सामाजिक न्याय का वर्तमान संदर्भ
एक विचारधारा के रूप में सामाजिक न्याय सभी इंसानों को समान मानने के सिद्धान्त पर कार्य करता है। इसके अनुसार मनुष्य-मनुष्य के बीच सामाजिक स्थिति के आधार पर किस...
एक समय था जब पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता था। जिस समय ऐसा कहा जाता था, उस समय वह जनता के पक्ष में खड़ी होकर लोकतंत्र की पहरेदार थी और अवाम की आवाज थी। वह खुद जन समस्याओं की धूल से सनी थी, लेकिन उसमें ताकत थी कि सत्ता की आँखों में आँखें डालकर सवाल कर सके। उस समय वह जनता का विश्वासपात्र थी।
लेकिन समय बदला। लोकतंत्र के इस चौथे खंभे में मुनाफे का कीड़ा लग गया। धीरे-धीरे उस कीड़े ने पत्रकारिता के सारे स्थापित मूल्यों को कुतर दिया। मुनाफे की इस आवश्यकता ने केवल पत्रकारों के हुलिया को ही नहीं बदला, बल्कि पत्रकारिता के वर्ण्य को भी बदल दिया। पहले से जनता के पाले में खड़ी पत्रकारिता, आहिस्ते से, अब सरकार और पूँजीपतियों की गोद में जाकर बैठ गई।
अब जनता के सवालों को खुद जनता को ही उठाना था। अब उसे खुद ही अपनी अभिव्यक्ति बनना था। इंटरनेट की सुविधा ने उसके मार्ग को आसान किया। परिवर्तित परिस्थिति की इसी आवश्यकता ने, नवागत सुविधा के साथ मिलकर, जन पत्रकारिता (People's Journalism or Public Media) को जन्म दिया।
जन पत्रकारिता की यह नई उभरी प्रवृत्ति आज जनाकांक्षाओं को अभिव्यक्त कर रही है, लोकतांत्रिक सवालों को खड़े कर रही है और ढहते हुए लोकतंत्र की बुनियाद को मजबूत करने के जद्दोजहद में लगी हुई है। आज यह जन पत्रकारिता ही लोकतंत्र का चौथा खंभा है।
'लोकजीवन' इसी परंपरा की एक कड़ी है।
एक विचारधारा के रूप में सामाजिक न्याय सभी इंसानों को समान मानने के सिद्धान्त पर कार्य करता है। इसके अनुसार मनुष्य-मनुष्य के बीच सामाजिक स्थिति के आधार पर किस...
प्रस्तुत आलेख में तर्कपूर्ण ढंग से यह निष्पादित किया गया है कि वित्तीय अभाव का रोना रोकर सरकार ने शिक्षकों के बीच संवर्गीय विषमता उत्पन्न कर दी। चहारदीवारी क...
यह आलेख बिहार शिक्षक नियुक्ति नियमावली 2023 के संदर्भ में लिखा गया है। इस आलेख में यह दर्शाया गया है कि शिक्षकों के बीच संवर्गीय और आर्थिक विभेद समाज में व्य...
श्रमिकों के शोषण का जितना अमानवीय और विविध आयामी स्वरूप आज दिखाई पड़ता है, उतना इतिहास के किसी पूर्व कालखंड में नहीं दिखायी पड़ा था। नीम पर करेला यह भी है कि...
एक जागरूक लोकतंत्र का रास्ता समाजवाद की ओर आगे ले जाता है और इसके लिए नागरिकों का जीवन-स्तर ऊपर उठाकर सुख और शांति का माहौल स्थापित करता है। लेकिन एक दिक्भ्र...
बजट 2023 का परिचय एवं समीक्षा। ‘बजट अपने अपेक्षित लक्ष्यों को तभी प्राप्त करेगा जब वास्तविक व्यय अनुमानित व्यय के समान या उससे अधिक हो और राजकोषीय घाटे की रा...
बजट 2023 पेश करते हुए वित्तमंत्री ने इसे आर्थिक लेखा-जोखा की प्रस्तुति के रूप में नहीं, बल्कि इस लहजे में प्रस्तुत किया है, जैसे वे इस बजट के द्वारा लोगों को...
लोकतंत्र की अवधारणा इस तरह यह गढ़ी गयी है कि सत्ता और उसकी मशीनरी नागरिक हितों की पूर्ति के लिए होती हैं। परंतु व्यवहार में ऐसा नहीं होता है। राज्य के कर्मचा...
विकास ज़रूरी है, परंतु अगर इसका रास्ता विनाश से होकर जाता है तो ऐसा विकास क्यों और किसके लिये? इसपर अगर समय रहते मंथन नहीं किया गया तो क्लाइमेट चेंज के क़हर ...
हाल के दिनों में बहुसंख्यक सांप्रदायिक शक्तियों ने इस देश में सामाजिक विभाजन की जंग छेड़ रखी है। यह सत्ता-लोलुप राजनीतिक दल की शह पाकर हो रहा है। देश की सामा...