आतंकवाद की जंग हम हार रहे हैं

Dr. Anil Kumar Roy     4 minute read         

अभी हाल ही में 14 फरवरी, 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में CRPF के जवानों पर विस्फोटक हमले में 40 से अधिक जवानों के मारे जाने के बाद एक बार फिर आतंकवाद के विरुद्ध हमारी जंग सवालों के घेरे में आ गई है. यह सवाल इसलिए भी ज्यादा गहरा हो गया है, क्योंकि वर्तमान सरकार पिछली सरकार की क्षमता पर प्रश्नचिह्न लगाकर लोगों का यह विशवास जीतने में सफल हुई थी कि आतंकवाद के खिलाफ और देश की सुरक्षा के लिए वह चाक-चौबंद व्यवस्था करेगी.

अभी हाल ही में 14 फरवरी, 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में CRPF के जवानों पर विस्फोटक हमले में 40 से अधिक जवानों के मारे जाने के बाद एक बार फिर आतंकवाद के विरुद्ध हमारी जंग सवालों के घेरे में आ गई है. यह सवाल इसलिए भी ज्यादा गहरा हो गया है, क्योंकि वर्तमान सरकार पिछली सरकार की क्षमता पर प्रश्नचिह्न लगाकर लोगों का यह विशवास जीतने में सफल हुई थी कि आतंकवाद के खिलाफ और देश की सुरक्षा के लिए वह चाक-चौबंद व्यवस्था करेगी.

नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक की कार्रवाइयों को इसी दिशा में उठाए गए कदम के रूप में प्रस्तुत किया गया था. दावा किया गया था कि इससे आतंकी घटनाएं समाप्त हो जायेंगी और सीमा पार से हमले समाप्त हो जायेंगे. लेकिन हुआ क्या? तमाम आश्वासनों, कार्रवाइयों और दावों के बावजूद जम्मू-कश्मीर में आतंकी वारदातें लगातार बढती ही गई हैं और इसके साथ ही साल-दर-साल बढती गई है शहीद होने वाले जवानों की संख्या. साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के मुताबिक़ वर्ष 2014 में 51 जवान शहीद हुए थे, 2015 में 41, 2016 में इस संख्या में दोगुनी से ज्यादा वृद्धि होकर 88 हो गई, 2017 में भी 83 जवानों को शहादतें देनी पड़ी और 2018 में तो हमने 95 जवान खोये. अभी 2019 की शुरुआत ही है और हम 46 जवान गवां बैठे हैं. इस तरह हम अपने वीर जवानों को लगातार बढती हुई संख्या में खोते जा रहे हैं.

इस अवधि में केवल जवानों की शहादतें ही नहीं बढ़ी हैं, आतंकियों की संख्या में भी लगातार वृद्धि होती रही है. जम्मू-कश्मीर के मल्टी एजेंसी सेंटर के आंकड़ों के मुताबिक़ हाल के इन पाँच सालों में 440 कश्मीरी युवक आतंकी बने हैं और साल-दर-साल उनकी संख्या में वृद्धि होती गई है. 2014 में जहाँ 63 कश्मीरी युवक आतंकी संगठनों में शामिल हुए, वहीँ 2015 में 83, 2016 में 84, 2017 में 128 और 2018 के जून तक 82 कश्मीरी युवक विभिन्न आतंकी संगठनों में शामिल हुए हैं.

एक ओर आतंकियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, वहीँ दूसरी और उन आतंकियों के मारे जाने की घटना में विस्मयकारी कमी आयी है. साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के अनुसार मनमोहन सिंह की पिछली सरकार के कार्यकाल में जहाँ 4239 आतंकी ढेर कर दिए गए थे, वहीँ वर्तमान सरकार के कार्यकाल में 2014 से 2018 के बीच कुल 876 आतंकी मारे जा सके हैं.

