बजट के स्ट्रेचर पर शिक्षा का परीक्षण

Dr. Anil Kumar Roy     13 minute read         

वर्ष 2021-22 का बजट विशेष परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया गया था। इस बार का बजट कोविद 19 महामारी के चलते हुए दौर में और लंबी बंदी के कारण जन जीवन से लेकर उद्योग-धंधे - सब कुछ तबाह होने के बाद पेश किया गया था। इसलिए आम आदमी के जीवन में फिर से गत्वरता उत्पन्न करना इस बजट की प्राथमिक आवश्यकता थी।

education budget cut

विशेष परिस्थितियाँ :

वर्ष 2021-22 का बजट विशेष परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया गया था। इस बार का बजट कोविद 19 महामारी के चलते हुए दौर में और लंबी बंदी के कारण जन जीवन से लेकर उद्योग-धंधे - सब कुछ तबाह होने के बाद पेश किया गया था। इसलिए आम आदमी के जीवन में फिर से गत्वरता उत्पन्न करना इस बजट की प्राथमिक आवश्यकता थी।

​ आम जीवन की तरह ही शिक्षा में भी लगभग एक साल की लंबी बंदी के बाद शैक्षिक संस्थाओं को फिर से खोला जाना है। उसमें बच्चों और शिक्षकों की सुरक्षा और बचाव के लिए सफाई, मास्क, सैनिटाइज़र, पेयजल, शौचालय की साफ़-सफाई की विशेष और सजग व्यवस्था करने के साथ ही अपने अभिभावकों के साथ शहरों से गाँवों में आए लाखों छात्रों के कारण बदले हुए जनसांख्यिक समीकरण में अधिक कक्षाओं, शिक्षकों, बेंच-डेस्क, पुस्तकों और सहायता तथा प्रोत्साहन राशि का विशेष इंतज़ाम किए जाने की ज़रूरत थी।

बजट 2021 : आवश्यकताओं की कसौटी पर

अप्रैल महीने से वित्त वर्ष शुरू होने के पहले हर साल सरकार के द्वारा आगामी वर्ष के खर्च की रूपरेखा प्रस्तुत की जाती है। इसे ही बजट कहते हैं। खर्च की यह रूपरेख...

​ कोविद 19 के कारण उत्पन्न आवश्यकता के अतिरिक्त शिक्षा के लिए यह बजट नई शिक्षा नीति की पृष्ठभूमि में भी प्रस्तुत हुआ है। अनेक राज्यों ने इस नई नीति को लागू करने की घोषणा भी कर दी है। इस नीति में शिक्षा, शिक्षक और विद्यालयों के संपूर्ण बदलाव की परिकल्पना प्रस्तुत किए जाने के साथ ही बजट में शिक्षा के लिए 6% के आबंटन का आश्वासन भी दिया गया था।

​ इसलिए इस बजट में शिक्षा के लिए विशेष वित्तीय प्रावधानों के द्वारा दोनों अपेक्षाओं पर खड़े उतरने की अपेक्षा की जा रही थी।

बजट भाषण में शिक्षा :

यह देखना भी महत्वपूर्ण होगा कि वित्तमंत्री ने अपने लंबे बजट भाषण में कौन-कौन-सी महत्वपूर्ण बातें कहीं या घोषणा की और बजट में उसके लिए किस तरह का प्रावधान किया है। अपने भाषण में वित्तमंत्री ने शिक्षा से संबंधित आठ मुख्य बिंदुओं पर ज़ोर दिया था -

  1. नई शिक्षा नीति के घटकों का अनुपालन करने के लिए 15000 विद्यालयों में गुणवत्ता की दृष्टि से सुधार किया जाएगा।
  2. NGO या निजी स्कूल या राज्य की भागीदारी से 100 नए सैनिक स्कूल खोले जाएँगे।
  3. जनजातीय छात्रों के लिए 750 एकलव्य मॉडल रेसीडेंसीयल स्कूल की स्थापना का लक्ष्य है। इनकी लागत 20 करोड़ से बढ़ाकर 38 करोड़ और दुर्गम क्षेत्रों में 48 करोड़ किया गया है।
  4. अनुसूचित जाति के बच्चों के पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए 4 करोड़ विद्यार्थियों के लिए छह वर्ष तक की अवधि के लिए 35,219 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है।
  5. 2019-20 में प्रस्तावित उच्चतर शिक्षा आयोग के प्रस्ताव को इस वर्ष क्रियान्वित किया जाएगा।
  6. 9 शहरों में औपचारिक रूप से छत्रक अनुसंधान संस्थानों की संरचना खड़ी की जाएगी। इसके लिए अलग से ग्लू ग्रांट रखा जाएगा।
  7. लद्दाख के लेह में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना होगी।
  8. 2019 के बजट में नेशनल रीसर्च फ़ाउंडेशन की घोषणा की गई थी। उसके लिए अब 50,000 करोड़ का प्रावधान किया जा रहा है।

