मेरी आंखों के सामने नरेंद्र मोदी की एक चमकती तस्वीर तैर रही है। लंबे बाल, आत्मविश्वास से भरा चेहरा और आवाज में खनक। वे सार्वजनिक मंच से तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से पूछ रहे हैं – ”क्या वजह है कि रुपया गिर रहा है? बांग्लादेश की करेंसी नहीं गिरती। श्रीलंका की करेंसी नहीं गिरती। पाकिस्तान की करेंसी नहीं गिरती। क्या वजह है कि हिन्दुस्तान का रुपया पतला होता जा रहा है? जवाब देना पड़ेगा।” उस वक्त डालर के मुकाबले रुपया 58 का होता था। ग्यारह वर्षों में वह 90 से ऊपर पहुंच गया। नरेंद्र मोदी जी, अब आप जवाब दीजिए। देश के लोग जानते हैं कि आप जवाब नहीं देंगे, न शर्मिंदा होंगे। देश पर कर्ज 55 लाख करोड़ से दो सौ लाख करोड़ हो गया। आप देश में नये नये वितंडा खड़ा कर सत्ता पर काबिज रहने की कोशिश करते रहेंगे।
मजा यह है कि आपके माननीय मंत्रियों और सांसदों के बयान अभूतपूर्व हैं। कभी रविशंकर प्रसाद मंत्री हुआ करते थे। अब यदा कदा नमूदार होते हैं। 2013 में भाजपा के प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि “रुपये जब यूपीए सत्ता में आई थी उस वक्त रुपये का विनिमय मूल्य राहुल गांधी की उम्र के बराबर था, अब यह सोनिया गांधी की उम्र को पार कर गई है और जल्द ही यह मनमोहन सिंह की उम्र को भी पार कर जाएगी।” अभी गायब हैं। माननीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कहती हैं कि रुपया अपना तल ढूंढ लेगा। पहले देश में पानी अपना तल ढूंढता था, अब रुपया अपना तल ढूंढ रहा है। गजब की वित्त मंत्री हैं निर्मला सीतारमण जी। भगवान आपको और भी धन्य-धन्य करे। वित्त मंत्री का यह बयान बताता है कि वे असहाय हैं। लाचार और बेबस। अगर रुपया अपना तल खुद ढूंढ लेगा तो फिर प्रधानमंत्री सहित सभी इस्तीफा दीजिए। देश भी अपना तल ढूंढ लेगा। नचनिया और गवैया मौजूदा सांसद मनोज तिवारी का बयान सुनिए। उनका कहना है कि हम जेब में रुपया लेकर घूमते हैं, डालर से क्या लेना देना? डॉलर महंगा हो या सस्ता – कोई अंतर नहीं पड़ेगा। एक केंद्रीय मंत्री हैं अर्जुन राम मेघवाल उनका बयान तो स्वर्णिम अक्षरों में लिखने लायक है। उनका कहना है कि पहले ज्यादा डॉलर में काम होता था। अब रुपए में ज्यादा काम होता था, इसलिए रुपया गिर रहा है। 2013 में अभिनेत्री जूही चावला, महान अभिनेता अमिताभ बच्चन, अनुपम खेर आदि रुपया गिरने के कारण मनमोहन सिंह को कोस रहे थे। अब मुंह पर ताला लगा है। सफेदपोशों की यह फौज देश के साथ गद्दारी कर रही है।
धर्म आधारित पार्टियां देश का कतई भला नहीं कर सकती। उसकी समझ और ज्ञान दो कौड़ी की होती है। उसे न वित्तीय समझ होती है, न शैक्षणिक – सामाजिक। वे समता में तो कभी भी भरोसा नहीं करती। चाहे वह नरेंद्र मोदी जी हों, चाहे ओवैसी हों या तृणमूल कांग्रेस के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर हों। इन लोगों ने कभी आर्थिक और सामाजिक समता की बात नहीं की और आगे भी कोई संभावना नहीं है। संप्रदाय आधारित पार्टियां और संगठन पहले अपने संप्रदाय को ही हानि पहुंचाते हैं। ये लोग कहीं गीता पाठ तो कहीं कुरान पाठ करवायेंगे और देश की गर्दन पर गुलामी का पट्टा पहनायेंगे। आजादी के समय जो पाप जिन्ना और सावरकर कर रहे थे, वही पाप आजकल संप्रदायवादी पार्टियां कर रही हैं। अगर सभी देशप्रेमी सचेत नहीं रहे तो गद्दीखोर नेतागण देश को अनेक टुकड़ों में विभक्त कर देंगे। गीता और कुरान का पाठ होगा और सर्दियों में सड़क किनारे बसे लोगों पर बुलडोजर चलेगा।
देश के अनुभवी बुजुर्ग और युवा समय रहते देश में चल रहे वितंडावाद के खिलाफ खड़े हों, वरना देश को संभालना कठिन होगा।

प्रोफेसर, पूर्व विभागाध्यक्ष, विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग
पूर्व डीएसडब्ल्यू,ति मां भागलपुर विश्वविद्यालय,भागलपुर




