायर एडुकेशन रेगुलेटरी अथॉरिटी, नेशनल टेस्टिंग एजेंसी, केंद्रीकृत नामांकन आदि से शिक्षा के समवर्ती सूची के संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन होगा और संघीय ढाँचा कमजोर होगा।
- उच्च शिक्षा में भी 3000 से कम नामांकन वाले महाविद्यालयों को बंद किया जाएगा, जिससे शिक्षा तक पहुँच घटेगी।
- निजी महाविद्यालयों-विश्वविद्यालयों को भी प्रोत्साहित किया जाएगा, धन उपलब्ध कराया जाएगा। परिणामत: सरकारी संस्थाएँ ध्वस्त हो जाएँगी।
- अच्छे संस्थानों को अधिक अनुदान और कमजोर को कम अनुदान देना वैसा ही है, जैसे बीमार बच्चे को कम खाना देना।
- विदेशी संस्थाओं को प्रवेश का अवसर देने से देशी संस्थाएँ देशी मोबाइल कंपनियों की तरह ध्वस्त हो जाएंगी।
- आरक्षण का जिक्र नहीं है। शिक्षा का अधिकार का यथोचित उल्लेख नहीं है। दूरस्थ और ऑनलाइन शिक्षा की बेतरह वकालत किया जाना समानतापूर्वक गुणवत्तापूर्ण नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के संवैधानिक अधिकार का हनन है।
निष्कर्षत: यह शिक्षा नीति अनौपचारिकता, सांप्रदायिकता, केन्द्रीयता और निजीकरण की बढ़ोत्तरी के चार पायों पर खड़ी है। इन पायों को ही मजबूत करने का निहितार्थ इस शिक्षा नीति में छिपा हुआ है।