बजट भाषण की इन घोषणाओं से तीन बातें ज़ाहिर होती हैं। पहली यह कि नई शिक्षा नीति के तहत सरकार महज़ 15000 विद्यालयों में ही, गुणवत्ता की दृष्टि से, सुधार किए जाने का लक्ष्य है; बाक़ी लाखों विद्यालय उपेक्षित रहेंगे। समाजशास्त्रीय दृष्टि से कुछ को बेहतर बनाने का अर्थ भेदभाव और असमानता की इबारत लिखना है। तो पहली बात यह कि यह बजट असमानता बढ़ाने की सैद्धांतिक राह पर चली है। दूसरी यह कि इसमें शिक्षा के निजीकरण का खुलेआम ऐलान किया गया है। तीसरी यह कि पिछले वर्ष की घोषणाओं के जब इस वर्ष वित्तीय प्रावधानों की घोषणा की जा रही है तो इस वर्ष की घोषणाएँ भी लंबित रह जा सकती हैं। अर्थात घोषणाओं के पूरा होने का पक्का भरोसा नहीं है।

बजट के प्रदर्शन में बदलाव :

इस बजट में एक और बात ध्यान आकर्षित करती है। वह है किसी मद में वित्तीय प्रावधानों के स्रोतों को दिखाए जाने की परंपरा समाप्त करना। केंद्रीय विद्यालय संगठन, नवोदय विद्यालय समिति, समग्र शिक्षा, मध्याह्न भोजन, अल्पसंख्यकों के कार्यक्रम आदि के बजट में इसे देखा जा सकता है। जैसे समग्र शिक्षा के बजट में GBS, प्रारंभिक शिक्षा कोश, माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा कोश आदि स्रोतों से वित्त के प्रावधानों को दिखाना बंद करके केवल Support for Samagra Shiksha लिख दिया गया है। जिस तरह इस सरकार ने अपने शुरुआती दिनों में ही रेल बजट को समाप्त करके आम बजट में समाहित कर दिया, उसी तरह ऊपर वर्णित अन्य मदों में भी किया गया है। इससे प्रावधानों की पारदर्शिता प्रच्छन्न रह जाती है और आम लोग इसे स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाते हैं।

कुल बजट :

शिक्षा में कुल आबंटन 93224.31 करोड़ है। यह 3483235.63 करोड़ के कुल बजट का 2.67% है। आज से नहीं, बल्कि कोठारी आयोग की अनुशंसा के समय से ही शिक्षा का बजट 6% किए जाने की माँग होती रही है। इसी सरकार ने अभी कुछ ही दिन पहले लागू की गई शिक्षा नीति में शिक्षा का बजट 6% किए जाने का आश्वासन दिया था। परंतु सरकार अपने ही दिए गए आश्वासन से इस बजट में मुकर गई है, जबकि कोविद 19 के दुष्प्रभावों से निबटने के लिए और नई शिक्षा नीति के आश्वासनों को पूरा करने के लिए शिक्षा के बजट में पहले से बढ़ोत्तरी की ज़रूरत थी।

शिक्षा बजट के भाग :

शिक्षा के संपूर्ण बजट को दो भागों में बाँटकर प्रस्तुत किया गया है, ऐसा पहले से ही किया जाता रहा है - (क) स्कूल शिक्षा और साक्षरता और (ख) उच्च शिक्षा। हम भी इसे इसी तरह अलग-अलग परखने की कोशिश करेंगे।

(क) स्कूल शिक्षा और साक्षरता :

