बजट 2022 के स्ट्रेचर पर शिक्षा का परीक्षण

Dr. Anil Kumar Roy     11 minute read         

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा के संबंध में बड़े-बड़े सपने दिखाये गए हैं और विश्वास दिलाया गया है कि यह नीति देश को ‘विश्वगुरु’ बनाने का रोडमैप है। लेकिन बजट के आवंटनों में जब हम उन सपनों को पूरा करने के प्रावधानों की तलाश करते हैं तो भारी निराशा हाथ लगती है। बल्कि उन आवंटनों में भी भारी कटौती की गयी है, जो सार्वजनिक शिक्षा के विस्तार और सशक्तिकरण के लिए अत्यावश्यक थे।

चित्र : साभार
चित्र : साभार

वर्ष 2020 की जुलाई के अंत में नयी शिक्षा नीति ला दिये जाने के बाद यह दूसरा वर्ष है, जब बजट पेश किया गया है। इसलिए शिक्षा से सरोकार रखने वाले तमाम लोगों की यह वाजिब जिज्ञासा है कि शिक्षा नीति में ‘विश्वगुरु’ बनाए जाने के जितने रास्ते सुझाये गए थे, उनके लिए किस तरह के वित्तीय प्रावधान किए गए हैं।

​बजट पर बात करते समय एक बात स्पष्ट रहनी चाहिए कि मुख्य बजट में सरकार जो वित्तीय प्रावधान करती है, उस पर वह कायम रहे, इसके लिए कोई संवैधानिक या कानूनी बंधन की व्यवस्था नहीं की गयी है। इसलिए बजट के वित्तीय आवंटन को ‘अनुमान’ कहा जाता है। इस मुख्य ‘अनुमान’ के बाद एक बार फिर ‘संशोधित अनुमान’ का बजट बनाया जाता है, जिसकी चर्चा प्राय: नहीं होती है और जिसका पता अगले साल चलता है। लेकिन ‘वास्तविक व्यय’ इन मुख्य और संशोधित बजटों से भिन्न होता है, जिसका दो वर्षों के बाद पता चलता है। प्राय: मुख्य बजट में किसी मद में भारी-भरकम वित्तीय प्रावधान दिखा दिये जाते हैं, संशोधित बजट में उसमें कटौती कर दी जाती है और वास्तविक बजट में उसे संशोधित बजट से भी कम किया जाता है। बजट के वित्तीय आवंटन में रूप-परिवर्तन की इस तरलता के कारण उसके बारे में ठोस रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है। अनिश्चित और मनमाफिक परिवर्तन की सारी संभावनाओं के बावजूद बजट पर इसलिए चर्चा की जाती है क्योंकि इसके वित्तीय प्रावधानों से सरकार की अभिरुचि और प्राथमिकताओं की झलक मिलती है। नयी शिक्षा नीति की अनुशंसाओं के प्रति सरकार की कितनी अभिरुचि है, किन-किन प्रावधानों के प्रति अभिरुचि है और उसे वह कितनी प्राथमिकता के साथ ले रही है, इस आलेख में हम इसे ही जानने-परखने का काम करेंगे।

बजट के साथ मुद्रास्फीति का अंतर्संबंध

बजट के साथ मुद्रास्फीति को हमेशा जोड़कर देखा जाना चाहिए। मुद्रास्फीति बजट के आवंटन में स्वाभाविक कटौती है। इसलिए बजट पर चर्चा करते समय इसमें हमेशा मुद्रास्फीति की दर को जोड़कर या घटाकर देखना चाहिए। यदि बजट में बढ़त हुई है तो बढ़त के प्रतिशत में वर्तमान मुद्रास्फीति दर के प्रतिशत को घटाकर देखना चाहिए और यदि बजट में कमी की गई है तो कम किए गए प्रतिशत में मुद्रास्फीति के प्रतिशत को जोड़कर देखना चाहिए। वर्तमान में, अर्थात जनवरी 2022 में, भारत की थोक मुद्रास्फीति 12.96% है। इसका मतलब है कि बजट में वृद्धि के प्रतिशत में लगभग 13% घटाकर और कमी के प्रतिशत में 13% जोड़कर देखना चाहिए।

