राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : परिचय एवं समीक्षा (स्कूल शिक्षा)

यह कैबिनेट द्वारा स्वीकृत है, संसद द्वारा नहीं। अर्थात एक पार्टी की शिक्षा नीति है।…यह शिक्षा नीति अनौपचारिकता, सांप्रदायिकता, केन्द्रीयता और निजीकरण की बढ़ोत्तरी के चार पायों पर खड़ी है। इन पायों को ही मजबूत करने का निहितार्थ इस शिक्षा नीति में छिपा हुआ है।
  1. यह कैबिनेट द्वारा स्वीकृत है, संसद द्वारा नहीं। अर्थात एक पार्टी की शिक्षा नीति है।
  2. सुंदर शब्दों – पूर्ण मानव क्षमता प्राप्त करना, न्यायपूर्ण समाज, राष्ट्रीय विकास, वैज्ञानिक उन्नति, राष्ट्रीय एकीकरण, भारत की महान संस्कृति, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आदि सुंदर और मोहक शब्दों की भरमार है।
  3. ऑनलाइन, डिजिटलाइजेशन और दूरस्थ शिक्षा, वह भी कक्षा 3 से ही, पूरी शिक्षा-व्यवस्था को अनौपचारिक बनाकर रख देगा।
  4. विषयों का घालमेल, कि नीचे की कक्षाओं में फुटबाल खेलना सीखने वाला छात्र स्नातक में भौतिकी ले सकता है, शैक्षिक अराजकता उत्पन्न कर देगा।
  5. स्कूल कम्पलेक्स के नाम पर विदयालयों को बंद करने की नीतिगत स्वीकृति दी गई है।
  6. भारतीय संस्कृति, पौराणिक कथाएँ, संस्कृत, प्राचीन महानता आदि के बारंबार गुणगान से शिक्षा के संप्रदायीकरण की दुर्गंध आती है। मध्यकालीन भारत, ब्रिटिश भारत और स्वतन्त्रता के संघर्ष का उल्लेख नहीं है। इससे खंडित इतिहास की प्रस्तुति होगी। भाषा की दृष्टि से संस्कृत साहित्य के अतिरिक्त उर्दू, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, तमिल, कन्नड आदि भाषाओं के विपुल और महान साहित्य के गौरव का उल्लेख नहीं है। आरएसएस की संस्था भारतीय शिक्षा मण्डल के केजी सुरेश और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के महासचिव ने भी स्वीकार किया है कि इसमें 60-70% बातें उनकी सिफ़ारिशों के मुताबिक हैं, यहाँ तक कि विभाग का नाम शिक्षा विभाग करने में भी उनकी सिफ़ारिश थी। इन संगठनों के साथ जावडेकर की अनेक गुप्त बैठकों के साथ प्रधानमंत्री और निशंक की बैठकों के भी प्रमाण हैं।
  7. कौशल शिक्षा के नाम पर कक्षा 6 से ही घरेलू काम-धंधों के सस्ते पारिश्रमिक वाले प्रशिक्षण गरीब बच्चों को दिये जाएँगे।
  8. कक्षा 3, 5, 8, 10 और 12 में परीक्षा के अनेक अवरोध बनाने से बच्चों का निष्कासन बढ़ेगा। यह शिक्षा अधिकार का उल्लंघन होगा।
  9. स्कूल से लेकर कॉलेज तक राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र, राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी, इंडियन एडुकेशन सर्विस, राष्ट्रीय शोध प्रतिष्ठान, नेशनल हायर एडुकेशन रेगुलेटरी अथॉरिटी, नेशनल टेस्टिंग एजेंसी, केंद्रीकृत नामांकन आदि से शिक्षा के समवर्ती सूची के संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन होगा और संघीय ढाँचा कमजोर होगा।
  10. उच्च शिक्षा में भी 3000 से कम नामांकन वाले महाविद्यालयों को बंद किया जाएगा, जिससे शिक्षा तक पहुँच घटेगी।
  11. निजी महाविद्यालयों-विश्वविद्यालयों को भी प्रोत्साहित किया जाएगा, धन उपलब्ध कराया जाएगा। परिणामत: सरकारी संस्थाएँ ध्वस्त हो जाएँगी।
  12. अच्छे संस्थानों को अधिक अनुदान और कमजोर को कम अनुदान देना वैसा ही है, जैसे बीमार बच्चे को कम खाना देना।
  13. विदेशी संस्थाओं को प्रवेश का अवसर देने से देशी संस्थाएँ देशी मोबाइल कंपनियों की तरह ध्वस्त हो जाएंगी।
  14. आरक्षण का जिक्र नहीं है। शिक्षा का अधिकार का यथोचित उल्लेख नहीं है। दूरस्थ और ऑनलाइन शिक्षा की बेतरह वकालत किया जाना समानतापूर्वक गुणवत्तापूर्ण नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के संवैधानिक अधिकार का हनन है।
Dr. Anil Kumar Roy
Dr. Anil Kumar Roy

कार्यकर्ता और लेखक
डॉ. अनिल कुमार रॉय सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए अथक संघर्षरत हैं। उनके लेखन में हाशिए पर पड़े लोगों के संघर्ष और एक न्यायसंगत समाज की आकांक्षा की गहरी प्रतिबद्धता परिलक्षित होती है।

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