‘बंदिनी’ फिल्म में फांसी के तख्ते पर झूलने के लिए तत्पर स्वतंत्रता सेनानी यह गीत गाता है –‘मत रो माता, लाल तेरे बहुतेरे।’ जैसे ही लाल को फांसी पड़ती है, जेल के फाटक पर मां दहाड़ मार कर बेहोश हो जाती है। तब से अब तक मां के हिस्से में क्या है? हमारे यहां धरती भी मां है, देश भी मां है, मां तो मां है ही। धरती मां के गर्भ में कीटनाशक, रसायनिक खाद, न गलने वाली तरह-तरह की पालीथिन डाले जा रहे हैं। धरती मां बेचैन है। वह आधुनिक पुत्रों के दुष्कर्म से हतप्रभ है। आधुनिक पुत्रों को हर कीमत पर मुनाफा चाहिए।
आजकल की आधुनिकता बुराइयों से मुक्ति का नाम नहीं है। मध्ययुगीनता भी कमाई का एक धंधा है। तबाड़तोड़ पुरानी प्रवृतियों को चेतना में घुसेड़ा जा रहा है। ये प्रवृतियां कितनी घुसी हैं, इसकी देखरेख के लिए ‘संचार साथी’ भी कदम रख रहा है। आदमी महज एक टूल बन कर रह गया है। इस टूल को सरकार जैसे रगड़े। निजता तो सिर्फ किताबों में बंद हो चुकी है। स्मार्ट फोन में कौन नहीं घुसा है? आप किसी को नंबर नहीं देते, मगर उसके मैसेज और फोन आते रहते हैं। इसका मतलब है कि जहां-जहां फोन नंबर दिया, वहां-वहां से लीक कर दिया गया। कौन पूछता है, मैसेज भेजने के पहले। यह स्मार्टफोन आपकी सभी गतिविधियों को नोट कर रहा है। आपको भ्रम है कि आप फोन चला रहे हैं। सच यह है कि आपको स्मार्टफोन चला रहा है। आधुनिक ज्ञान मुक्त नहीं कर पा रहा, बल्कि उसके इस्तेमाल से गुलामी का पट्टा गले में पहनाया जा रहा है। मजेदार बात यह है कि इस गुलामी का अहसास न के बराबर है। आदमी को नियंत्रित करने के लिए यह सबसे बड़ा माध्यम है।
देश भी हमारी मां है – भारत माता। इस माता के पुत्रों की क्या दशा है? सरकार ने नोटबंदी की। बैंकों की लाइन में पुत्र खड़े-खड़े मर गये। न आतंकवाद मरा, न काला धन वापस आया। हां, किसी का काला धन जरूर सफेद हो गया। सरकार को थोड़ी भी शर्म नहीं आयी, क्योंकि वह शर्माना भूल गयी है। किसान महीनों तीन काले कानून के खिलाफ सड़क पर आंदोलन करते रहे। सात सौ से अधिक किसान शहीद हुए, मगर सरकार के पास कोई डाटा नहीं है। कोविड आया। सरकार ने ऐलान किया – थाली बजाओ। कोविड छूमंतर हो जायेगा। लाखों लोग बिना दवा के तड़प तड़प कर मर गये। बहुत सी लाशों को कफन तक नसीब नहीं हुआ। सरकार के किसी नेता के रोएं नहीं सिहरे। कुछ ने तो हद कर दी। वे गोबर स्नान और मूत्र पान करने लगे। देश में एस आई आर हो रहा है। भारत मां के पुत्र जान की आहुति दे रहे हैं, मगर सरकार ठेंगा दिखा रही है। धरम के वरद पुत्र कितने अधार्मिक हैं! इन्हें वंदे मातरम् का शौक चढ़ा है। मातरम् के पुत्रों को खूब कूटो और वंदे मातरम् के जरिए देश में घृणा का माहौल बनाओ। जिन शहीदों ने वंदे मातरम कहते हुए फांसी की रस्सियों को गले से लगाया, पता नहीं वे क्या सोचते होंगे! कितने नापाक युग में हैं और उनकी शहादतों पर वह सवाल कर रहा है जिसने आजादी की लड़ाई में एक बूंद भी खून नहीं बहाया। नतीजा है कि मां की पीड़ा अवर्णनीय है। मां की जितनी पिटाई आज हो रही है, उतनी शायद ही किसी युग में हुई हो। एक स्वतंत्र देश में गुलामी कैसे आती है, इसकी झलक आप कहीं भी देख सकते हैं।
आप परम स्वतंत्रता का स्वांग भर सकते हैं, लेकिन सच यह है कि हैं चरम परतंत्र।

प्रोफेसर, पूर्व विभागाध्यक्ष, विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग
पूर्व डीएसडब्ल्यू,ति मां भागलपुर विश्वविद्यालय,भागलपुर







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