शिक्षा बजट 2022

वर्ष 2022-23 के लिए, विद्यालय शिक्षा और साक्षरता तथा उच्च शिक्षा को मिलाकर कुल 1,04,277 करोड़ का बजट पेश किया गया है, जो पिछले साल (2021-22) के कुल शिक्षा बजट 93,224 करोड़ से 11,053 करोड़ ज्यादा है। अर्थात पिछले साल के बजट से इस बार के बजट में 11.85% की बढ़ोत्तरी की गई है, जबकि मुद्रास्फीति लगभग 13% है। इस तरह शिक्षा के कुल बजट में इस बार पिछले साल की अपेक्षा 1% की कमी हुई है।

प्रतिशत की दृष्टि से शिक्षा के लिए जीडीपी का 6 प्रतिशत की माँग बहुत पुरानी है। इसी सरकार के द्वारा स्वीकृत नयी शिक्षा नीति 2020 में भी इस 6% का आश्वासन दिया गया है। लेकिन बजट में शिक्षा के लिए कुल खर्च का महज 2.71 प्रतिशत ही प्रदान किया गया है। यह तो हाल है अपने ही दिये गए आश्वासन का! वर्ष 2015-16 में भी शिक्षा का बजट कुल बजट का 3.75% था। अपेक्षा तो यह की जानी चाहिए थी कि बदलते हुए कैलेंडर के साथ शिक्षा का प्रतिशत भी बढ़ता चला जाएगा। लेकिन यहाँ तो गाड़ी पीछे ही खिसकती जा रही है। यह तो है कि राष्ट्रीय विकास का प्रमुख चक्का होने के बावजूद शिक्षा कभी राज्य के मुख्य एजेंडे में नहीं रही, लेकिन इतनी उपेक्षित भी कभी नहीं रही, जितनी उपेक्षित अभी है, जबकि नयी शिक्षा नीति की थाली में विश्वगुरु, नए ज्ञान के सृजन, वैश्विक शैक्षिक संस्थाएँ आदि के अनेक उच्च स्तरीय भावनात्मक सपने परोसे गए हैं।

विद्यालय शिक्षा और साक्षरता के लिए इस वर्ष 63,449.37 करोड़ का आवंटन किया गया है, जो वर्ष 2021-22 के 54,873 करोड़ से 8,576 करोड़ अर्थात 15% अधिक है। इस बढ़े हुए 15% में जब मुद्रास्फीति का 13% घटाकर देखते हैं तो यह वृद्धि महज 2% रह जाती है। पिछले वर्ष की अपेक्षा इस दो प्रतिशत की वृद्धि को लेकर ही कोरोना के कारण चरमरा गयी शैक्षिक व्यवस्था को दुरुस्त करना है, 11 लाख से ज्यादा शिक्षकों के रिक्त पदों पर बहाली करनी है, शिक्षा अधिकार के अब तक 25% अनुपालन को शत-प्रतिशत तक ले जाना है और शिक्षा नीति में दिखाए गए स्वप्नों के अनुसार विद्यालयों की भव्य संरचना निर्मित कर ज्ञान-प्राप्ति की जीवंत प्रणाली को निर्मित करके 21वीं सदी की शिक्षा के लिए आकांक्षात्मक लक्ष्यों (परिचय, नयी शिक्षा नीति, 2020) को पूरा करना है।

उच्च शिक्षा के लिए वर्ष 2022-23 के बजट में 40,828 करोड़ का प्रावधान किया गया है, जो वर्ष 2021-22 के 38,350 करोड़ से 2,478 करोड़ अर्थात 6.46% अधिक है। यदि मुद्रास्फीति के हिसाब से देखते हैं तो इसमें लगभग 6.5% की कमी कर दी गई है। इस कमी के साथ ही एक नया और भविष्योन्मुख (अनुच्छेद 9, नयी शिक्षा नीति, 2020) शिक्षा की रूपरेखा खड़ी की जाएगी तथा विश्वगुरु के रूप में अपनी भूमिका को बहाल (अनुच्छेद 12.8, नयी शिक्षा नीति, 2020) किया जाएगा।