स्कूल शिक्षा और साक्षरता के लिए 2021-22 के बजट में 54873.66 करोड़ का प्रावधान किया गया है। वर्ष 2019-20 में यह 52520.19 करोड़ था, जिसे वर्ष 2020-21 के मूल बजट में बढ़ाकर 59845.00 करोड़ तो किया गया, परंतु फिर उसे संशोधित करके 52189.07 करोड़ कर दिया गया। अर्थात 2020-21 का शिक्षा बजट वर्ष 2019-20 के बजट से भी कम था। इस वर्ष भी यदि पिछले वर्ष की भाँति बजट को संशोधित करके उसी तरह 7 हज़ार करोड़ कम कर दिया गया, जिसकी पूरी संभावना है, तो यह क़रीब 47 हज़ार करोड़ का हो जाएगा और उसमें क़रीब 4.7% महँगाई दर को भी ले लिया जाय तो जो बजट अभी भी पिछले साल के मूल बजट से कम है, उसे संशोधित करके घटा दिया गया तो इस महँगाई दर के हिसाब से 40 हज़ार करोड के आस-पास रह जाएगा। अनपेक्षित रूप से घटे हुए इस वित्तीय आबंटन से शिक्षा की बधी हुई आवश्यकताओं से कैसे निपटा जा सकेगा, यह चिंता की बात है।

​ जिन मदों के बजट में बढ़ोत्तरी की गई है, पहले उन्हें लेते हैं। वे हैं प्रधानमंत्री नवाचारी अधिगम कार्यक्रम और स्वायत्त निकाय। प्रधानमंत्री नवाचारी अधिगम कार्यक्रम के लिए पिछले साल के 50 लाख के बदले इस बार 10 करोड़ की व्यवस्था की गई है। इसके तहत चलने वाले कार्यक्रमों का खुलासा बजट से नहीं होता है। स्वायत्त निकायों के अंतर्गत केंद्रीय विद्यालय संगठन और नवोदय विद्यालय समिति आते हैं। इनके पिछले साल के संशोधित बजट 10394.99 करोड़ में मामूली इज़ाफ़ा करते हुए उसे 11192.00 करोड़ किया गया है। महंगाई दर के हिसाब से यह बढ़ा हुआ दिखाई पड़ने वाला आबंटन भी पिछले साल की अपेक्षा कम हो जाएगा। लेकिन एक मद में वास्तविक वृद्धि की गई है। वह है विश्व बैंक के अंशदान से चलने वाली STARS परियोजना, जिसमें कुछ राज्यों में शिक्षण-अधिगम को मज़बूती देने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जाएगा और जिसका पुरज़ोर विरोध तमाम शिक्षाविदों ने किया था। पिछले ही साल शुरू हुई इस परियोजना के लिए पिछले साल के 111.79 करोड़ के आबंटन को बढ़ाकर इस बार 485.00 करोड़ कर दिया गया है।

​ बहुत सारे ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें बजट का घटाया जाना चौंका देता है। स्कूल शिक्षा के केंद्रीय स्थापना का बजट ही 40 करोड़ से घटाकर 33 करोड़ कर दिया गया है। इसका मतलब होता है कि कर्मचारियों की छँटनी होगी और अधोसंरचना में कमी की जाएगी। बड़े ज़ोर-शोर से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा लगाने के बावजूद बालिकाओं को माध्यमिक शिक्षा में प्रोत्साहित करने के लिए दी जाने वाली पिछले साल की 110 करोड़ की राशि को आश्चर्यजनक ढंग से महज़ 1 करोड़ कर दिया गया है। यह टोकेन राशि बालिकाओं को प्रोत्साहित करने की सारी योजनाओं की हवा निकाल देगी। यही दुर्गति मध्याह्न भोजन योजना के लिए वित्तीय प्रावधान में भी दिखती है। नई शिक्षा नीति के अनुसार अब विद्यालयों में बच्चों को मध्याह्न भोजन के साथ ही सुबह का नाश्ता भी दिए जाने का प्रावधान है। राज्यों में इस पर अमल करने की चर्चा भी शुरू हो गई है। लेकिन उसके लिए पिछले साल आबंटित (संशोधित) 12900.00 करोड़ को घटाकर महज़ 11500.00 कर दिया गया है। इसका अभिप्राय यह हो सकता है कि मध्याह्न भोजन की योजना बंद करके उसका मुद्रीकरण कर दिया जाय। उपर्युक्त मदों में तो बजट को कम किया गया है या महंगाई की दृष्टि से बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। लेकिन मदरसा और अल्पसंख्यक के लिए इस बजट में एक पाई भी आबंटित नहीं किया गया है, जो पिछले साल 310 करोड़ था। इसे सरकार के मुस्लिम विरोधी रवैये के परिणाम के रूप में देखा जा सकता है। नेशनल एजुकेशन मिशन, जिसके तहत समग्र शिक्षा और वयस्क शिक्षा - दो कार्यक्रम चलते हैं, उसमें भी पिछले साल के मूल बजट 38860.50 करोड़ को घटाकर इस बार 31300.16 करोड़ कर दिया गया है। अर्थात इन कार्यक्रमों में भी कटौती की जाएगी।