जिस सर्जिकल स्ट्राइक को पकिस्तान का मनोबल चकनाचूर कर देने वाली कार्रवाई के रूप में प्रसारित किया गया था, वह खोखला साबित हो चुका है. भारत-पाकिस्तान के तनाव पर नजर रखनेवाली बेवसाईट इंडो-पाक कोन्फ्लिक्ट मॉनिटर के द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार भारत-पाक सीमा पर हर साल बढती संख्या में सीजफायर का उल्लंघन हुआ है. इस बेवसाईट के अनुसार 2014 में 543 बार सीजफायर का उल्लंघन हुआ था, 2015 में 405 बार, 2016 में 449 बार, 2017 में 971 बार और 2018 में तो 1432 बार सीजफायर का उल्लंघन हुआ. अर्थात वर्तमान सरकार के काल में सीमा पार से हमलों की घटनाएँ पिछले सारे रिकॉर्ड की सीमा को पार कर गई हैं. साल 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक की निगरानी करने वाले पूर्व नॉर्दर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) डी एस हुड्डा कहते हैं कि इस कार्रवाई से कुछ नहीं बदला, बल्कि 3-4 सालों में आतंकी संगठनों से जुड़ने वाले युवकों की संख्या बढ़ी है. सुरक्षा बलों पर होनेवाले हमलों में भी इजाफा हुआ है. गत वर्ष हमने जितने जवान खोये हैं, वह पिछले दस साल में सबसे ज्यादा है.

कुछ ही दिन पहले लोकसभा में बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री पियूष गोयल ने गर्वोन्नत घोषणा की थी कि उनकी सरकार ने ‘आतंकवाद की कमर तोड़ दी है’. चौदहवें दिन ही इस गौरवोक्ति के ढोल का फूट जाना एक ओर तो यह सूचित करता है कि सरकार को जम्मू-कश्मीर की हालतों का कुछ ठीक-ठीक पता नहीं है. ऐसा हो भी सकता है. जो व्यवस्था अपनी सत्ता को बरकरार रखने की चिंता में ही सदैव व्यस्त रहती हो, उसके पास दूसरी जानकारियों के लिए समय ही नहीं होता है. इसलिए संभव है कि वर्तमान सरकार के साथ भी ऐसा ही हुआ हो. वित्तमंत्री की वह घोषणा सरकार के बडबोलेपन को भी सूचित करती है. कश्मीर में जाड़े के दिनों में आतंकी घटनाओं में कमी आ जाती है. इस वर्ष भी घटनाओं में आयी मौसमजनित कमी को सरकार ने अपने प्रशासनिक प्रयासों की सफलता बताकर खुद पीठ थपथपा ली.

ये आँकड़े बोलते हैं. चीख-चीखकर सरकार के कहने और करने के फर्क को बताते हैं. ये आँकड़े सरकार की मंशा पर शक करने की जगह भी देते हैं. इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि आतंकियों और सीमापार हमलावरों के साथ सरकार की दुरभिसंधि है, जिसके तहत वह देशी आतंकवादियों और पाकिस्तान के खिलाफ दिए जानेवाले बयानों से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की सफल राजनीति भी कर ले रही है, दूसरी तरफ उन हमलावरों और आतंकियों को अपना दायरा बढाने का अवसर भी प्रदान कर रही है. देखने से तो ऐसा ही लगता है.

इसका परिणाम क्या हुआ है? कश्मीर में लंबे समय से आतंकी गतिविधियाँ होते रहने के बावजूद वहाँ के 90 प्रतिशत निवासी अपने वजूद को भारत के साथ जोड़कर देखते थे. लेकिन हाल के वर्षों में सैन्य कार्रवाइयां इस तरह की गईं और आतंकियों के नाम पर पूरे कश्मीर को ही आतंकी साबित करने का ऐसा नफ़रत भरा माहौल सायास निर्मित किया गया कि आज 90 प्रतिशत कश्मीरी भारत-विरोधी हो गए हैं.

यही है अखंड भारत के निर्माण की दिशा में उठाये गए क़दमों की उपलब्धि.

× लोकजीवन पर प्रकाशित करने के लिए किसी भी विषय पर आप अपने मौलिक एवं विश्लेषणात्मक आलेख lokjivanhindi@gmail.com पर भेज सकते हैं।

Disclaimer of liability

Any views or opinions represented in this blog are personal and belong solely to the author and do not represent those of people, institutions or organizations that the owner may or may not be associated with in professional or personal capacity, unless explicitly stated. Any views or opinions are not intended to malign any religion, ethnic group, club, organization, company, or individual.

All content provided on this blog is for informational purposes only. The owner of this blog makes no representations as to the accuracy or completeness of any information on this site or found by following any link on this site. The owner will not be liable for any errors or omissions in this information nor for the availability of this information. The owner will not be liable for any losses, injuries, or damages from the display or use of this information.


Categories:

Created on:

Leave a comment