मदवार आवंटन

इस खंड में कमजोर, वंचित और उपेक्षित वर्गों की शिक्षा के लिए नयी शिक्षा नीति में दिये गए आश्वासनों को बजट 2022 के आवंटनों की कसौटी पर खड़ा करके देखेंगे।

सबसे पहले मध्याह्न भोजन योजना को लेते हैं, जिसका पता नहीं किस कारण से अब प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना नाम कर दिया गया है। बच्चों को विद्यालय से जोड़ने की यह अब तक की सबसे कामयाब योजना रही है। दुनिया के अधिकांश विकसित देशों के विद्यालयों में बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन की व्यवस्था है। नयी शिक्षा नीति 2020 में भी कहा गया है - “कई सारे अध्ययन से यह पता चलता है कि सुबह के पौष्टिक नाश्ते के बाद के कुछ घंटों में कई सारे मुश्किल विषयों का अध्ययन अधिक प्रभावी होता है। इस उत्पादक और प्रभावी समय का लाभ उठाया जा सकता है, यदि सुबह और दोपहर में बच्चों को क्रमश: पौष्टिक नाश्ता और भोजन दिया जाय।“ (2.9, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020) लेकिन सरकार अपनी ही इस कागजी नीति के उलट मध्याह्न भोजन के बजट में लगातार कमी करती जा रही है। वर्ष 2020-21 में जहाँ मध्याह्न भोजन के मद में 12878.15 करोड़ रुपये वास्तविक खर्च हुए थे, इसके बावजूद वर्ष 2021-22 के बजट में इसके लिए 11,500 करोड़ का ही प्रावधान किया गया, जिसे संशोधित करके 10233.,75 करोड़ कर दिया गया। इस वर्ष भी इस योजना के लिए 10233.75 करोड़ ही रखे गए हैं अर्थात वर्ष 2020-21 की तुलना में 20.5% की कटौती कर दी गई है। संभावना है कि बजट संशोधन और वास्तविक बजट में यह और भी कम होता चला जाए, जबकि इसके साथ आंगनबाड़ी के बच्चों को भी जोड़ दिया गया है। हाल ही में वैश्विक भूख सूचकांक में भारत विश्व के सबसे कुपोषित बच्चों वाले देश के रूप में परिगणित हुआ है। ऐसे में मध्याह्न भोजन की राशि में जहाँ पर्याप्त बढ़ोत्तरी की अपेक्षा थी, वहाँ इसमें भारी कटौती कर दी गयी है। बच्चों के भोजन के अधिकार के साथ यह क्रूर व्यवहार शिक्षा नीति के कागजी आश्वासनों का मुँह चिढ़ाता है।

पुरुषत्ववाद की बेड़ियों में कसमसाती बेटियाँ

पौरुषवादी प्रवृत्ति उस पितृसत्तात्मक प्रवृत्ति से बिलकुल भिन्न है, जिसमें भी लड़कियों को दबाकर और दोयम दर्जे का बनाकर रखा जाता था। पितृसत्तात्मक सोच के मूल मे...

शिक्षा नीति के समतामूलक और समावेशी शिक्षा वाले खंड में सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, लैंगिक और क्षेत्रीय रूप से कमजोर और वंचित समुदाय के बच्चे-बच्चियों के लिए आश्वासन दिया गया है - “यह शिक्षा नीति ऐसे लक्ष्यों को लेके आगे बढ़ती है, जिससे भारत देश में किसी भी बच्चे के सीखने और आगे बढ़ने के अवसरों में उसकी जन्म या पृष्ठभूमि से संबंधित परिस्थितियाँ बाधक न बन जाएँ।“ यह आश्वासन देकर कमजोर वर्ग के बच्चे-बच्चियों के लिए छात्रवृत्ति, छात्रावास, साइकल आदि की अनेक सहायता-सुविधा की अनुशंसा की गयी है। लेकिन बजट के प्रावधानों में उन अनुशंसाओं के प्रति जैसे शत्रुतापूर्ण व्यवस्था की गयी है। सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय के द्वारा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा, अति पिछड़ा वर्ग के बच्चे-बच्चियों को सहायता प्रदान करने वाली तमाम योजनाओं के लिए वर्ष 2021-22 में 1,395 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गयी थी, जिसको वर्ष 2022-23 में 30.53% कम करके 969.5 करोड़ ही आवंटित किया गया है। वंचित समूह के बच्चे-बच्चियों के शैक्षिक सशक्तिकरण पर होने वाले खर्च को एक तिहाई कम करके इस वर्ग के सशक्तिकरण के प्रति सरकार ने अपनी मंशा और प्रतिबद्धता जाहिर कर दी है।