​ ग्रांट्स इन एड टू स्टेट गवर्न्मेंट में भी लगातार कमी की जाती रही है। स्कूल शिक्षा के लिए राज्यों को दी जाने वाली राशि वर्ष 2019-20 में 40729.12 करोड़ थी। वर्ष 2020-21 के मूल बजट में उसे घटाकर 38114.73 करोड़ किया गया और उसे पुनः संशोधित करके 35678.31करोड़ कर दिया गया। इस वर्ष, घटाने की उस प्रवृत्ति को क़ायम रखते हुए, उसे और भी घटाकर 33480.00 अरोड कर दिया गया है। GST लागू होने के बाद पेट्रोल आदि एकाध मदों से होने वाली आय को छोड़कर सारे धन पर केंद्र का क़ब्ज़ा हो गया है। और, अब वह राज्यों को कल्याणकारी मदों में प्रदान की जाने वाली राशि में लगातार कटौती करता जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में राज्यों को प्रदान की जाने वाली राशि में कटौती कल्याणकारी मदों से सरकार के हाथ खींचने की प्रवृत्ति का सूचक है।

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(ख) उच्च शिक्षा :

​ नई शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा को लेकर कई उत्साहजनक बातें की गई हैं। शिक्षा में भारत के वैश्विक हब बनने और भारत के ‘विश्वगुरु’ होने की धारणा अब आम लोगों में बस गई है। लेकिन वित्तीय प्रावधानों की दृष्टि से इस दिशा में कोई भी प्रयास किया जाता हुआ नहीं दिखाई पड़ता है। वर्ष 2020-21 के मूल बजट में उच्च शिक्षा के लिए जहाँ 39466.52 करोड़ रुपए आबंटित किए गए थे, वहीं इस वर्ष इसे घटाकर 38350.00 करोड़ कर दिया गया है।

पहले उन मदों की ओर देखते हैं, जिनमें या तो अप्रत्याशित रूप से वृद्धि की गई है या इस बजट में ही जिन मदों का जन्म हुआ है। सबसे पहले 11वें नंबर पर अवस्थित World Class Institutions नामक मद पर नज़र पड़ती है। ये विश्व स्तरीय संस्थाएँ वे ही हैं, जिनके लिए प्रधानमंत्री ने 2018 में ही घोषणा की थी कि निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के 10-10 विश्वविद्यालयों को उत्कृष्ट बनाया जाएगा और जिसमें जीयो विश्वविद्यालय का भी नाम आया था, जो इतने दिनों के बाद भी कहीं नहीं दिखता है। उसी के लिए इस वर्ष के बजट में 1710.00 करोड़ का प्रावधान किया गया है, जबकि वर्ष 2020-21 के मूल बजट में उसके लिए महज़ 500.00 करोड़ का ही प्रावधान किया गया था। इसी तरह राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के बजट को पिछले साल (मूल) के 300 करोड़ को बढ़ाकर इस बार 3000 करोड़ कर दिया गया है और ई लर्निंग के लिए 305.38 करोड़ (संशोधित) के बजट को लगभग दोगुना करके 645.61 करोड़ कर दिया गया है।

कुछ ऐसे मद भी हैं, जिनकी शुरुआत और जिनके लिए वित्तीय प्रबंध इस बजट से किया गया है। वे हैं - भारतीय ज्ञान प्रणाली, जिसके लिए 10 करोड़ का प्रावधान किया गया है; भारतीय भाषा विश्वविद्यालय, जिसके लिए 50 करोड़ का वित्त अबंटित किया गया है।

इन नए मदों के सृजन और कुछ पुराने मदों के बजट में बढ़ोत्तरी के प्रावधान से उस रास्ते को भी समझना चाहिए, जिस पर सरकार उच्च शिक्षा को ले जाना चाहती है।

इन कुछ मदों के अतिरिक्त अन्य मदों में या तो आबंटन घटाया गया है या मामूली वृद्धि की गई है, 4.7% महँगाई दर को जोड़कर देखने पर उनमें भी बजट घटा हुआ ही दिखेगा।

