नारी शक्ति वंदन विधेयक : महिलाओं के लिये ख़ुशख़बरी लेकिन————

डॉक्टर मीरा मिश्रा     4 minute read         

संसद के पाँच दिवसीय विशेष सत्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से छह महीने पहले संसद में महिला आरक्षण बिल जिसे नारी शक्ति वंदन अधिनियम नया नाम दिया गया है, लाने की उद्घोषणा की, जिसे क़ानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने नये संसद में पहले दिन ही 19 सितंबर को पेश कर दिया।संसद के दोनों सदनों - लोकसभा और राज्यसभा - में लंबी चर्चा के बाद यह भारी बहुमत से पास हो गया।अब इसपर राष्ट्रपति की फ़ाइनल मुहर लगनी शेष है। फिर यह क़ानून बनकर पूरी तरह लागू होने के लिये तैयार हो जायेगा।परंतु इसमें एक पेंच लगा दिया गया है, जिससे इसका लाभ आनेवाले चुनाव में महिलायें नहीं ले पायेंगी।इसे लागू करने के पहले जनगणना होगी, फिर परिसीमन होगा, तब जाकर यह पूरी तरह लागू करने के लिये तैयार होगा।इसमें अनुसूचित जाति एवम् जनजाति की महिलाओं के लिये उपआरक्षण का प्रावधान है, परंतु ओबीसी को कोटा के अंदर शामिल नहीं किया गया है, जो फ़िलहाल विवाद का विषय बना हुआ है ।

संसद के पाँच दिवसीय विशेष सत्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से छह महीने पहले संसद में महिला आरक्षण बिल जिसे नारी शक्ति वंदन अधिनियम नया नाम दिया गया है, लाने की उद्घोषणा की, जिसे क़ानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने नये संसद में पहले दिन ही 19 सितंबर को पेश कर दिया।संसद के दोनों सदनों - लोकसभा और राज्यसभा - में लंबी चर्चा के बाद यह भारी बहुमत से पास हो गया।अब इसपर राष्ट्रपति की फ़ाइनल मुहर लगनी शेष है। फिर यह क़ानून बनकर पूरी तरह लागू होने के लिये तैयार हो जायेगा।परंतु इसमें एक पेंच लगा दिया गया है, जिससे इसका लाभ आनेवाले चुनाव में महिलायें नहीं ले पायेंगी।इसे लागू करने के पहले जनगणना होगी, फिर परिसीमन होगा, तब जाकर यह पूरी तरह लागू करने के लिये तैयार होगा।इसमें अनुसूचित जाति एवम् जनजाति की महिलाओं के लिये उपआरक्षण का प्रावधान है, परंतु ओबीसी को कोटा के अंदर शामिल नहीं किया गया है, जो फ़िलहाल विवाद का विषय बना हुआ है ।

महिला आरक्षण विधेयक का इतिहास :

महिला आरक्षण विधेयक के इतिहास पर अगर हम गौर करें तो इसका बीजारोपण सबसे पहले राजीव गांधी ने अपने कार्यकाल में कर दिया था, जिसके फलस्वरूप नरसिंहाराव के शासनकाल में बने क़ानून से महिलाओं को स्थानीय नगर निकायों और पंचायतों में 33 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल सका, जो आज की तारीख़ में इक्कीस राज्यों में पचास प्रतिशत तक हो गया है। देवगौडा के प्रधानमंत्रित्व काल में 1996 में पहली बार सदन में  महिला आरक्षण बिल पेश किया गया, परंतु इसका विरोध होने पर इसे गीतामुखर्जी की अध्यक्षता वाली संयुक्त समिति के पास भेज दिया गया। बाद में 9 दिसंबर 1996 को इस समिति ने अपनी सात सूत्री सिफ़ारिशों वाली रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इसमें अनुसूचित जाति, जनजाति एवम् एंग्लो-इंडियन इंडियन को इसके अंदर कोटा देने की बात रखी गयी थी।इसमें आरक्षण की अवधि पन्द्रह साल के लिये रखी गयी, जिसे आगे बढ़ाने का प्रावधान भी डाला गया। परंतु इसमें ओबीसी को उपआरक्षण देने की बात नहीं थी।बाद में अटल बिहारी बाजपेयी जी के समय भी इसे कई बार सदन के पटल पर चर्चा में लाया गया, परंतु सबकी सहमति के अभाव में हर बार यह अधर में लटका रहा।मनमोहन सिंह की सरकार के समय 2008 में इसे फिर सदन में पेश किया गया। 2010 में यह राज्यसभा से पास भी हो गया, परंतु लोकसभा में इसे पेश नहीं कर फिर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