शिक्षा नीति के पूरे दस्तावेज में मेधा-विकास पर लंबे-लंबे अनुच्छेद लिखे गए हैं, जिनसे ऐसा प्रतीत होता है कि ‘विश्वगुरु’ होने की तमाम तैयारियाँ पूरी कर ली गई हैं। लेकिन वहीं लौटकर जब हम उन आश्वासनों की पूर्ति के लिए बजट में प्रावधान ढूँढते हैं तो सिर पकड़कर बैठ जाना पड़ता है। राष्ट्रीय मेधा छात्रवृत्ति के लिए वर्ष 2020-21 में 373 करोड़ का प्रावधान किया गया था, वहीं वर्ष 2021-22 में उसे घटाकर 350 करोड़ कर दिया गया और वर्ष 2022-23 में उसके लिए महज 300 करोड़ रुपये ही आवंटित किए गए हैं, जबकि वर्ष 2019-20 में भी इसके लिए 331.26 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। इस तरह वर्ष 2020-21 की अपेक्षा इस वर्ष इसमें 73 करोड़ अर्थात लगभग 20% की कमी करके मेधा विकास की अपेक्षा की जाएगी। इसी तरह अनुसूचित जनजाति की छात्राओं के शैक्षिक प्रोत्साहन के लिए वर्ष 2020-21 में 110 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, जो उस समय भी अपर्याप्त था, फिर भी पिछले बजट में इसे महज 1 करोड़ कर दिया गया और इस बार उसे शून्य कर दिया गया, मानो ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की जरूरत अब पूरी हो गई है। यह ऐसे समय में किया गया है, जब बच्चियों का, विशेषकर वंचित समूह की बच्चियों का छीजन ऐतिहासिक रूप से शीर्ष पर है। जबकि Global Insights Report 2020 के मुताबिक वर्ष 2030 तक यदि 100% लड़कियाँ उच्चतर माध्यमिक की शिक्षा पूरी कर लेती हैं तो GDP में 10% का उछाल आ जाएगा। समग्र शिक्षा का बजट वर्ष 2020-21 में ही जहाँ 3,8750.50 करोड़ था, उसे वर्ष 2022-23 में 1,367 करोड़ (3.52%) घटाकर 3,383.36 करोड़ कर दिया गया है। मदरसा एवं अल्पसंख्यकों की शिक्षा के लिए वर्ष 2020-21 में 220 करोड़ का प्रावधान किया गया था, जिसे पिछले ही साल पूर्णत: समाप्त कर दिया गया। इसी तरह राज्यों को दिये जाने वाले ग्रांट्स इन ऐड में भी लगातार भारी कटौती की जा रही है। वर्ष 2020-21 में राज्यों को दिये जाने वाले ग्रांट्स इन ऐड की राशि जहाँ 39,950.08 करोड़ थी, वहीं 2022-23 के लिए 37,929 करोड़ की राशि ही स्वीकृत की गयी है अर्थात वर्ष 2020 की अपेक्षा वर्ष 2022 में 2,021 करोड़ (5%) की कमी कर दी गई है। जाहिर है कि राज्यों का अंश जब कम किया जाएगा तो राज्य भी अपने मदों में कटौती करेंगे।

