Category जन पत्रकारिता

इन दिनों : है अंधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

"यह भयावह वक्त है, जब मृत्यु से भी मुनाफा कमाया जा रहा है और मजा यह है कि देश में ऐसे लोग भी मौजूद हैं जो मृत्योत्सव का समर्थन भी करते हैं और जयकारे भी लगाते हैं।" - इसी लेख से

इन दिनों : ताड़ खड़खड़ाते हैं केवल, चील गीध ही गाते

"डॉ लोहिया ने कहा था कि पांच सालों तक जिंदा कौमें इंतजार नहीं करतीं। सच पूछिए तो जिंदा कौमें की एक शमां तो बननी चाहिए।" - इसी लेख से

इन दिनों : अंधेपन की मर्यादा से चकाचौंध आंखें

"जो खिलवाड़ कर रहा है, वह तो जानबूझकर कर रहा है। वह दोषी कम है, उससे ज्यादा दोषी वह है जो खुली आंखों से देख कर भी नहीं देख रहा है या डर से तालियां पीट रहा है।" - इसी आलेख से

इन दिनों : तोड़ने ही होंगे मठ और किले सब

एआई द्वारा निर्मित प्रतीकात्मक चित्र
उन्होंने जिसकी गारंटी दी, वह बर्बाद हो गया। इस बार संविधान की बारी है । उन्होंने संविधान को सिर से लगा लिया है। - इसी आलेख से।

इन दिनों : किरण रिजिजू और रामभद्राचार्य के एकरुप सपने 

एआई द्वारा निर्मित प्रतीकात्मक चित्र
"माडल लेरिसा नेरी को मालूम ही नहीं है कि चुनाव आयोग उससे कितना प्यार करता है। वह केवल भारत के नागरिकों को ही वोटर नहीं बनाता, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लोगों को भी शामिल करता है। वह इतना मदमस्त है कि वह किसी को मतदाता सूची से हटा सकता है और किसी को जोड़ सकता है।"

इन दिनों : केंचुआ मुफ्त में बदनाम है 

यह सच है कि केंचुआ में रीढ़ नहीं होती, लेकिन तब भी वह मिट्टी को उपजाऊ बनाता है। वह किसानों का मित्र और धरती का हलवाहा कहा जाता है। चुनाव आयोग तो लोकतंत्र से जन्मा और लोकतंत्र को ही खा रहा है। यह तो पितृहंता है। केंचुआ बहुत बेहतरीन प्राणी है, चुनाव आयोग ने तो अपनी मिट्टी पलीद कर कर ली। - इसी आलेख से

इन दिनों : नेताओं का धर्म – अपराध और जाति का संरक्षण

'लोकजीवन' के 'इन दिनों' कॉलम में प्रो० योगेंद्र बिहार की राजनीति में अपराध और जाति के राजनीतिक संयोजन की चर्चा कर रहे हैं।

इन दिनों : प्रधानमंत्री का कट्टा प्रेम और बिहार का दुखड़ा

कल भागलपुर में पुराने साथियों की बैठक हुई। संदर्भ बिहार का चुनाव था। पुराने साथियों का जिक्र इसलिए किया, क्योंकि किसी का संबंध जेपी आंदोलन से था, किसी का झुग्गी झोपड़ी आंदोलन से तो किसी का गंगा मुक्ति आंदोलन से।…