सबसे पहले केंद्र की स्थापना का ही बजट लेते हैं, जो वर्ष 2020-21 के मूल बजट में 39466.52 करोड़ का था, लेकिन इस बार उसके लिए महज़ 38350.65 करोड़ ही आबंटित किया है। उच्च शिक्षा वित्तीय अभिकरण 2200 करोड़ (मूल बजट में) को समाप्त करके महज़ 1 करोड़ कर देना आसहचर्यजनक लगता है। उच्च शिक्षा के सेंट्रल सेक्टर के कुल 2731.40 करोड़ (वर्ष 2020-21 मूल बजट) में लगभग एक हज़ार करोड़ की कटौती करके महज़ 1744.40 करोड़ का कर दिया गया है। छात्रों की वित्तीय सहायता के प्रावधानों के लिए बजट में मामूली वृद्धि करते हुए उसे 2316 करोड़ से बढ़ाकर 2482.32 करोड़ किया गया है, जिसे, बढ़ती हुई महंगाई की दृष्टि से, नहीं बढ़ा हुआ ही माना जाएगा। शोध और नवाचार पर बातें तो खूब बढ़-चढ़कर की जाती रही हैं, लेकिन बजट के आबंटन में इसे प्रोत्साहित करने का कोई प्रावधान नहीं दिखाई पड़ता है। पिछले साल के मूल बजट में शोध और नवाचार के लिए जहाँ 307.40 करोड़ (मूल बजट) का प्रावधान किया गया था, उसे इस वर्ष घटाकर 237.40 करोड़ कर दिया गया है। कुल मिलाकर केंद्रीय कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिए पिछले साल जहाँ 8406.90 करोड़ (मूल बजट) का प्रावधान किया गया था, उसे इस साल घटाकर 6069.43 करोड़ कर दिया गया है। इसी तरह केंद्रीय विश्वविद्यालयों के बजट को घटाया गया है, IITs के बजट में मामूली वृद्धि की गई है, IIMs की राशि को पूर्ववत रहने दिया गया है, NITs के लिए मामूली वृद्धि की गई है, IISERs के बजट को घटाया गया है और स्वायत्त संस्थाओं के लिए वर्ष 2020-21 में देय कुल 23492.16 (मूल बजट) करोड़ में मामूली वृद्धि करते हुए उसे इस वर्ष 23914.58 किया गया है। महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के शिक्षक के वेतन के मद में देय राशि में भी कटौती की गई है। विभिन्न मदों, यहाँ तक कि वेतन के मद में भी, कटौती का निष्कर्ष निकलता है कि भारत में उच्चतर शिक्षा को जीवित रखने के लिए फ़ीस में बेतरह बढ़ोत्तरी की जाएगी, शिक्षकों को कम किया जाएगा और स्वायत्तता के नाम पर इन्हें कंपनियों का शरणागत कर दिया जाएगा, जिसकी ओर नई शिक्षा नीति के प्रारूप में बार-बार इंगित किया गया था।

इस तरह बजट में न तो 6% के लक्ष्य को ध्यान में रखा गया है, जिसका आश्वासन शिक्षा नीति में दिया गया था, न ही तात्कालिक ज़रूरतों के समाधान की दृष्टि दिखाई पड़ती है। बल्कि यह बजट बालिका प्रोत्साहन, मध्याह्न भोजन, अल्पसंख्यकों के शैक्षिक एवं प्रोत्साहक कार्यक्रम, स्थापना, शोध, शिक्षक के वेतन, छात्रों को सहायता आदि के बजट में कटौती करके अप्रत्याशित रूप से चौंका देती है।

​ शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सवाल स्थायी सवाल हैं। इसलिए उनकी व्यवस्था के लिए स्थायी प्रावधान होने चाहिए थे। परंतु इन पर होने वाले ख़र्चों की पूर्ति के लिए 2% सेस लगाने की घोषणा की गई। परंतु इस टैक्स के बढ़ाए जाने के बावजूद शिक्षा में बेहतरी की कोई दृष्टि इस बजट में नहीं झलकती है।

​ इस तरह बजट के स्ट्रेचर पर शिक्षा का परीक्षण करने पर हम पाते हैं कि पहले से ही बीमार चली आती हुई शिक्षा की हालत, इस अपर्याप्त और असंतुलित बजटीय उपचार से, और भी ज़्यादा गंभीर हो जा सकती है।

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