उच्च शिक्षा के भी विभिन्न हितकारी मदों में भारी कटौती कि गयी है। उच्च शिक्षा की केंद्रीय योजनाओं के लिए वर्ष 2021-22 में 6,069.43 करोड़ का प्रावधान किया गया था, वहीं वर्ष 2022-23 के लिए उससे 657 करोड़ रुपये (10%) कम 5,412.01 करोड़ ही आवंटित किए गए हैं। छात्रों की वित्तीय सहायता के लिए वर्ष 2020-21 के 2,482.32 के मुक़ाबले 405 करोड़ (16.31%) कम राशि आवंटित की गयी है। शिक्षा नीति में भारत को ज्ञान का अंतर्राष्ट्रीय हब बनाने के चाहे जितने कसीदे काढ़े गए हों, लेकिन बजट में शोध और नवाचार के लिए पिछले साल के 237. 40 करोड़ से 8% राशि कम करके महज 218.66 करोड़ ही आवंटित किया गया है। राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA) के लिए आवंटित 2042.95 करोड़ की राशि भी पिछले वर्ष के लिए आवंटित 3000.00 करोड़ से 32% कम है। उच्च शिक्षा के लिए राज्यों को दिये जाने वाले ग्रांट्स इन ऐड में भी 35% की कमी करके 2530 करोड़ के मुक़ाबले 1648.79 करोड़ कर दी गयी है।

ऐसा नहीं है कि सारे मदों में कटौती की गई है। कटौती उन मदों में की गयी है, जो मद शिक्षा के सार्वजनिक विस्तार, शोध, आम छात्रों की पहुँच और कमजोर वर्ग के सशक्तिकरण से जुड़े हैं। जबकि STARS, National Mission in Education through ICT आदि के बजट में तो सैकड़ों करोड़ की बढ़त हुई ही है। ये बढ़े हुए आवंटन वाले मद वे हैं, जिनसे सार्वजनिक शिक्षा के विस्तार और सशक्तिकरण को अपाहिज बनाने का काम करेंगे।

मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार

बारह वर्ष हो गए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार प्राप्त हुए और लोकसभा में दिये गए जवाब के मुताबिक अभी तक महज 25% ही इस अधिकार का अनुपालन संभव हो पाया है, जबकि शिक्षा नीति में यह स्वीकार किया गया है कि यह बच्चों का एक अहम संवैधानिक अधिकार है। (पिछली नीतियाँ, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020) इसलिए स्वाभाविक रूप से बजट से अपेक्षा की जानी चाहिए थी कि विद्यालयों में पढ़ रहे लगभग 15 करोड़ बच्चों के इस अहम अधिकार को मजबूत बनाने की चिंता दिखती। परंतु बजट के पूरे दरम्यान इस अधिकार की हिफाजत और मजबूती की कोई चिंता जाहिर नहीं की गई है। शिक्षा अधिकार को मजबूत बनाने वाले बजटीय आवंटन की अपेक्षा के उलट 200 टीवी चैनल द्वारा शिक्षा की व्यवस्था किए जाने तथा डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना से इस अधिकार के छीने जाने का रास्ता ही प्रशस्त किया गया है।

निष्कर्ष

शिक्षा नीति के भड़कदार निर्माण से उदात्त शब्दों के गुलाबजल की फुहारें चाहे जितनी शीतलता पहुँचाती हों, इस नीति के रास्ते से हमें ‘विश्वगुरु’ हो ही जाने की जितनी भी दिलासा दिलायी गयी हो, लेकिन वास्तविकता यही है कि बजट की बिसात पर शिक्षा के चीथड़े बिखरे दिखते हैं। ये चीथड़े उन बच्चे-बच्चियों की शिक्षा के हैं, जो कमजोर और अभिवंचित वर्ग के हैं, जो अभी तक पढ़ने-लिखने की जरूरत भी ठीक से समझ नहीं पाये हैं या जिनके जीवन में जीने की अनिवार्यता के आगे शिक्षा की आवश्यकता पराजित हो जाती है।

इस तरह शिक्षा नीति में शब्दों के जितने भी मोहक जाल गढ़े गए हों, सुनहरे सपनों की वादियों में चाहे जितना भी भटकाया गया हो, बजट की व्यावहारिक जमीन पर न तो उनको पूरा करने की कोशिश की गयी है और न ही पूरा करने की इच्छा जाहिर की गयी है।

संदर्भ-स्रोत

  1. राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020
  2. आम बजट 2022-23
  3. Global Insights Report 2020
  4. Global Hunger Index 2020

किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में बजट की पड़ताल

बजट 2022 में निरस्त हुए कृषि क़ानूनों की तरह ही कृषि भूमि पर कंपनियों के कब्जे का रास्ता बनाया गया है और न्यूनतम समर्थन मूल्य को समाप्त करने का पथ प्रशस्त किय...

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