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2010 में राज्यसभा में जो महिला आरक्षण विधेयक पास हुआ, उसमें जनगणना तथा परिसीमन का कोई ज़िक्र नहीं था। इसको लागू करने के लिये रोटेशन की बात कही गयी थी, जिसका अधिकार राज्य सरकारों को दिया गया था।आज हम जिस महिला आरक्षण विधेयक की बात कर रहे हैं उसके महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने से पहले जनगणना और परिसीमन को समझना ज़रूरी है, क्योंकि इसे समझने के बाद ही हम सरकार की असली मंशा को बखूबी समझ सकते हैं।

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महिलाओं के लिए सोने का लड्डू :

क़ायदे से 1921 में जनगणना हो जानी चाहिये थी, जो कोरोना के कारण नहीं हुई। अब अगर बीच में 2025 तक होती है तो ठीक, वर्ना 2031 में होगी।जनगणना के बाद परिसीमन कमीशन नये सिरे से निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण करेगा। संविधान के आर्टिकल 82 के अनुसार 2026 के बाद होनेवाली जनगणना के बाद ही अगला परिसीमन अपना कार्य करेगा। ऐसी हालत में अगर 2025 में जनगणना हो भी जाती है तो परिसीमन नहीं हो पायेगा।यह 2031 की जनगणना के बाद ही हो पायेगा।परिसीमन कमीशन को अपना रिपोर्ट देने में कम-से-कम चार-पाँच साल तो लग ही जाते हैं, जैसा पिछले 2002 के परिसीमन की रिपोर्ट के समय देखा गया था, जो 2007 में आयी थी।इस तरह 2039 के चुनावों में ही महिलाओं को इस क़ानून का लाभ मिल पायेगा। तब तक 15 साल की अवधि भी समाप्ति की ओर रहेगी और फिर इस पर पुनर्विचार करने का समय आ जायेगा। इसके तुरंत लागू होने में जो पेंच लगाया गया है, उसका मक़सद क्या है? क्या यह सचमुच महिलाओं के लिये उस सोने के लड्डू के समान है, जो दूर से देखने के लिये काफ़ी अच्छा है परंतु इसे खाना नहीं है।

क्या इसमें सेंसस और परिसीमन का पेंच नहीं डालकर सीधे-सीधे रोटेशन के आधार पर लागू नहीं किया जा सकता था? चुनाव आयोग इसे लाटरी सिस्टम से भी कर सकता है।परिसीमन से दक्षिण के राज्यों को, जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण पूरे मन से किया, घाटा उठाना पड़ेगा; जबकि जिन राज्यों में जनसंख्या बढ़ी है, उन्हें फ़ायदा होगा।यह एक नये विवाद की वजह बनेगी।

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अगर इन सबसे बचना है तो संविधान में संशोधन करना पड़ेगा। वर्तमान सरकार अगर अगले चुनावों में जीतकर पुनः सत्ता में आती है तो हो सकता है इसी के बहाने उसके संविधान को लेकर सारे मंसूबे पूरे हो जायें। फ़िलहाल तो यह महिलाओं को लुभाने वाला एक मनमोहक सपना है, जो पूरा होने के लिये धरती पर उतर चुका है।यह कब पटरी पर रफ़्तार पकडेगा यह आनेवाला समय ही बतायेगा।

अभी तो मैं भी ख़ुशी से झूम रही हूँ। महिलाओं के लंबे संघर्ष के बाद आज यह दिन आया है। अब इसे जल्दी लागू कराने के लिये भी महिलायें कमर कस कर मैदान में डट जायेंगी।

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