आज डॉ अम्बेडकर का परिनिर्वाण दिवस है। साथ ही यह बाबरी मस्जिद ढाहने का दिवस भी है। यह वह दिन भी है, जब न्यायपालिका, संसद और कार्यपालिका बेबस हो गयी थी। मुल्क सन्नाटे में था। बाबरी मस्जिद विध्वंस करने वाले लोगों ने यह दिन क्यों चुना, यह रहस्य तो वे जानें, लेकिन ये लोग डा अम्बेडकर के प्रेमी तो नहीं थे।
डॉ अम्बेडकर से प्रेम करने वाले भी कम नहीं भटके। यहां तक कि कांशीराम ने भी इनसे गलबहियां की। आज भी कांशीराम के उत्तराधिकारी मायावती का बीजेपी – प्रेम गया नहीं है। डॉ अम्बेडकर ने संविधान रचते हुए जो कुछ कहा, उसके खिलाफ ही ये लोग रहे। यहां तक कि इन्होंने डॉ अम्बेडकर का रामलीला मैदान में पुतला दहन भी किया। यह भटकाव रामविलास पासवान तक आया और उनके बेटे चिराग पासवान के बारे में कुछ कहना नहीं है। चिराग़ पासवान ने शायद ही डॉ अम्बेडकर को पढ़ा हो। अगर थोड़ा भी पढ़ लेते तो कम-से-कम माथे पर चंदन टीका और हाथों में पीले सूतों का गट्ठर नहीं बांधते। खैर।
आजकल डा अम्बेडकर को सभी पूजते हैं। दक्षिणपंथी, वामपंथी, गांधीवादी – सभी। गांधी से जुड़ी संस्थाओं में डा अम्बेडकर की तस्वीर लगी नहीं रहती थी। धीरे-धीरे डा अम्बेडकर उसमें भी प्रवेश पा गये हैं। डॉ अम्बेडकर का बाजार गर्म है। स्वार्थी लोग जो डॉ अम्बेडकर की तीखी आलोचनाएं करते हैं, वे भी सार्वजनिक मंचों पर डा अम्बेडकर से प्यार जताते हैं। भारत में पाखंडियों और ढोंगियों की भी एक लंबी परंपरा है।
सत्ता में जो बैठे हैं। उन्हें गांधी से तीव्र घृणा है। उनका सावरकर – गोडसे – प्रेम जगजाहिर है। उनकी कितनी बड़ी लाचारी है कि जब कोई राष्ट्राध्यक्ष आते हैं तो महात्मा गांधी की समाधि पर जाना चाहते हैं, सावरकर का जिक्र भी नहीं करते। रूस के राष्ट्रपति पुतिन आये तो राजघाट पहुंचे। ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए’ के स्वर गूंजते रहे और पुतिन सिर झुकाए खड़े थे। पुतिन, जिसने युक्रेन के खिलाफ जंग छेड़ रखी है, पिछले चार सालों में कितनों की हत्या की होगी, वे भी सत्य और अहिंसा की आवश्यकता महसूस करते हैं।
भारत के बाहर देश के दो ही महापुरुष को शिद्दत के साथ याद किया जाता है। वे हैं महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी। अफसोस इस बात का है कि दोनों महापुरुषों को इस देश के लोगों ने त्यागने की कोशिश की। बुद्ध दूसरे देशों में फूलते फलते रहे, लेकिन इस देश के कट्टर राजाओं ने उन्हें बेदखल किया। महात्मा गांधी की तो हत्या ही कर दी गई और इस हत्या को जायज ठहराने की आज भी कोशिश की जा रही है। यह अलग बात है कि बुद्ध और गांधी को भारत की चेतना से अलग नहीं किया जा सका। आज परिवार से लेकर विश्व तक करूणा, अहिंसा और सत्य की बहुत जरूरत है।
लेकिन इस युग में आप किसी दिन का अखबार उलट कर देख लीजिए। आपको पता चल जायेगा कि यह देश कितना पीड़ित है। टोपी मुरैठा बांध कर उजाड़ सकते हैं, बसाने की हिम्मत नहीं है। असली हिन्दुस्तान जो फुटपाथ पर आबाद है, उस पर बुलडोजर चलाइए, मगर लोकतंत्र का यह रास्ता नहीं है। वे लोग जो सड़कों पर पानी पूड़ी बेचते हैं , ठेला लगाते हैं, छोटी-छोटी दूकानें लगा रखी है, वे कौन लोग हैं? अदम गोंडवी ने कभी लिखा था –
सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद हैं
दिल रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है
कोठियों से मुल्क़ के मेआर को मत आँकिए
असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है।
फुटपाथ के हिन्दुस्तान से घृणा नहीं, प्रेम कीजिए। उनके सम्मान के साथ जीने का रास्ता निकालिए।

प्रोफेसर, पूर्व विभागाध्यक्ष, विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग
पूर्व डीएसडब्ल्यू,ति मां भागलपुर विश्वविद्यालय,भागलपुर







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